पेरु में स्थित प्राचीन स्थलों की खोज और उन पर शोध
पिछले चार साल से इटली के पुरातत्वविद सेटेलाइट तकनीक के जरिए पेरु में स्थित प्राचीन स्थलों की खोज और उन पर शोध करने का काम कर रहे हैं। इटली के पुरातत्वविदों की ये टीम सेटेलाइट के जरिए प्राप्त की गई तस्वीरों की मदद से ये काम कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर ये टीम देश के दक्षिणी भाग में हज़ारों साल पहले नाज्का सभ्यता द्वारा सूखे पठार पर उकेरे गए पशुओं के चित्रों को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
मिस्र में सालों से सेटेलाइट तस्वीरों की मदद से वहाँ के ऐसे प्राचीन स्थलों के बारे जाना जा सका है जिसें आमतौर पर नहीं देखा जा सकता था। लेकिन ये तकनीक दक्षिणी अमरीका में कुछ मायनों में नई है। पेरु कई प्राचीन सभ्यताओं का जन्म स्थल रहा है जिसमें से एक 'इंका सभ्यता' भी थी। पेरू में अनुमानित एक लाख ऐसे पुरातन स्थल है जिनमें से केवल कुछ को ही खोजा जा सका है।
सेटेलाइट से खोज : इटली के पुरातत्वविदों की टीम की अगुवाई कर रहे निकोल मेसिनी का कहना है कि इस तकनीक की मदद से उन स्थलों को खोजने में मदद मिलेगी जो आसमान सी ली गई तस्वीरों में नहीं दिखाई देती है।
उनका कहना है कि सेटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरों से वैज्ञानिकों को मिट्टी और पत्थरों की परतों को हटाकर उनके भीतर, या फिर घने जंगलों में भी देख पाएंगे। मसिनी का कहना है, 'पेरु में ज़्यादातर पुरातात्विक स्थान ऐसे है जहां पहुंचना कठिन है। जैसे वहां सीयरा नाम का एक मरुस्थल है जिसपर सीधे तौर पर और ना ही आसमान से निगरानी रखा जा सकती है। ऐसी स्थिति में निगरानी या स्थिति पर नजर रखना केवल सैटेलाइट डेटा की मदद से ही संभव है।'
साल 2008 में मेसिनी की टीम ने इन्फ्रा रेड और बहुआयामी तस्वीरों की मदद से पेरु के गहरे मरुस्थल में जाकर प्राचीन अडोब पिरामिड को खोज निकाला था। लेकिन सैटेलाइट की इस तकनीक का और एक महत्वपूर्ण उपयोग है।
उदाहरण के लिए इराक़ में इसका इस्तेमाल खाड़ी युद्ध से पहले और बाद में प्राचीन स्थलों में हुई लूटपाट के बाद हुए प्रभावों को जानने के लिए किया गया।
मेसिनी का मानना है कि पेरु में एक बड़े क्षेत्रफल में सभ्यता फैला हुई है लेकिन शोध करने के संसाधन कम है। सैटेलाइट तस्वीरों के तुलनात्मक अध्ययन से वैज्ञानिक ये भी पता लगा सकते है कि मानव गतिविधियों से इन पुरातात्विक स्थलों पर कोई नकारात्मक प्रभाव हुआ है।
इटली के पुरातत्वविदों का मानना है कि सैटेलाइट के ज़रिए अध्ययन मंहगा है, लेकिन पेरु में पर्यटन राजस्व का तीसरा बड़ा स्रोत है ऐसे में वे इस खर्च की भरपाई कर लेगा।
हजारों साल पहले भी खाए जाते थे पॉपकॉर्न!
