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Friday, August 28, 2015

गीता प्रेस, गोरखपुर में लगा 'ताला'

     शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसने कभी हिन्दू धार्मिक पुस्तक पर 'गीता प्रेस, गोरखपुर' की लाइन न देखी हो। भारत में धर्म की गंगा बहाने वाली गीता प्रेस, गोरखपुर इन दिनों 'संकट' में है। खबरों के मुताबिक ट्रस्ट और कर्मचारियों के बीच विवाद से गीता प्रेस, गोरखपुर पर 25 दिनों से ताला लगा हुआ है। ट्रस्ट और कर्मचारियों के विवाद के बाद प्रेस बंद पड़ी है। हर हिन्दू को संस्कृति का पाठ पढ़ाने वाली ‍गीता प्रेस, गोरखपुर वर्तमान में बदहाल स्थिति में है। 

हर हिन्दू धर्म को मानने वाले व्यक्ति के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर एक तीर्थ की तरह है, लेकिन आज इस तीर्थ से ज्ञान की गंगा नहीं बह रही है। जानकारी के मुताबिक गीता प्रेस, गोरखपुर रोजाना करीब 50 हजार से ज्यादा धार्मिक पुस्तकें बेचती हैं।

कब हुई थी शुरुआत : गीता प्रेस, गोरखपुर की स्थापना 1923 में हुई थी। गीता प्रेस, गोरखपुर का संचालन कोलकाता स्थित गोविंद भवन संस्था करती है। आम लोगों के बीच सनातन धर्म के प्रचार के लिए गीता प्रेस की स्थापना की गई थी।

कम लागत पर पुस्तकें : प्रेस का स्थापना का उद्देश्य कम मूल्य पर धार्मिक किताबें उपलब्ध कराना था। गीता प्रेस, गोरखपुर धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी संस्था है। प्रेस में करीब 780 पुस्तकों का प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में होता है।

गीता प्रेस वह पहली प्रेस है, जिसने नेपाली भाषा में रामायण का प्रकाशन किया था। इसकी लाइब्रेरी में कई दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं। इसके कुल में 35 प्रतिशत हिस्सा रामचरित मानस का है। गीता प्रेस बिना लाभ के पुस्तकों का विक्रय करती है। लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम कीमतों पर किताबों को बेचा जाता है।  इस बात का उदाहरण है कि यहां छपी हनुमान चालीसा चाय से भी कम कीमत 2 रुपए में मिल जाती है।

यह है विवाद : खबरों के मुताबिक प्रेस में करीब 180 स्थायी और 300 अस्थायी कर्मचारी काम करते हैं। बताया जाता है कि ट्रस्ट और कर्मचारियों के बीच दो मांगों पर विवाद है। पहली, कर्मचारी सभी के लिए समान वेतन की मांग कर रहे हैं। दूसरी, अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने को लेकर है।

इसी विवाद के बाद बाद गीता प्रेस, गोरखपुर में छपाई का काम नहीं हो रहा है। खबरों के अनुसार ट्रस्ट ने कर्मचारियों पर मारपीट का आरोप भी लगाया है। मारपीट के आरोप में ट्रस्ट ने 17 कर्मचारियों को निलंबित किया है। कर्मचारी इन 17 कर्मचारियों को भी वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

किसी से नहीं लेती आर्थिक मदद : गीता प्रेस, गोरखपुर में हर महीने करीब 400 टन कागजों पर छपाई होती है। प्रेस इस पर किसी भी प्रकार की सब्सिडी नहीं लेती है। गीता प्रेस बाजार भाव पर ही कागजों की खरीदी करती है। गीता प्रेस की नीति के मुताबिक वह सरकार, संस्था या किसी व्यक्ति से भी किसी भी तरह की आर्थिक मदद भी नहीं ली जाती है।

गलती पर इनाम : गांधीजी की सलाह पर प्रेस की किसी धार्मिक पुस्तक पर विज्ञापन और किसी पुस्तक की समीक्षा नहीं छापी जाती है। यहां तक की किसी जीवित व्यक्ति का फोटो भी किसी पुस्तक में नहीं प्रकाशित किया जाता है। धार्मिक पुस्तक में किसी प्रकार की गलती होने पर बताने वाले पाठक को प्रेस इनाम भी देती है।

गीता प्रेस ने दी सफाई : इस पूरे विवाद पर गीता प्रेस गोरखपुर ने ट्‍वीट कर सफाई दी है कि गीता प्रेस को किसी प्रकार के अनुदान की आवश्यकता नहीं है। कर्मचारियों से बात चल रही है और सभी कर्मचारी जल्द काम पर लौटेंगे।
http://hindi.webdunia.com/regional-hindi-news/gita-press-gorakhpur-115082800076_1.html

