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Friday, August 27, 2021

कम्युनिस्टों ने जो किया नरसंहार ? वह कितना उचित था ?

कम्युनिस्ट नरसंहार की स्मृतियाँ -

पोस्ट मे दिया चित्र आपको बहुत वीभत्स और अप्रिय लग रहा होगा। परन्तु सच कड़वा होता है। चित्र कम्बोडिया के एक संग्रहालय (म्यूजियम) का है।

चीन के माओ के ग्रेट लीप के नाम पर 2 करोड़ से अधिक चीनियों का नरसंहार हो या स्टालिन का रूसी नर संहार। क्म्युनिस्टो का इतिहास ही नरसंहारों से भरा पड़ा है।

दुनिया के इतिहास में बेइंतहा 'जुल्म की दास्तानों' में से एक कंबोडिया की धरती पर लिखी गई थी। सिर्फ पाँच साल में 30 लाख से ज्यादा लोगों को मौत के घाट किस तरह उतारा गया, इसकी कहानी जेनोसाइड म्यूजियम (नरसंहार संग्रहालय) में आज भी दर्ज है। कंबोडिया के तत्कालीन राजा नॉरोडोम सिहानुक को अपदस्थ कर खमेर रूज के माओवादी नेता पोल पोट ने सन्‌ 1975 में सत्ता हथियाई थी। अगले पाँच साल तक पोल पोट ने इतने जुल्म ढाए कि इंसानियत काँप उठी। विरोधियों का दमन करने के लिए यातना शिविर और जेलें बनाई गईं। एक जेल हाईस्कूल में बनाई गई, जहाँ अब जेनोसाइड म्यूजियम बना दिया गया है।

मानव खोपड़ीओं का मीनार ... लगभग 5000 से अधिक मानव खोपड़ी ... शीशे की एक टावर में रखी हुई हैं ... . यह उन अभागे कंबोडियनस का सर है ... जिन्हे पोल पोट की कम्युनिस्ट सरकार ने 1975 से 1979 के बीच यहां लाकर हत्या कर दी। इस कट्टर माओवादी समूह ने 1975 मे कंबोडिया का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था. . इस शासनकाल के दौरान अत्यधिक काम, भुखमरी और बड़े पैमाने पर लोगों को फांसी देने के चलते करीब 20 लाख लोगों की मौत हो गई थी.
उन्होंने अपने नागरिकों को दुनिया से अलग-थलग कर दिया और शहर खाली कराने शुरू कर दिए. ख़ुद को बुद्धिजीवी मानने वालों को मार दिया गया. उनके शासन काल में चश्मा पहनने या विदेशी भाषा जानने वालों को अक्सर प्रताड़ित किया जाता था. मध्यवर्ग के लाखों पढ़े-लिखे लोगों को विशेष केंद्रों पर प्रताड़ित किया गया और मौत की सज़ा दी गई. इनमें सबसे कुख़्यात थी नाम पेन्ह की एस-21 जेल, जहाँ ख़मेर रूज के चार साल के शासन के दौरान 17 हज़ार महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को क़ैद रखा गया था.

कम्युनिस्ट सरकार कंबोडिया को वापस एक एग्रीकल्चरल कंट्री बनाना चाहते थे ... इसलिए शाहरो को समाप्त करके आबादी को गांव में शिफ्ट करने का निर्देश जारी किया गया. जिन्होंने भी आज्ञा का उल्लंघन किया उन्हें किलिंग फिल्डस में ले जाकर समाप्त कर दिया गया।

जिस स्थान पर यह म्यूजियम है वहाँ 30,000 से अधिक लोगों की हत्या हुई ... जिसमें अधिकतर लोगों की हत्या गोली मारकर नहीं की गई बल्कि कुदाल से उनकी सर के पीछे चोट मार कर अधमरा कर दिया गया। फिर उन्हें जीते जी गड्ढों में दफना दिया गया। सैनिक उन लाशों से जो भी कीमती चीज होती थी। उसे निकाल लेते थे तीन सौ से अधिक किलिंग फील्ड्स पूरे कंबोडिया में मौजूद है। जिसमें 15 लाख से ज्यादा लोगों की हत्या हुई। यहां पर कुछ ऐसी हड्डियां मिली ... जिससे पता चलता है कि मरने वाले की उम्र 6 महीने से भी कम थी। मतलब 6 महीने से कम उम्र के बच्चों की भी हत्या कर दी गई थी।

यह है कम्युनिस्टों का चरित्र। भारत के कम्युनिस्टों का चरित्र भी इससे अलग नहीं है। 1979 मे भारत के पश्चिमी बंगाल के मरिचझापी मे कम्युनिस्टों ने कई हजार (एक अनुमान से 40 हजार) नामशूद्रों की वीभत्स ह्त्या की थी। ये नामशूद्र दलित हिन्दू थे जो बांग्लादेश से जान बचा कर आए थे। ये कभी जोगेन्द्र मण्डल के बहकावे मे आकर पाकिस्तान (बांग्लादेश) मे रूक गए थे।

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