पहले इंडोनेशिया, फिर चीन, ब्राजील, श्रीलंका और अब जापान। पूरी दुनिया पर कुदरत का कहर टूट रहा है। आए दिन सुनामी, भूकंप, ज्वालामुखी फटने, बाढ़ और बर्फबारी जैसे धरती पर मंडराते खतरों के चलते दुनिया के खत्म होने की चर्चाएं भी जोर पकड़ने लगी हैं। हाल के वर्षों की कुछ घटनाओं ने इस शंका को प्रबल कर दिया है। प्रलय की पौराणिक मान्यताओं को वैज्ञानिक भी सही साबित कर रहे हैं।
नासा की चेतावनी
अमेरिकी अंतरिक्षण अनुसंधान केंद्र नासा के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि 2012 में धरती पर भयानक तबाही आने वाली है। इन वैज्ञानिकों ने पिछले साल अगस्त में सूरज में कुछ अजीबोगरीब हलचल देखी। नासा के उपग्रहों से रिकॉर्ड करने के बाद वैज्ञानिकों ने इन आग के बादलों से धरती पर भयानक तबाही की चेतावनी दी। इनका दावा है कि सूरज की तरफ से उठा खतरा धरती की तरफ चल पड़ा है। वैज्ञानिक इसे सुनामी कह रहे हैं। आग की ये लपटें सूरज की सतह पर हो रहे चुंबकीय विस्फोटों की वजह से पैदा हुईं और लावे का ये तूफान धरती की तरफ रुख कर चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये तूफान सूरज से धरती के रास्ते में है और कभी भी धरती से टकरा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर सोलर सुनामी धरती से टकराती है तो जबर्दस्त रोशनी पैदा होगी। दुनिया के बड़े हिस्से में अंधकार छा जाएगा। सेटेलाइटों को नुकसान पहुंच सकता है। संचार उपकरण ठप हो जाएंगे। मोबाइल फोन काम करना बंद कर देंगे। विमानों के उड़ान में मुश्किलें पैदा होंगी। नासा के वैज्ञानिकों ने 2013 में सौर तूफान की चेतावनी पहले ही दे दी थी। वे इस बारे में लगातार शोध कर रहे हैं।
प्रलय से जुड़े मिथ, धार्मिक ग्रंथों में प्रलय का जिक्र
प्रलय शब्द का जिक्र लगभग हर धर्म के ग्रंथों में मिलता है। करीब 250 साल पहले महान भविष्यवक्ता नास्त्रेस्देमस ने भी प्रलय को लेकर घोषणा की है हालांकि इसमें उसके समय को लेकर कोई घोषणा नहीं है।
महाभारत - महाभारत में कलियुग के अंत में प्रलय होने का जिक्र है, लेकिन यह किसी जल प्रलय से नहीं बल्कि धरती पर लगातार बढ़ रही गर्मी से होगा। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख मिलता है कि सूर्य का तेज इतना बढ़ जाएगा कि सातों समुद्र और नदियां सूख जाएंगी। संवर्तक नाम की अग्रि धरती को पाताल तक भस्म कर देगी। वर्षा पूरी तरह बंद हो जाएगी। सबकुछ जल जाएगा, इसके बाद फिर बारह वर्षों तक लगातार बारिश होगी। जिससे सारी धरती जलमग्र हो जाएगी।
बाइबिल - इस ग्रंथ में भी प्रलय का उल्लेख है जब ईश्वर, नोहा से कहते हैं कि महाप्रलय आने वाला है। तुम एक बड़ी नौका तैयार करो, इसमें अपने परिवार, सभी जाति के दो-दो जीवों को लेकर बैठ जाओ, सारी धरती जलमग्र होने वाली है।
इस्लाम - इस्लाम में भी कयामत के दिन का जिक्र है। पवित्र कुरआन में लिखा है कि कयामत का दिन कौन सा होगा इसकी जानकारी केवल अल्लाह को है। इसमें भी जल प्रलय का ही उल्लेख है। नूह को अल्लाह का आदेश मिलता है कि जल प्रलय होने वाला है, एक नौका तैयार कर सभी जाती के दो-दो नर-मादाओं को लेकर बैठ जाओ।
