इतिहास ब्लाग में आप जैसे जागरूक पाठकों का स्वागत है।​

Website templates

Sunday, April 17, 2011

कोलकाता की खोज करने वाले जाब चार्नक का मकान खंडहर में तब्दील

खबरों में इतिहास ( भाग-13 )
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-चार्नक का मकान खंडहर में तब्दील
२-नेपाल ने भारत में बुद्ध के जन्म स्थान होने की बात खारिज की
3-10 करोड़ में नीलाम हुआ जहाँगीर का चित्र
जाब चार्नक का मकान खंडहर में तब्दील
मान्यता थी कि कोलकाता के संस्थापक जाब चार्नक थे। कोलकाता हाईकोर्ट में इतिहासकारों की दायर एक याचिका में अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर संस्थापक की मान्यता पर रोक लगा दी। ( पूरा विवरण इस पीडीएफ से पढ़ें -बेदखल हुए जाब चार्नाक  )

अब भी लोग कोलकाता की खोज का श्रेय उन्हें ही देते हैं। कोलकाता की खोज करने वाले जॉब चार्नक तीन सौ साल पहले हावड़ा जिले के उलबेड़िया पहुंचे थे। तब यहां मुगल साम्राज्य कायम था। इतिहास का ज्यादातर हिस्सा भले ही नष्ट हो गया हो, लेकिन लोग आज भी कोलकाता के साथ चार्नक को जरूर याद करते हैं। हालांकि हावड़ा वालों को और खास करके उलबेड़िया के लोगों को यह याद नहीं है कि कभी इतिहास पुरुष चार्नक उनके इलाके में भी रहते थे। महीनों तक हावड़ा जिले में रहने वाले चार्नक के मकान की दशा देख कर खंडहर भी सोचेगा कि उसकी हालत कुछ बेहतर है।

मकान के तौर पर महज ढाई टूटे हुए खंभे और कुछ ईट-पत्थर ही शेष बचे हैं। पास में रहने वाले गोपाल दास के मुताबिक किसी जमाने में साहेब बाड़ी के तौर पर प्रसिद्ध मकान को लोग नीली कोठी के नाम से जानते थे। बचपन में सुना था कि वे यहां रहते थे। इससे ज्यादा कुछ पता नहीं है। मकान के आसपास जरूर दूसरे भवन बन चुके हैं।
उलबेड़िया के इतिहासकार असित हाजरा के मुताबिक हेमेंद्र बनर्जी के हावड़ा इतिहास और सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि 1687 में चार्नक उलबेड़िया आए थे। वे यहां औद्योगिक केंद्र की स्थापना करना चाहते थे। इस बारे में ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल काउंसिल को सिफारिश भी की थी।
उनका कहना है कि इतिहास के पन्नों से यह जानकारी भी मिलती है कि व्यापारिक कारणों से नवाब के लठैतों ने चार्नक को जमकर पीटा भी था। इसके बाद 24 अगस्त 1690 की दोपहर उन्होंने इलाके को सदा के लिए अलविदा कह दिया और यहां से कूच कर गए। तीन साल तक अंग्रेज बहादुर इलाके में रहे और इसके लिए उन्होंने एक मकान बनवाया था,जिसे लोग साहेब बाड़ी भी कहते थे। लगभग 20 साल पहले यहां एक विशाल दीवार और दरवाजे के हिस्से दिखाई देते थे, लेकिन अब सब कुछ गायब हो गया है। उनका कहना है कि यहां से वे सूतानूटी गए। अगर यहीं बस जाते तो आज कोलकाता नहीं होता और उसकी जगह उलबेड़िया ही विश्व व्यापार का केंद्र बन चुका होता।

स्थानीय लोगों की बात तो छोड़िए उलबेड़िया नगरपालिका के चेयरमैन देवदास घोष यह सुनकर हैरत में पड़ जाते हैं कि सचमुच चार्नक उनके इलाके में आकर ठहरे थे। इसी तरह हाटकालीगंज इलाके में चार्नक के मकान से महज 50 मीटर की दूरी पर रहने वाले एक दुकानदार सवाल पूछते हैं कि सचमुच चार्नक कभी यहां रहते थे, ऐसा तो उन्होंने कभी किसी से नहीं सुना जबकि वे सालों से यहां रह रहे हैं। (साभार-जनसत्ता)।
यह भी पढ़िए- कोलकाता को किसने बसाया
भारत में बुद्ध के जन्म स्थान होने की बात खारिज की

नेपाल ने पड़ोसी भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के जन्मस्थान लुम्बिनी की अनुकृति बनाए जाने की खबरों को खारिज किया है और कहा कि जापान और युनेस्को द्वारा शुरू की गई संरक्षण परियोजनाओं के कारण नेपाल में बुद्ध के पवित्र जन्म स्थान की मान्यता बरकरार रहेगी।नेपाल के संस्कृति मंत्रालय के सचिव मोद राज दोत्तेल ने कहा कि युनेस्को ने 1997 में लुम्बिनी को बुद्ध की जन्मस्थली बताते हुए इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। उन्होंने कहा कि भारत युनेस्को के घोषणा पत्र को मानने वाले 200 देशों में से एक है। बुद्ध भला दो स्थानों पर जन्म कैसे ले सकते हैं। नेपाल का लुम्बिनी ही वह स्थान है, जहां उनका जन्म हुआ था। पुरातत्वविदों का कहना है कि बुद्ध के दक्षिणी नेपाल के राजवंश में पैदा लेने का सबसे बड़ा प्रमाण भारतीय सम्राट अशोक द्वारा 249 ईसा पूर्व में लुम्बिनी की यात्रा के दौरान यहां स्थापित किए गया शिलालेख है, जिसपर लिखा है, "ईश्वर के प्रिय राजा पियादशी (अशोक) ने अपने राज्याभिषेक के 20वें वर्ष में खुद बुद्ध साक्यमुणि के जन्मस्थान की राजकीय यात्रा की, उन्होंने यहां शिला लगवाई.. और लुम्बिनी गांव पर लगने वाला कर घटा दिया।"