Thursday, August 6, 2015

काशी के भूगर्भीय इतिहास में जुड़ेगा नया अध्याय

   
                    शहर के नीचे दबे अनजान नालों का बनेगा नक्शा
  विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक है काशी। इसे वर्तमान में बनारस या वाराणसी के नाम से जाना जाता है. यह शहर जितना पुराना है ,उतना ही रहस्यमय है इसकी संरचना की बात। इस शहर के पुराने सीवर और पेयजल की पुरानी पाईपलाइनें कहां से होकर गुजरती हैं, ठीक ठीक किसी को भी पता नहीं। अब शहर में मेट्रो केनिर्माण के कारण ऐसे कई रहस्यों से पर्दा उठनेवाला है। फिलहाल तो मुगलकालीन शाहीनाला का मामला सामने आया है। यह नाला आज भी अस्तित्व में है मगर कहां से कहां तक फैला है इसका किसी को भी ठीक पता नहीं हैं। इस कवायद से यह भी संभव है कि प्राचीन काशी के कुछ अनजाने रहस्यों से पर्दा उठेगा और शहर के पुराने सीवर व पानी के पाईपलाईनों का नक्शा तैयार हो पाए।

   मुगलकाल के दौरान ‘शाही नाला’ को ‘शाही सुरंग’ के नाम से जाना जाता था। इसकी खासियत यह बताई जाती है कि इसके अंदर से दो हाथी एक साथ गुजर सकते हैं। शहर के पुरनियों का कहना है कि अंग्रेजों ने इसी ‘शाही सुरंग’ के सहारे बनारस की सीवर समस्या सुलझाने का काम शुरू किया। जेम्स प्रिंसेप के अनुसार, इसका काम वर्ष 1827 में पूरा हुआ था। इसे लाखौरी ईंट और बरी मसाला से बनाया गया था। अस्सी से कोनिया तक इसकी लंबाई 24 किलोमीटर बताई जाती है।
    यह अब भी अस्तित्व में है लेकिन उसकी भौतिक स्थिति के बारे में सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। पुरनियों के मुताबिक यह नाला अस्सी, भेलूपुर, कमच्छा, गुरुबाग, गिरिजाघर, बेनियाबाग, चौक, पक्का महाल, मछोदरी होते हुए कोनिया तक गया है।
    वाराणसी शहर के लिए पहेली बने ‘शाही नाला’ की भौतिक स्थिति के अध्ययन, बाधाओं को चिह्नित करने के साथ ही उसके जीर्णोद्धार की पहल शुरू हो गई है। मुगलकाल के दौरान ‘शाही नाला’ को ‘शाही सुरंग’ के नाम से जाना जाता था। रोबोटिक कैमरों के जरिये काशी के इस प्राचीन नाले के स्वरूप की जानकारी की जाएगी। इसके लिए जापान इंटरनेशनल को-आपरेशन एजेंसी (जायका) ने 92 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई की निगरानी में चयनित निजी एजेंसी यह कार्य कराएगी। इसके लिए प्रारंभिक सर्वे शुरू हो गया है। तय कार्ययोजना के मुताबिक सितंबर बाद रोबोटिक सर्वे का काम शुरू हो जाएगा। प्राचीन ‘शाही नाला’ मौजूदा समय में भी शहर के सीवर सिस्टम का एक बड़ा आधार है लेकिन इसका नक्शा नगर निगम या जलकल के पास नहीं है। शहर की घनी आबादी से होकर गुजरा यह नाला पूरी तरह भूमिगत है।
     यह प्राचीन काशी की जलनिकासी व्यवस्था की एक नजीर भी है। शहर के पुरनिये बताते हैं कि अंदर ही अंदर शहर के कई अन्य छोटे-बड़े नाले इससे जुड़े हैं लेकिन इसकी भौतिक स्थिति का पता न होने से नालों के जाम होने या क्षतिग्रस्त होने पर उसकी मरम्मत तक नहीं हो पाती। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के महाप्रबंधक जेबी राय ने बुधवार को बताया कि यह हकीकत है कि इसका नक्शा नगर निगम या जलकल के पास नहीं है। इस प्राचीन नाले की मुख्य लाइन अस्सी से कोनिया तक 7.2 किलोमीटर लंबी है, जो भेलूपुर चौराहा, बेनियाबाग मैदान, मछोदरी होते हुए गुजरी है। इसकी सहायक लाइनें शहर के अन्य हिस्सों में फैली हैं। उदाहरण के तौर पर, अर्दली बाजार से आकर एक शाखा इसमें मिलती है। सितंबर बाद रोबोटिक कैमरों की मदद से इस नाले की भौतिक स्थिति का बारीकी से अध्ययन होगा।
    मंडलायुक्त सभागार में बुधवार को मेट्रो रेल परियोजना के संबंध में हुई बैठक के दौरान ‘शाही नाला’ के नक्शे के बारे में भी चर्चा हुई। जीएम जेबी राय ने बताया कि सर्वे के आधार पर इसका नक्शा तैयार किया जाएगा। सर्वे के बाद ही इसकी वास्तविक गहराई, लंबाई, चौड़ाई और अन्य संबंधित जानकारियों का पता चल पाएगा।

(  फोटो व सामग्री- साभार अमर उजाला-http://www.amarujala.com/feature/samachar/national/mystery-of-shahi-nala-in-varanasi-hindi-news-dk/?page=0)

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