पुराण - हिदू धर्म के लगभग सभी पुराणों में काल को चार युगों में बाँटा गया है। हिंदू मान्ताओं के अनुसार जब चार युग पूरे होते हैं तो प्रलय होती है। इस समय ब्रह्मा सो जाते हैं और जब जागते हैं तो संसार का पुन: निर्माण करते हैं और युग का आरम्भ होता है।
नास्त्रेस्देमस की भविष्यवाणी - नास्त्रेस्देमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है कि मै देख रहा हूँ,कि एक आग का गला पृथ्वी कि ओर बाद रहा है,जो धरती से मानव के काल का कारण बनेगा। एक अन्य जगह नास्त्रेस्देमस लिखते हैं, कि एक आग का गोला समुन्द्र में गिरेगा और पुरानी सभ्यता के समस्त देश तबाह हो जाएंगे।
प्रलय को लेकर वैज्ञानिकों के बयान - केवल धर्म ग्रंथों में ही नहीं, बल्कि कई देशों में वैज्ञानिकों ने भी प्रलय की अवधारणा को सही माना है। कुछ महीनों पहले अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने घोषणा कि है कि 13 अप्रैल 2036 को पृथ्वी पर प्रलय हो सकता है। खगोलविदों के अनुसार अंतरिक्ष में घूमने वाला एक ग्रह एपोफिस 37014.91 किमी/ प्रति घंटा) की रफ्तार से पृथ्वी से टकरा सकता है। इस प्रलयंकारी भिडंत में हजारों लोगों की जान भी जा सकती है। हालांकि नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि इसे लेकर घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
माया कैलेंडर की भविष्यवाणी
माया कैलेंडर भी कुछ ऐसी ही भविष्यवाणी कर रहा है। साउथ ईस्ट मेक्सिको के माया कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 के बाद की तिथि का वर्णन नहीं है। कैलेंडर उसके बाद पृथ्वी का अंत बता रहा है।
माया कैलेंडर के मुताबिक 21 दिसंबर 2012 में एक ग्रह पृथ्वी से टकराएगा, जिससे सारी धरती खत्म हो जाएगी। करीब 250 से 900 ईसा पूर्व माया नामक एक प्राचीन सभ्यता स्थापित थी। ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में इस सभ्यता के अवशेष खोजकर्ताओं को मिले हैं। ऐसी मान्यता है कि माया सभ्यता के काल में गणित और खगोल के क्षेत्र उल्लेखनीय विकास हुआ था। अपने ज्ञान के आधार पर माया लोगों ने एक कैलेंडर बनाया था। कहा जाता है कि उनके द्वारा बनाया गया कैलेंडर इतना सटीक निकला है कि आज के सुपर कम्प्यूटर भी उसकी गणनाओं में 0.06 तक का ही फर्क निकाल सके और माया कैलेंडर के अनेक आकलन, जिनकी गणना हजारों सालों पहले की गई थी, सही साबित हुए हैं।
चीन के धार्मिक ग्रंथ ‘आई चिंग’ व ‘द नेशनल फिल्म बोर्ड ऑफ कनाडा’ ने भी इन मतों को बल दिया है। लेकिन विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता व हिंदू मान्यताओं के प्रतीक 5123 वर्ष पुराने टांकरी कलेंडर ने इस बात को पूरी तरह से नकार दिया है।
वेब पर साजिशों की खोज करते रहने वालों ने दावा किया है कि वैब-बॉट्स यानी वैब रोबोट्स ने 11 सितंबर के हमलों और 2004 की सुनामी के बारे सटीक भविष्यवाणी की थी। अब उनका कहना है कि 21 दिसंबर 2012 को कोई आफत धरती को मटियामेट कर देगी। वैब-बॉट् एक तरह से ‘स्पाइडर’ जैसा सॉफ्टवेयर होता है जिसे 1990 में स्टॉक मार्केट के बारे भविष्यवाणी करने के लिए विकसित किया गया था।
प्रलय के संकेत?