लुम्बिनी के बुद्ध का जन्म स्थान होने का एक अन्य ऐतिहासिक प्रमाण वह पाषाण चित्र है, जो नेपाली राजा रिपु मल्ला के आदेश पर बनाया गया था। रिपु मल्ला ने 1312 ईस्वी में लुम्बिनी की तीर्थयात्रा के समय इस चित्र बनाने का आदेश दिया था। इसमें बुद्ध की माता और महारानी एक हाथ से एक पेड़ को पकड़ी हुई है, जबकि उसके बगल में एक नवजात शिशु एक कमल की पंखुड़ी पर खड़ा है। यह पाषाण शिल्प अपने निर्माण के समय से ही इस स्थान पर लगा हुआ है। यहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालु सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलाओं और पाषाण चित्र को दूध और जल से नहलाते हैं। जापान सरकार के खर्च पर इन शिलाओं और पाषाण शिल्प के संरक्षण की एक परियोजना चलाई जा रही है। माना जाता है कि बुद्ध का जन्म 623 ईसा पूर्व में हुआ था, लेकिन 624 ईसा पूर्व से 560 ईसा पूर्व के बीच कुछ और तिथियों का भी उल्लेख मिलता है।

लुम्बिनी में अभी अनेक बौद्ध मठ चल रहे हैं और यह वर्तमान दक्षिणी नेपाली जिला रुपनदेही में स्थित है। यहां से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तिलौराकोट को बुद्ध के समय के कपिल वस्तु की राजधानी माना जाता है। इधर कुछ रिपोर्टों में हालांकि उत्तर प्रदेश के पिपराहवा को तत्कालीन कपिलवस्तु की राजधानी बताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के एक जिले का नाम सिद्धार्थ नगर होने और यहां लुम्बिनी तथा तिलौराकोट की अनुकृति बनाने की खबरों से नेपाल के नागरिकों को चिंता हो रही है कि इससे तीर्थयात्रियों में यह भ्रम फैल सकता है कि बुद्ध का जन्म भारत में हुआ था। ( काठमांडो-एजंसियां )

10 करोड़ में नीलाम हुआ जहाँगीर का चित्र

मुगल शासक जहाँगीर का आदमकद चित्र 10 करोड़ रुपए में नीलाम हुआ। यह अब तक के ज्ञात बड़े मुगल चित्रों में एक है। सत्तरहवीं सदी का यह चित्र बोन्हमास इंडियन एवं इस्लामिक नीलामी घर में मंगलवार को नीलाम हुआ। स्वर्ण एवं वाटरकलर से बने इस चित्र में जहांगीर ने स्वर्णजड़ित सिंहासन पर आसीन हैं।

नीलामीघर क प्रमुख एलीस बेली ने कहा कि यह 17 वीं सदी का दुलर्भतम एवं वांछित चित्र है और इस काल का ऐसा कोई चित्र नहीं है जो नीलाम हुआ हो। इस प्रकार की कोई दूसरी कलाकृति ज्ञात नहीं है और इसके महत्व को कम करके नहीं आँका जा सकता है। यह कलाकृति मध्य पूर्व के संग्रहालय द्वारा खरीदी गई।

बेली ने कहा कि इस चित्र से के असाधारण विवरण और जटिलता दर्शकों को मोह लेती है। हम इसे बेचकर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि यह 1617 के आसपास की तस्वीर है और जब जहाँगीर मांडू में थे तब इसे चित्रकार अबुल हसन ने बनाया था। ( नई दिल्ली, बुधवार, 6 अप्रैल 2011 -भाषा )

Friday, March 18, 2011

देश की सबसे ऊंची बौद्ध प्रतिमा

खबरों में इतिहास(भाग-12)
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-देश की सबसे ऊंची बौद्ध प्रतिमा का अनावरण
२-खुदाई में मिले अवशेषों से स्पाइस रूट की पुष्टि
3-सबसे बड़े शाकाहारी डायनासोर
खुदाई में मिले अवशेषों से स्पाइस रूट की पुष्टि
 केरल के प्राचीन बंदरगाह शहर विझिनजम में एक खुदाई स्थल पर मिले अवशेषों से सदियों पहले बाहरी दुनिया से व्यापार के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले स्पाइट रूट की पुष्टि हुई है। इसके लिहाज से इसे यूनेस्को से धरोहर का दर्जा दिलाने के प्रदेश के प्रयास को बल मिलेगा।

हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार में दो हजार सालों से केरल प्रमुख भूमिका निभाता रहा है। इसके कारोबारी साझेदारों में रोमन साम्राज्य, अरब खाड़ी और सुदूर पूर्व शामिल हैं। केरल के मसालों के लिए प्राचीन दुनिया के लगाव के कारण ये व्यापारी प्रदेश में आते थे। विझिनजम का जिक्र मध्यकालीन दस्तावेजों में मिलता है। यह एक समय दक्षिण केरल में आठवीं से दसवीं सदी में एवाय राजवंश की राजधानी रहा था। केरल विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के अजीत कुमार ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के राबर्ट हार्डिंग के साथ विझिनजम में खुदाई का काम शुरू किया ताकि शहर के सांस्कृतिक महत्त्व को समझा जा सके।(भाषा)।

देश की सबसे ऊंची बौद्ध प्रतिमा का अनावरण

सारनाथ स्थित थाई मंदिर में गांधार शैली में बनी देश की सबसे ऊंची (80 फुट) प्रतिमा का बुधवार को थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री जनरल सूरावेद चुल्लानाट ने अनावरण किया। इसके साथ ही भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली सारनाथ के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि से गुंजित वातावरण में थाईलैंड के प्रमुख भिक्षु सुथी सहित एक दर्जन अनुयायियों ने दीप जलाकर पंचशील पाड्ग किया।

