*आर्य मूलतः भारतीय थे। और आरोप है कि आर्य और द्रविड़ का सिद्धांत गलत सामाजिक विभाजन के लिए प्रतिपादित किया गया। अब सिद्ध होगया है कि आर्य और द्रविड़ एक ही थे और आर्य का अर्थ सिर्फ ब्राह्मण नहीं बल्कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, सिख, जैन सभी भारतीय हैं। आरोप है कि हिंदू समाज और भारतीय इतिहास को गलत पेश करने की मुस्लिम, अंग्रेजी, योरोपीय, वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों की कुत्सित मानसिकता ने इतिहास को गलत पेश किया है। अब सब सच सामने आ रहा है। पढ़िए यह लेख। हिंदी बाज के फेसबुक वाल से साभार।:-*
*आज इतिहास के भी संशोधन की जरूरत है..*
*ब्राह्मण :- यूरेशिया का सच और झूठ*
पहले झूठ यह कि ब्राह्मण आर्य (आर्य का अर्थ राजपूत, जैन, ब्राह्मण और सभी सवर्ण जातियों से है) घोड़ों पर सवार तलवार चमकाते हुए यूरेशिया से भारत आये। यहाँ के मूल निवासियों की जमीन, घर, धन दौलत संपत्ति पर कब्जा कर लिया. मूल निवासियों को लूटने के बाद ब्राह्मणों ने मल मूत्र उठवाने और मजदूरी के इरादे से उन्हें अपना गुलाम बना लिया..
अब सच्ची बात...
भारत में एक कहावत है कि झूठ के पैर नहीं होते। अब उस झूठ के भी पैर नहीं रहे जो वामपंथी इतिहासकारों ने दशकों से फैलाया हुआ था। इन दशकों में वामपंथी कुछ भारतीयों को यह झूठ समझाने में सफल रहे कि आर्य बाहर से आए थे। उन्होंने हिंसा कर भारत के मूल निवासियों को मार भगाया। मूल रूप से इस थ्योरी के जनक मैक्स मूलर को माना जाता है। हालांकि इतिहासकारों में आर्यों को बाहरी बताने वाली थ्योरी को लेकर पहले से ही मतभेद रहे हैं।
हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में पुरातत्व विभाग की खुदाई में दो मानव कंकाल मिले थे। इनमें एक कंकाल पुरुष का तो दूसरा महिला का है। इन कंकालों की डीएनए रिपोर्ट और कई अन्य सैंपलों से जुटाए गए डाटा ने वामपंथी इतिहासकारों के झूठ को धराशाई कर दिया। वैज्ञानिक आर्कियोलॉजिकल और जेनेटिक डेटा के अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंचे के आर्य और द्रविड एक ही थे।
हिंदी के एक प्रमुख समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता के बड़े केंद्रों में से एक है। वर्ष 2015 में पुरातत्वविदों ने यहां करीब 300 एकड़ में खुदाई शुरू की थी। राखीगढ़ी साइट की शोध टीम के सदस्य और पुणे स्थित डेक्कन कॉलेज डीम्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर #प्रो_वसंत_शदे और जेनेटिक साइंटिस्ट डॉ नीरज राय ने यह जानकारी दी। शोध में सामने आया कि खुदाई में कंकाल 5000 साल पुराने हैं। इनकी डीएनए जांच कराई गई। इसके अध्य़यन से पता चला कि अफगानिस्तान से अंडमान तक सभी का एक ही जीन है और करीब 12 हजार साल से दक्षिण एशिया वासियों का एक ही जीन रहा है यानी सबका एक ही पूर्वज रहा है।
इससे वामपंथी इतिहासकारों का वह दावा खोखला साबित हुआ जिसके आधार पर वह भारतीयों के बीच आर्यों और अनार्यों की खाई खींचने में सफल रहे थे।
आज भी दक्षिण भारत की कई राजनीतिक पार्टियां इसी थ्योरी को आधार बताकर अपने को द्रविड बताती हैं और हिंदी समेत कई भारतीय मूल्यों को नकारती हैं।
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आर्य को बाहरी बताने वाले आज तक आर्यों का मूल स्थान नहीं बता सके।
इसलिए हमारे देश के बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों को इस पर जरूर विचार करना चाहिए कि इस असत्यापित तथ्य को हम आज भी इतिहास के रूप में हमारे बच्चों को क्यों पढ़ा रहे हैं ???
मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि तथ्यों के आधार पर इतिहास को पुनः लिखने की आवश्यकता है कि अगर ब्राह्मण सभी को हराकर राज्य जीत चुके थे तो उन्होंने सत्ता किसी और को क्यो सौंप दी और खुद मांग कर क्यों खाने लगे???
गद्दार वामपंथियों के मुंह पर दे मारो इस पोस्ट को.... मित्रों इनकी हिन्दू समाज को आपस में लड़वाकर तोड़ने की साज़िश फेल हो चुकी।
(साभार)
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