जलवायु परिवर्तन का खतरा: हमारी औद्योगिक प्रगति और उपभोक्तावादी संस्कृति, तापमान में विश्वव्यापी वृद्धि, वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर। यानी कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन की वजह से धरती के अस्तित्व पर खतरा है। बढते औद्योगीकरण के चलते जलवायु परिवर्तन का खतरा कई रूपों में सामने आ रहा है। गत क्रिसमस के समय यूरोप तथा अमेरिका में बर्फीली हवाओं और जबरदस्त हिमपात के कारण तापमान में आई भारी गिरावट से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। हिमपात और बर्फबारी की वजह से कई दिनों तक सड़क, रेल और हवाई यातायात ठप रहा था। लंदन, गेटविक और स्टैनस्टड से संचालित होने वाली सभी उड़ानें कई दिनों तक बाधित रहीं। ब्रिटिश एयरवेज ने 2000 से ज्यादा फ्लाइटें निरस्त की। वर्जीनिया, मैरीलैंड, पश्चिम वर्जीनिया और डेलावेयर प्रांतों में आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। वहीं ऑस्ट्रिया, फिनलैंड और जर्मनी में तापमान शून्य से 33 डिग्री सेल्सियस नीचे पहुंच गया। अमेरिका और यूरोपीय देशों में ऐसी बर्फबारी पहले कभी नहीं देखी गई थी।
जर्मनी में पोट्सडाम के जलवायु शोध संस्थान के वैज्ञानिक और जर्मन सरकार के जलवायु सलाहकार डॉ.स्तेफान राम्सटोर्फ के शब्दों में कहें तो हवा में कार्बन डाइऑक्साइड का घनत्व 1970 वाले दशक की तुलना में दोगुना हो गया है। जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समिति IPCC के आंकड़ों के अनुसार धरती का मौजूदा औसत तापमान पिछले एक हजार वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है। पिछली पूरी शताब्दी में धरती का औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ा था, जबकि अब वह 0.74 डिग्री की दर से बढ़ रहा है। राम्सटोर्फ का कहना है कि इस बढ़ोतरी को 2050 तक के अगले 40 वर्षों में कुल मिलाकर दो डिग्री की वृद्धि से नीचे ही रखना होगा, नहीं तो इसके बेहद गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
इस समय औसत वैश्विक तापमान लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है। अगले चार दशकों में उस में दो डिग्री तक की भी बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए, नहीं तो प्रलय आ जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि तापमान मामूली-सा बढ़ने से भी समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ेगा और एक बार बढ़ गया तापमान सदियों, शायद हजारों वर्षों तक नीचे नहीं उतरेगा। स्टैनफोर्ड के कृषि वैज्ञानिक डेविड लोबेल और अंतरराष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र के अनुसंधानकर्ताओं ने आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते अनाज के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा और इससे दुनियाभर में खाद्यान्न की किल्लत हो सकती है।
बढ़ते समुद्र स्तर से डूब जाएंगे तट: हाल में कोपनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित इंटरनेशनल साइंटिफिक कांग्रेस में यह बात सामने आई कि सन् 2100 तक समुद्र के जलस्तर में करीब एक मीटर तक बढ़ोतरी हो सकती है। संभावना है कि यह बढ़ोतरी एक मीटर से भी अधिक हो सकती है। यदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर तत्काल रोक नहीं लगाई गई तो समुद्री तट के किनारे वाले इलाकों पर इसका असर साफ दिखेगा और दुनिया की आबादी का दस प्रतिशत इससे प्रभावित होगा।