थाई बौद्ध विहार परिसर में बौद्ध परंपरा के मुताबिक विधिपूर्वक पूजा अर्चना की गई। उसके बाद विशाल बुद्ध प्रतिमा के सामने रखी प्रतीक छोटी प्रतिमा का पर्दा खींचकर अनावरण कार्यक्रम संपन्न हुआ। जनरल चुल्लानाट ने इस मौके पर कहा कि भगवान बुद्ध की प्रतिमा भारत और थाईलैंड के बीच मैत्री का प्रतीक है। भारत गुरुभूमि है। यहीं से भिक्षु थाइलैंड गएऔर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। कई एकड़ क्षेत्र में फैले मंदिर परिसर के संस्थापक व बौद्धधर्म के प्रमुख प्रचारक भदंत शासन रश्मि का यह ड्रीम प्रोजेक्ट लगभग 14 साल में पूरा हुआ। बामियान (अफगानिस्तान) में गौतम बुद्ध की प्राचीन व विशाल प्रतिमाओं को तालिबानियों के खंडित करने से आहत होकर भदंत शासन ने इस प्रतिमा के निर्माण की परिकल्पना की थी। लगभग दो करोड़ रुाए में बनकर तैयार हुई प्रतिमा में 20 फीट ऊंची आधार स्तंभ व 60 फुट प्रतिमा की ऊंचाई है। इसके निर्माण में चार लाख 89 हजार किलोग्राम वजन के कुल 815 पत्थर लगे हैं।

बैजनाथ धाम (बिहार) निवासी शिल्पकार मोहन राउत के तैयार माडल को चुनार निवासी मूर्तिकार जीउत कुशवाहा नेकुशल कारीगरों की सहायता से विशाल बुद्ध प्रतिमा का रूप दिया। प्रसिद्ध वास्तुकार अनुराग कुशवाहा के निर्देशन में प्रतिमा की आधारशिला व तकनीकी ढ़ांचों का निर्माण हुआ, जबकि मुंबई के वरिष्ठ इंजीनियर पीपी कल्पवृक्ष के मार्गदर्शन में प्रतिमा स्थापित की गई। इस बीच पूर्व घोषणा के विपरीत प्रतिमा अनावरण के बाद मंदिर परिसर में ही भदंत शासन रश्मि का दाह संस्कार क्षेत्रीय नागरिकों के विरोध के चलते नहीं किया जा सका। 22 दिसंबर 2010 को देहांत के बाद उनके पाथर्व शरीर को उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार प्रतिमा के अनावरण तक मंदिर में रखा गया था। थाई बौद्ध विहार समिति के सचिव डा. धर्मरश्मि गौतम ने बताया कि दंत भदंत शासन रश्मि का अंतिम संस्कार कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया है। उनका शव तब तक मंदिर परिसर में ही रखा जाएगा। (भाषा)।
सबसे बड़े शाकाहारी डायनासोर

वैज्ञानिकों को खुदाई में धरती पर मौजूद सबसे बड़े शाकाहारी डायनासोर का जीवाश्म मिला है। समझा जाता है कि यह धरमी पर करीब नौ करोड़ वर्ष पहले विचरण करता था। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक दल को इस डायनासोर का जीवाश्म अंगोला में में मिला। उनका मानना है कि इसका आकार धरती पर मौजूद आज तक के सबसे बड़े माँसाहारी डायनासोर ‘टी-रेक्स’ से भी बड़ा था। यह लंबी गर्दन वाला जीव पौधे और अन्य वनस्पति खाता था । डेली मेल के रिपोर्ट अनुसार इसे अंगोलाटाइटन एडामास्टोर नाम दिया गया है। जहाँ इसके जीवाश्म मिले हैं वह नौ करोड़ वर्ष पहले पानी के अंदर रहा होगा। समझा जाता है कि मछली और शार्क के दाँत के साथ मिले उसके अवशेष बहकर समुद्र में चले और शार्कों ने उसके टुकडे-टुकड़े कर दिए। (भाषा

Wednesday, March 16, 2011

प्रलय की ओर बढ़ रही दुनिया !


  पहले इंडोनेशिया, फिर चीन, ब्राजील, श्रीलंका और अब जापान। पूरी दुनिया पर कुदरत का कहर टूट रहा है। आए दिन सुनामी, भूकंप, ज्‍वालामुखी फटने, बाढ़ और बर्फबारी जैसे धरती पर मंडराते खतरों के चलते दुनिया के खत्म होने की चर्चाएं भी जोर पकड़ने लगी हैं। हाल के वर्षों की कुछ घटनाओं ने इस शंका को प्रबल कर दिया है। प्रलय की पौराणिक मान्‍यताओं को वैज्ञानिक भी सही साबित कर रहे हैं।
नासा की चेतावनी
अमेरिकी अंतरिक्षण अनुसंधान केंद्र नासा के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि 2012 में धरती पर भयानक तबाही आने वाली है। इन वैज्ञानिकों ने पिछले साल अगस्त में सूरज में कुछ अजीबोगरीब हलचल देखी। नासा के उपग्रहों से रिकॉर्ड करने के बाद वैज्ञानिकों ने इन आग के बादलों से धरती पर भयानक तबाही की चेतावनी दी। इनका दावा है कि सूरज की तरफ से उठा खतरा धरती की तरफ चल पड़ा है। वैज्ञानिक इसे सुनामी कह रहे हैं। आग की ये लपटें सूरज की सतह पर हो रहे चुंबकीय विस्फोटों की वजह से पैदा हुईं और लावे का ये तूफान धरती की तरफ रुख कर चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये तूफान सूरज से धरती के रास्ते में है और कभी भी धरती से टकरा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर सोलर सुनामी धरती से टकराती है तो जबर्दस्त रोशनी पैदा होगी। दुनिया के बड़े हिस्से में अंधकार छा जाएगा। सेटेलाइटों को नुकसान पहुंच सकता है। संचार उपकरण ठप हो जाएंगे। मोबाइल फोन काम करना बंद कर देंगे। विमानों के उड़ान में मुश्किलें पैदा होंगी। नासा के वैज्ञानिकों ने 2013 में सौर तूफान की चेतावनी पहले ही दे दी थी। वे इस बारे में लगातार शोध कर रहे हैं।

प्रलय से जुड़े मिथ, धार्मिक ग्रंथों में प्रलय का जिक्र


प्रलय शब्द का जिक्र लगभग हर धर्म के ग्रंथों में मिलता है। करीब 250 साल पहले महान भविष्यवक्ता नास्त्रेस्देमस ने भी प्रलय को लेकर घोषणा की है हालांकि इसमें उसके समय को लेकर कोई घोषणा नहीं है।

महाभारत - महाभारत में कलियुग के अंत में प्रलय होने का जिक्र है, लेकिन यह किसी जल प्रलय से नहीं बल्कि धरती पर लगातार बढ़ रही गर्मी से होगा। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख मिलता है कि सूर्य का तेज इतना बढ़ जाएगा कि सातों समुद्र और नदियां सूख जाएंगी। संवर्तक नाम की अग्रि धरती को पाताल तक भस्म कर देगी। वर्षा पूरी तरह बंद हो जाएगी। सबकुछ जल जाएगा, इसके बाद फिर बारह वर्षों तक लगातार बारिश होगी। जिससे सारी धरती जलमग्र हो जाएगी।

बाइबिल - इस ग्रंथ में भी प्रलय का उल्लेख है जब ईश्वर, नोहा से कहते हैं कि महाप्रलय आने वाला है। तुम एक बड़ी नौका तैयार करो, इसमें अपने परिवार, सभी जाति के दो-दो जीवों को लेकर बैठ जाओ, सारी धरती जलमग्र होने वाली है।

इस्लाम - इस्लाम में भी कयामत के दिन का जिक्र  है। पवित्र कुरआन में लिखा है कि कयामत का दिन कौन सा होगा इसकी जानकारी केवल अल्लाह को है। इसमें भी जल प्रलय का ही उल्लेख है। नूह को अल्लाह का आदेश मिलता है कि जल प्रलय होने वाला है, एक नौका तैयार कर सभी जाती के दो-दो नर-मादाओं को लेकर बैठ जाओ।

पुराण - हिदू धर्म के लगभग सभी पुराणों में काल को चार युगों में बाँटा गया है। हिंदू मान्ताओं के अनुसार जब चार युग पूरे होते हैं तो प्रलय होती है। इस समय ब्रह्मा सो जाते हैं और जब जागते हैं तो संसार का पुन: निर्माण करते हैं और युग का आरम्भ होता है।

नास्त्रेस्देमस की भविष्यवाणी - नास्त्रेस्देमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है कि मै देख रहा हूँ,कि एक आग का गला पृथ्वी कि ओर बाद रहा है,जो धरती से मानव के काल का कारण बनेगा। एक अन्य जगह नास्त्रेस्देमस लिखते हैं, कि एक आग का गोला समुन्द्र में गिरेगा और पुरानी सभ्यता के समस्त देश तबाह हो जाएंगे।

प्रलय को लेकर वैज्ञानिकों के बयान - केवल धर्म ग्रंथों में ही नहीं, बल्कि कई देशों में वैज्ञानिकों ने भी प्रलय की अवधारणा को सही माना है। कुछ महीनों पहले अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने घोषणा कि है कि 13 अप्रैल 2036 को पृथ्वी पर प्रलय हो सकता है। खगोलविदों के अनुसार अंतरिक्ष में घूमने वाला एक ग्रह एपोफिस 37014.91 किमी/ प्रति घंटा) की रफ्तार से पृथ्वी से टकरा सकता है। इस प्रलयंकारी भिडंत में हजारों लोगों की जान भी जा सकती है। हालांकि नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि इसे लेकर घबराने की कोई जरूरत नहीं है।

माया कैलेंडर की भविष्‍यवाणी

माया कैलेंडर भी कुछ ऐसी ही भविष्‍यवाणी कर रहा है। साउथ ईस्ट मेक्सिको के माया कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 के बाद की तिथि का वर्णन नहीं है। कैलेंडर उसके बाद पृथ्वी का अंत बता रहा है।
माया कैलेंडर के मुताबिक 21 दिसंबर 2012 में एक ग्रह पृथ्वी से टकराएगा, जिससे सारी धरती खत्‍म हो जाएगी।  करीब 250 से 900 ईसा पूर्व माया नामक एक प्राचीन सभ्यता स्थापित थी। ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में इस सभ्यता के अवशेष खोजकर्ताओं को मिले हैं। ऐसी मान्यता है कि माया सभ्यता के काल में गणित और खगोल के क्षेत्र उल्लेखनीय विकास हुआ था। अपने ज्ञान के आधार पर माया लोगों ने एक कैलेंडर बनाया था। कहा जाता है कि उनके द्वारा बनाया गया कैलेंडर इतना सटीक निकला है कि आज के सुपर कम्प्यूटर भी उसकी गणनाओं में 0.06 तक का ही फर्क निकाल सके और माया कैलेंडर के अनेक आकलन, जिनकी गणना हजारों सालों पहले की गई थी, सही साबित हुए हैं।

चीन के धार्मिक ग्रंथ ‘आई चिंग’ व ‘द नेशनल फिल्म बोर्ड ऑफ कनाडा’ ने भी इन मतों को बल दिया है। लेकिन विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता व हिंदू मान्यताओं के प्रतीक 5123 वर्ष पुराने टांकरी कलेंडर ने इस बात को पूरी तरह से नकार दिया है।

वेब पर साजिशों की खोज करते रहने वालों ने दावा किया है कि वैब-बॉट्स यानी वैब रोबोट्स ने 11 सितंबर के हमलों और 2004 की सुनामी के बारे सटीक भविष्यवाणी की थी। अब उनका कहना है कि 21 दिसंबर 2012 को कोई आफत धरती को मटियामेट कर देगी। वैब-बॉट् एक तरह से ‘स्पाइडर’ जैसा सॉफ्टवेयर होता है जिसे 1990 में स्टॉक मार्केट के बारे भविष्यवाणी करने के लिए विकसित किया गया था।

प्रलय के संकेत? 