इस सिलसिले में हुए एक नए अनुसंधान में चेतावनी दी गई है कि पहले की तुलना में समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ सकता है। यह कहा गया है कि वर्ष 2100 तक समुद्र का पानी 75 से 190 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है।
सेंटर फॉर ऑस्ट्रेलियन वेदर एंड क्लाइमेट रिसर्च के डॉ. जॉन चर्च ने इस सम्मेलन में कहा, ‘सैटेलाइट और जमीनी उपकरणों से ली गई ताजा तस्वीरों से साफ है कि 1993 के बाद से समुद्र के जलस्तर में हर साल तीन मिलीमीटर की बढ़ोतरी हो रही है जो पिछली शताब्दी के औसत से अधिक है। हिमालय, ग्रीनलैंड तथा उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर की बर्फ पिघलने से भी धरती पर का तापमान और समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, क्योंकि बर्फ जिस सूर्यप्रकाश को आकाश की तरफ परावर्तित कर देती है, वह उसके पिघल जाने से बनी सूखी जमीन सोखने लगेगी।’ साभार-दैनिक भाष्कर
7 comments:
sahi kaha !
कठोर शब्दों के लिए पहले से ही क्षमाप्रार्थी हूँ !
१. नासा की चेतावनी :अमेरिकी अंतरिक्षण अनुसंधान केंद्र नासा के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि 2012 में धरती पर भयानक तबाही आने वाली है।
क्या आप इस खबर का सन्दर्भ देंगे ? यह एक कोरी अपवाह है ! नासा कहाँ से आ गया ? यह नासा की नहीं कुछ सरफिरे लोगो की बनायी गयी कहानी है !
२. सूरज की तरफ से उठा खतरा धरती की तरफ चल पड़ा है। वैज्ञानिक इसे सुनामी कह रहे हैं।
ऐसे कई खतरे हर महीने आते रहते है, पृथ्वी तक कब आते है और जाते है पता भी नहीं चलता ! और आपकी जानकारी के लिए सूर्य इस समय सबसे ज्यादा शांत है.
३. माया कैलेंडर भी कुछ ऐसी ही भविष्यवाणी कर रहा है। साउथ ईस्ट मेक्सिको के माया कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 के बाद की तिथि का वर्णन नहीं है।
आपकी कार के मीटर के ९९९९९९९ तक पहुँच जाने के बाद क्या होता है ? कार का आस्तित्व ख़त्म हो जाता है या एक धमाके से कार उड़ जाती है ? या आप फीर से ०००००० से शूरो करते है ?
कुल मिलाकर एक बकवास और वाहियात जानकारी से भरी पोष्ट
डराने वाले संकेत.
जो सबके साथ होगा वही अपने साथ होगा फिर काहे का सरदर्द ।
ब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?
अरे... रे... आकस्मिक आक्रमण होली का !
Kyon Dara rahe ho bhai, ibhi kuchh nahi hone wala.
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का विनम्र प्रयास।
jo maine pase bank main dal rakhe hai 10,000,00 30 saal unka kya hoga jo log marne ke bat karte hai who sabhi darte hai apne maut se aisa kuch nahin hone wala koi aisa nasa nahin hai nasa wale fuddu hai jab nasha itni fast hai jab japan manin bhukamp aaya tha tab nasha lunch karne gai thi kya LOVELY SINGH RAJPUT.
Dara nahi rahe samjha rahe hai.Hame samjhana chahiye aur vikas prakrti ki sima me rahakar karna chahiye.
eco friendly vikas model ka use karna chahiye.
Otherwise that will true.
abhi aap log samajh sakte hai, mousam ke mijaj ko dekhkar. 1-mahine ke around chang ho chuka hai already within 10 years.
So just think about nature
ek din sabhi ko marna hai but kuch achcha kar ke maro......
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