जलवायु परिवर्तन का खतरा: हमारी औद्योगिक प्रगति और उपभोक्तावादी संस्कृति, तापमान में विश्वव्यापी वृद्धि, वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्‍तर। यानी कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन की वजह से धरती के अस्तित्‍व पर खतरा है। बढते औद्योगीकरण के चलते जलवायु परिवर्तन का खतरा कई रूपों में सामने आ रहा है। गत क्रिसमस के समय यूरोप तथा अमेरिका में बर्फीली हवाओं और जबरदस्त हिमपात के कारण तापमान में आई भारी गिरावट से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। हिमपात और बर्फबारी की वजह से कई दिनों तक सड़क, रेल और हवाई यातायात ठप रहा था। लंदन, गेटविक और स्टैनस्टड से संचालित होने वाली सभी उड़ानें कई दिनों तक बाधित रहीं। ब्रिटिश एयरवेज ने 2000 से ज्यादा फ्लाइटें निरस्त की। वर्जीनिया, मैरीलैंड, पश्चिम वर्जीनिया और डेलावेयर प्रांतों में आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। वहीं ऑस्ट्रिया, फिनलैंड और जर्मनी में तापमान शून्य से 33 डिग्री सेल्सियस नीचे पहुंच गया। अमेरिका और यूरोपीय देशों में ऐसी बर्फबारी पहले कभी नहीं देखी गई थी।

जर्मनी में पोट्सडाम के जलवायु शोध संस्थान के वैज्ञानिक और जर्मन सरकार के जलवायु सलाहकार डॉ.स्तेफान राम्सटोर्फ के शब्‍दों में कहें तो हवा में कार्बन डाइऑक्साइड का घनत्व 1970 वाले दशक की तुलना में दोगुना हो गया है। जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समिति IPCC के आंकड़ों के अनुसार धरती का मौजूदा औसत तापमान पिछले एक हजार वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है। पिछली पूरी शताब्दी में धरती का औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ा था, जबकि अब वह 0.74 डिग्री की दर से बढ़ रहा है। राम्सटोर्फ का कहना है कि इस बढ़ोतरी को 2050 तक के अगले 40 वर्षों में कुल मिलाकर दो डिग्री की वृद्धि से नीचे ही रखना होगा, नहीं तो इसके बेहद गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

इस समय औसत वैश्विक तापमान लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है। अगले चार दशकों में उस में दो डिग्री तक की भी बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए, नहीं तो प्रलय आ जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि तापमान मामूली-सा बढ़ने से भी समुद्र का जलस्‍तर तेजी से बढ़ेगा और एक बार बढ़ गया तापमान सदियों, शायद हजारों वर्षों तक नीचे नहीं उतरेगा। स्‍टैनफोर्ड के कृषि वैज्ञानिक डेविड लोबेल और अंतरराष्‍ट्रीय मक्‍का और गेहूं सुधार केंद्र के अनुसंधानकर्ताओं ने आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते अनाज के उत्‍पादन पर भी असर पड़ेगा और इससे दुनियाभर में खाद्यान्‍न की किल्‍लत हो सकती है।

बढ़ते समुद्र स्‍तर से डूब जाएंगे तट: हाल में कोपनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित इंटरनेशनल साइंटिफिक कांग्रेस में यह बात सामने आई कि सन् 2100 तक समुद्र के जलस्‍तर में करीब एक मीटर तक बढ़ोतरी हो सकती है। संभावना है कि यह बढ़ोतरी एक मीटर से भी अधिक हो सकती है। यदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्‍सर्जन पर तत्‍काल रोक नहीं लगाई गई तो समुद्री तट के किनारे वाले इलाकों पर इसका असर साफ दिखेगा और दुनिया की आबादी का दस प्रतिशत इससे प्रभावित होगा।
इस सिलसिले में हुए एक नए अनुसंधान में चेतावनी दी गई है कि पहले की तुलना में समुद्र का जलस्‍तर तेजी से बढ़ सकता है। यह कहा गया है कि वर्ष 2100 तक समुद्र का पानी 75 से 190 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है।
सेंटर फॉर ऑस्‍ट्रेलियन वेदर एंड क्‍लाइमेट रिसर्च के डॉ. जॉन चर्च ने इस सम्‍मेलन में कहा, ‘सैटेलाइट और जमीनी उपकरणों से ली गई ताजा तस्‍वीरों से साफ है कि 1993 के बाद से समुद्र के जलस्‍तर में हर साल तीन मिलीमीटर की बढ़ोतरी हो रही है जो पिछली शताब्‍दी के औसत से अधिक है। हिमालय, ग्रीनलैंड तथा उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर की बर्फ पिघलने से भी धरती पर का तापमान और समुद्र का जलस्‍तर बढ़ेगा, क्योंकि बर्फ जिस सूर्यप्रकाश को आकाश की तरफ परावर्तित कर देती है, वह उसके पिघल जाने से बनी सूखी जमीन सोखने लगेगी।’ साभार-दैनिक भाष्कर

Sunday, January 16, 2011

जलवायु अस्थिरता से हुआ सभ्यताओं का उत्थान-पतन

खबरों में इतिहास ( भाग-११ )
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-जलवायु अस्थिरता से हुआ सभ्यताओं का उत्थान-पतन
२- दस हजार साल पुरानी 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग

जलवायु अस्थिरता से हुआ सभ्यताओं का उत्थान-पतन

पेड़ों के तने पर बने रिंग या वलयों पर हुए एक विस्तृत शोध से पता चलता है कि पुरानी सभ्यताओं के उत्थान और पतन का संबंध जलवायु में हुए अचानक होने वाले परिवर्तनों से हो सकता है। इस दल ने शोध के लिए पिछले 25 सौ सालों की क़रीब नौ हज़ार लकड़ियों की कलाकृतियों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि गर्मियों के जो मौसम गर्म के अलावा बारिश वाले रहे उन दिनों समाज में समृद्धि आई और जिन दिनों जलवायु में अस्थिरता रही उन दिनों राजनीतिक हलचलें तेज़ रहीं। शोध के नतीजे 'जनरल साइंस' की वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए हैं। इस शोध के सहलेखक उल्फ़ बंटजेन ने इस बेबसाइट से कहा, "अगर हम पिछले 25 सौ सालों के इतिहास पर नज़र डालें तो ऐसे उदाहरण हैं जब जलवायु परिवर्तन ने मानव इतिहास को प्रभावित किया है।"बंटजेन स्विस फ़ेडरल रिसर्च इंस्टिट्यूट में मौसम परिवर्तन से जुड़े वैज्ञानिक हैं।

छाल का इतिहास

इस शोध के लिए दल ने एक ऐसी प्रणाली का उपयोग किया जिससे कि खुदाई के दौरान मिली चीज़ों के समय काल का पता चल सकता है। प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है, "पुरातत्वविदों ने मध्य यूरोप के ओक या बलूत के पेड़ों के तनों पर बने वलयों की एक अनुक्रमणिका तैयार की जो लगभग 12 हज़ार साल के इतिहास की जानकारी देती थी. फिर इसके आधार पर उन्होंने कलाकृतियों, पुराने घरों और फ़र्नीचरों के समय काल के बारे में अध्ययन किया।"

पुरातत्वविदों ने जो सूची तैयार की है उसके अनुसार वर्तमान में मौजूद और पुराने समय के ओक पेड़ों के वलयों के अध्ययन से यह पता चल सकता था कि गर्मियों के दौरान और सूखे के दौरान उनकी प्रवृत्ति कैसी होती है।
शोध टीम ने अध्ययन किया कि पिछली दो सदियों में मौसम ने पेड़ों के तनों के वलयों के विकास में कैसी भूमिका निभाई। उन्होंने पाया कि जब अच्छा मौसम होता है, जिसमें पानी और पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं, पेड़ों में बनने वाले वलयों की चौड़ाई बहुत अधिक होती है। लेकिन जब मौसम अनुकूल नहीं होता तो वलय की चौड़ाई तुलनात्मक रुप से कम होती है।इसके बाद वैज्ञानिकों ने कलाकृतियों में मौजूद छालों के अध्ययन के आधार पर पुराने मौसमों के बारे में एक अनुमान लगाया।

   जब उन्होंने 25 सौ सालों के मौसम की सूची तैयार कर ली तो फिर उन्होंने उन वर्षों में समाज में समृद्धि के बारे में अनुमान लगाना शुरु किया। टीम का कहना है कि जिस समय गर्मियों में तापमान ठीक था और बारिश हो रही थी रोमन साम्राज्य और मध्ययुगीन काल में समृद्धि थी. लेकिन 250 से 600 ईस्वी सदी का समय, जब मौसम में तेज़ी से परिवर्तन हो रहा था उसी समय रोमन साम्राज्य का पतन हुआ और विस्थापन की प्रक्रिया तेज़ हुई।शोध में कहा गया है तीसरी सदी में सूखे मौसम के संकेत मिलते हैं और यही समय पश्चिमी रोमन साम्राज्य के लिए संकट का समय माना जाता है। इसी समय गॉल के कई प्रांतों में हमले हुए, राजनीतिक हलचल रही और आर्थिक अस्थिरता रही। डॉक्टर बंटजेन का कहना है कि उन्हें इन आंकड़ों की जानकारी थी लेकिन उन्होंने इसका नए तरह से अध्ययन किया और इसका संबंध जलवायु से जोड़कर देखा। ( बीबीसी से साभार-http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2011/01/110115_trees_civilisation_vv.shtml )


दस हजार साल पुरानी 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग

विभाजन के बाद सियालकोट से बूंदी में आकर बस गए ओमप्रकाश शर्मा कुक्की ने 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग खोजने का दावा किया है। उन्होंने बताया कि खोज किए गए शैल चित्र करीब दस हजार साल पुराने हैं तथा मिसोलेथिक युग से संबंध रखते हैं।

परचून की दुकान करने वाले और पुरा अन्वेषण खोज को शौकिया तौर पर अपनाने वाले ओम प्रकाश उर्फ कुक्की ने बूंदी जिले के गरहडा क्षेत्र के बांकी गांव से भीलवाड़ा जिले के मॉडल तक फैली करीब 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिंग खोजने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि 35 किलोमीटर लंबी राक पेंटिग्स पर करीब बतीस रंगीन रॉक पेंटिग बनी हुई है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में बने शैल चित्र नक्काशी कर उकेरे गये हैं, जबकि बूंदी के गरहडा क्षेत्र में पाए गए शैल चित्र रंगों से बनाए गए हैं। कुक्की बताते हैं कि यहां बने शैल चित्रों में हल्का लाल, गहरा लाल, सफेद, काला, पीला व गहरे हरे रंग का विलक्षण प्रयोग किया गया है। इन चित्रों में मानव आकृतियां, पशु जीवन, बाघ, औजार आदि की आकृतियां है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) भोपाल के परियोजना समन्वयक डा. नारायण व्यास ने कहा कि कुक्की की यह खोज बेमिसाल है। लेकिन यह विश्व की सबसे लंबी रॉक पेंटिग नहीं है।

कुक्की ने कहा कि बूंदी जिले में की गई पुरा महत्व की खोजों को इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्टस, नई दिल्ली व इंडियन रॉक आर्ट रिसर्च सेंटर नाशिक द्वारा संरक्षित किया गया है। उन्होंंने दावा किया कि बूंदी जिले में उनके द्वारा खोजी गए 78 पुरा अन्वेषक स्थल हैं। कुक्की ने कहा-मैं अपने परिवार का पालन पोषण परचून की दूकान से कर रहा हूं। साथ ही समय निकालकर पुरा महत्व की खोज में जुटा रहता हूं। इसके बावजूद सरकार ने आज तक मुझे कोई आर्थिक मदद देना मुनासिब नहीं समझा। सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने और न जाने कितनी मदों में लोगों की मदद कर रही है। मगर सरकार की नजर मेरी ओर नहीं जा रही है। जबकि मैंने बूंदी जिले की पुरासामग्री को खोज निकाला है जो दबी हुई थी।

कुक्की का कहना है कि राजस्थान सरकार विशेष रूप से पर्यटन विभाग बूंदी से भीलवाड़ा जिले तक फैली 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग को प्रचारित करे तो पहले से ही पर्यटन मानचित्र पर उभरे बूंदी की तस्वीर बदल सकती है। उन्होंने कहा कि उन्होंने पर्यटन मंत्री बीना काक को राक पेंटिग समेत बूंदी जिले की पुरा सामग्री को संजोने और पर्यटकों को दिखाने के लिए प्रस्ताव भेजे हैं लेकिन अभी तक जवाब नहीं मिला है। इधर, जयपुर में राजस्थान पर्यटन विकास निगम सूत्रों ने कुक्की के बूंदी पर्यटन विकास को लेकर भेजे गए किसी प्रस्ताव पर अनभिज्ञता जताई है। (बूंदी, 12 जनवरी (भाषा)।

Sunday, January 2, 2011

'आदि मानव शाकाहारी भी थे'

खबरों में इतिहास ( भाग-१० )
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-चार लाख साल पुराना मानव दांत मिला
२-'आदि मानव शाकाहारी भी थे'
३-200 साल पुरानी एक सुरंग
४-24 सौ साल पुराना 'सूप' मिला

चार लाख साल पुराना मानव दांत मिला


http://thatshindi.oneindia.in/news/2010/12/29/20101229240847.html

तेल अवीव विश्वविद्यालय ने अपनी वेबसाइट पर मंगलवार को लिखा कि इजराइली शहर रोश हाइन में एक गुफा में चार लाख साल पुराना मानव दांत मिला है। यह प्राचीन आधुनिक मानव का सबसे पुराना प्रमाण है।समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक वेबसाइट पर इसके साथ ही लिखा गया कि अब तक मानव के जिस समय काल से अस्तित्व में होने की बात मानी जा रही थी, यह मानव उससे दोगुना अधिक समय पहले जीवित था। यह दांत 2000 में गुफा में मिला था। इससे पहले आधुनिक मानव का सबसे प्राचीन अवशेष अफ्रीका में मिला था, जो दो लाख साल पुराना था। इसके कारण शोधार्थी यह मान रहे थे कि मानव कि उत्पत्ति अफ्रीका से हुई थी।सीटी स्कैन और एक्स रे से पता चलता है कि ये दांत बिल्कुल आधुनिक मानवों जैसे हैं और इजरायल के ही दो अलग जगहों पर पाए गए दांत से मेल खाते हैं। इजरायल के दो अलग जगहों पर पाए गए दांत एक लाख साल पुराने हैं।

गुफा में काम कर रहे शोधार्थियों के मुताबिक इस खोज से वह धारणा बदल जाएगी कि मानव की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी।गुफा की खोज करने वाले तेल अवीव विश्वविद्यालय के अवि गाफेर और रैन बरकाई ने कहा कि चीन और स्पेन में मिले मानव अवशेष और कंकाल से हालांकि मानव की अफ्रीका में उत्पत्ति की अवधारणा कमजोर पड़ी थी, लेकिन यह खोज उससे भी महत्वपूर्ण है।



'आदि मानव शाकाहारी भी थे'

http://thatshindi.oneindia.in/news/2010/12/28/neanderthalvegskj.html

निएंडरथल मानव सब्ज़ियां भी खाया करते थेआदि मानवों पर किए गए एक नए शोध के अनुसार आदिमानव (निएंडरथल) सब्ज़ियां पकाते थे और खाया करते थे.अमरीका में शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें निएंडरथल मानवों के दांतों में पके हुए पौधों के अंश मिले हैं.यह पहला शोध है जिसमें इस बात की पुष्टि होती है कि आदिमानव अपने भोजन के लिए सिर्फ़ मांस पर ही निर्भर नहीं रहते थे बल्कि उनके भोजन की आदतें कहीं बेहतर थीं.

यह शोध प्रोसिडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज़ में छपा है.आम तौर पर लोगों में आदि मानवों के बारे में ये धारणा रही है कि वो मांसभक्षी थे और इस बारे में कुछ परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी मिल चुके हैं. अब उनकी हड्डियों की रासायनिक जांच के बाद मालूम चलता है कि वो सब्ज़ियां कम खाते थे या बिल्कुल ही नहीं खाते थे.इसी आधार पर कुछ लोगों का ये मानना था कि मांस भक्षण के कारण ही हिमकाल के दौरान बड़े जानवरों की तरह ये मानव भी बच नहीं पाए. हालांकि अब दुनिया भर में निएंडरथल मानवों के अवशेषों की जांच रासायनिक जांच से मिले परिणामों को झुठलाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इन मानवों के दांतों की जांच के दौरान उसमें सब्ज़ियों के कुछ अंश मिले हैं जिसमें कुछ तो पके हुए हैं.निएंडरथल मानवों के अवशेष जहां कहीं भी मिले हैं वहां पौधे भी मिलते रहे हैं लेकिन इस बात का प्रमाण नहीं था कि ये मानव वाकई सब्ज़ियां खाते थे. जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलिसन ब्रुक्स ने बीबीसी न्यूज़ से कहा, ‘‘ हमें निएंडरथल साइट्स पर पौधे तो मिले हैं लेकिन ये नहीं पता था कि वो वाकई सब्ज़ियां खाते थे या नहीं. हां लेकिन अब तो लग रहा है कि उनके दांतों में सब्ज़ियों के अंश मिले हैं तो कह सकते हैं कि वो शाकाहारी भी थे.’’



200 साल पुरानी एक सुरंग

http://hindi.webdunia.com/samayik/deutschewelle/dwnews/1010/20/1101020084_1.htm

भारत की आर्थिक राजधानी में 200 साल पुरानी एक सुरंग मिली है। इतिहासकारों का कहना है कि निर्माण कार्य के दौरान अनायास इस सुरंग के मिलने से मिट्टी में दबे पड़े अतीत से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण नए तथ्यों का पता चलेगा। मुंबई में डाक विभाग की ओर से की जा रही खुदाई के दौरान मजदूरों को इस सुरंग का पता चला। यह सुरंग दक्षिण मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल इलाके में स्थित डाक घर के नीचे मिली है।डाक विभाग की निदेशक आभा सिंह ने बताया कि इस जगह पर अब तक झंडारोहण होता था और किसी को इसके ठीक नीचे मौजूद सुरंग के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। मजदूरों ने जब पामस की नाली को साफ करने के लिए मामूली सी खुदाई की तो कुछ सीढ़ियाँ दिखाई दीं। इनको साफ करने पर देखा गया कि सीढ़ियाँ सुरंग की ओर जा रही थी। इससे पहले बीते शुक्रवार को एक अखबार के रिपोर्टर ने भी सीढ़ियों की तरफ डाक विभाग का ध्यान आकर्षित किया था। उसकी सूचना पर ही मजदूरों को कूड़ा करकट से अटी पड़ी सीढ़ियों की तरफ खुदाई करने को कहा गया। मोटी दीवारों और पिलर के सहारे बनाई गई इस सुरंग में नीचे एक बड़ा सा हॉल पाया गया जिसके फर्श पर बिखरी पड़ी गंदगी के बीच कुछ अनजान पौधे मिले हैं जिनपर सुंदर फूल भी पाए गए। इसके अलावा भी तमाम पुरानी चीजें बिखरी पाई गई। मुंबई में पुरातत्व अधिकारी दिनेश अफजालपुरकर ने बताया कि इस सुरंग का दौरा कर इसके पुरातात्विक महत्व का पता लगाया जाएगा। इसके बाद ही इसके संरक्षण और उपयोग संबंधी भविष्य की रूपरेखा तय की जाएगी।



24 सौ साल पुराना 'सूप' मिला

http://thatshindi.oneindia.in/news/2010/12/14/chinasoupap.html

माना जा रहा है कि ये चीन का पहला 'बोन सूप' है.चीन की राष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देश के भूगर्भशास्त्रियों को एक ऐसा कटोरा हाथ लगा है जिसमें मौजूद सूप 24 सौ साल पुराना हो सकता है.ये सूप कांसे के एक बर्तन में सुरक्षित रखा था और इस बर्तन का ढक्कन ऊपर से बंद था.बंद बर्तन के अंदर सूप का तरल पदार्थ और उसमें हड्डियाँ सुरक्षित पाई गई हैं.

ये बर्तन एक खुदाई के दौरान चीन के प्राचीन शहर सियान में मिला.चीन के मशहूर मिट्टी के लड़ाके यानि 'टेराकोटा वारियर्स' इसी शहर के हैं.अब इस तरल पदार्थ की जाँच ये पता करने के लिए हो रही है कि ये बना किससे था और इसमें किन चीज़ों का इस्तेमाल हुआ था.इस खुदाई के दौरान बिना किसी गंध वाला एक और तरल पदार्थ मिला जिसके बारे में माना जा रहा है कि वो एक किस्म की शराब, वाइन है।

स्थानीय एयरपोर्ट तक जाने के लिए एक उपमार्ग बनाने के उद्देश्य से की जा रही खुदाई के दौरान ये बर्तन एक कब्र की खुदाई के समय मिले.चीन की मीडिया में कहा गया है कि ये चीन के इतिहास में पहले 'बोन सूप' की खोज है.चीन की मीडिया के मुताबिक ये खोज 475-221 ईसा पूर्व के मध्य देश में रह रहे लोगों के बारे में, उनकी सभ्यता और खान-पान वगैरह के बारे में पता लगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि जिस कब्र से सूप और उसका मर्त्तबान मिला है, वो या तो किसी ज़मींदार या फिर निम्न स्तर के किसी सैनिक अधिकारी का रहा होगा.सियान 11 सौ साल से ज़्यादा लंबे समय तक चीन की राजधानी रहा थाचीन के पहले बादशाह, किन शिहुआंग की कब्रगाह के स्थल पर 1974 में इसी शहर में चीन की मशहूर 'टेराकोटा आर्मी' मिली थी। 221 ईसा पूर्व में किन शिहुआंग ने चीन के एकीकरण का नेतृत्त्व किया था उन्होंने 210 ईसा पूर्व तक चीन पर शासन किया था।

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...