एक नए शोध में पाया गया है कि उत्तरी पेरू के लोग साधारण अनुमान से 1,000 साल पहले भी पॉपकॉर्न खाया करते थे। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें पेरू में मकई के फूले हुए दाने मिले हैं, जो कि इस बात का संकेत है कि वहां रहने वाले लोग इसका इस्तेमाल मकई का आटा और पॉपकॉर्न बनाने में करते थे।
वॉशिंगटन के प्राकृतिक इतिहास संग्राहलय के मुताबिक पाए गए मकई के फूले हुए दानों में से सबसे पुराने करीब 6,700 साल पुराने थे। 'स्मिथसोनियन म्यूजम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री' के न्यू वर्ल्ड आर्केलॉजी विभाग की निरीक्षक डोलोर्स पिपर्नो ने कहा कि मैक्सिको में 9,000 साल पहले मकई को जंगली घास के जरिए उगाया जाता था।
उनका कहना था कि उनकी शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि साउथ अमेरिका में मकई के आने के एक हजार साल बाद ये महाद्वीप के दूसरे क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में पाया गया।
शोधकर्ताओं की टीम को मकई के बालों के अवशेष पारेदोन्स और हुआका प्रीटा नाम के प्राचीन स्थलों पर मिला। हालांकि शोधकर्ताओं का मानना है कि उस समय मकई लोगों के आहार का अहम हिस्सा नहीं था।
पिछले चार साल से इटली के पुरातत्वविद सेटेलाइट तकनीक के जरिए पेरु में स्थित प्राचीन स्थलों की खोज और उन पर शोध करने का काम कर रहे हैं। इटली के पुरातत्वविदों की ये टीम सेटेलाइट के जरिए प्राप्त की गई तस्वीरों की मदद से ये काम कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर ये टीम देश के दक्षिणी भाग में हज़ारों साल पहले नाज्का सभ्यता द्वारा सूखे पठार पर उकेरे गए पशुओं के चित्रों को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
मिस्र में सालों से सेटेलाइट तस्वीरों की मदद से वहाँ के ऐसे प्राचीन स्थलों के बारे जाना जा सका है जिसें आमतौर पर नहीं देखा जा सकता था। लेकिन ये तकनीक दक्षिणी अमरीका में कुछ मायनों में नई है। पेरु कई प्राचीन सभ्यताओं का जन्म स्थल रहा है जिसमें से एक 'इंका सभ्यता' भी थी। पेरू में अनुमानित एक लाख ऐसे पुरातन स्थल है जिनमें से केवल कुछ को ही खोजा जा सका है।
सेटेलाइट से खोज : इटली के पुरातत्वविदों की टीम की अगुवाई कर रहे निकोल मेसिनी का कहना है कि इस तकनीक की मदद से उन स्थलों को खोजने में मदद मिलेगी जो आसमान सी ली गई तस्वीरों में नहीं दिखाई देती है।
उनका कहना है कि सेटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरों से वैज्ञानिकों को मिट्टी और पत्थरों की परतों को हटाकर उनके भीतर, या फिर घने जंगलों में भी देख पाएंगे। मसिनी का कहना है, 'पेरु में ज़्यादातर पुरातात्विक स्थान ऐसे है जहां पहुंचना कठिन है। जैसे वहां सीयरा नाम का एक मरुस्थल है जिसपर सीधे तौर पर और ना ही आसमान से निगरानी रखा जा सकती है। ऐसी स्थिति में निगरानी या स्थिति पर नजर रखना केवल सैटेलाइट डेटा की मदद से ही संभव है।'
साल 2008 में मेसिनी की टीम ने इन्फ्रा रेड और बहुआयामी तस्वीरों की मदद से पेरु के गहरे मरुस्थल में जाकर प्राचीन अडोब पिरामिड को खोज निकाला था। लेकिन सैटेलाइट की इस तकनीक का और एक महत्वपूर्ण उपयोग है।
उदाहरण के लिए इराक़ में इसका इस्तेमाल खाड़ी युद्ध से पहले और बाद में प्राचीन स्थलों में हुई लूटपाट के बाद हुए प्रभावों को जानने के लिए किया गया।
मेसिनी का मानना है कि पेरु में एक बड़े क्षेत्रफल में सभ्यता फैला हुई है लेकिन शोध करने के संसाधन कम है। सैटेलाइट तस्वीरों के तुलनात्मक अध्ययन से वैज्ञानिक ये भी पता लगा सकते है कि मानव गतिविधियों से इन पुरातात्विक स्थलों पर कोई नकारात्मक प्रभाव हुआ है।
इटली के पुरातत्वविदों का मानना है कि सैटेलाइट के ज़रिए अध्ययन मंहगा है, लेकिन पेरु में पर्यटन राजस्व का तीसरा बड़ा स्रोत है ऐसे में वे इस खर्च की भरपाई कर लेगा।
हजारों साल पहले भी खाए जाते थे पॉपकॉर्न!
एक नए शोध में पाया गया है कि उत्तरी पेरू के लोग साधारण अनुमान से 1,000 साल पहले भी पॉपकॉर्न खाया करते थे। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें पेरू में मकई के फूले हुए दाने मिले हैं, जो कि इस बात का संकेत है कि वहां रहने वाले लोग इसका इस्तेमाल मकई का आटा और पॉपकॉर्न बनाने में करते थे।
वॉशिंगटन के प्राकृतिक इतिहास संग्राहलय के मुताबिक पाए गए मकई के फूले हुए दानों में से सबसे पुराने करीब 6,700 साल पुराने थे। 'स्मिथसोनियन म्यूजम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री' के न्यू वर्ल्ड आर्केलॉजी विभाग की निरीक्षक डोलोर्स पिपर्नो ने कहा कि मैक्सिको में 9,000 साल पहले मकई को जंगली घास के जरिए उगाया जाता था।
उनका कहना था कि उनकी शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि साउथ अमेरिका में मकई के आने के एक हजार साल बाद ये महाद्वीप के दूसरे क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में पाया गया।
शोधकर्ताओं की टीम को मकई के बालों के अवशेष पारेदोन्स और हुआका प्रीटा नाम के प्राचीन स्थलों पर मिला। हालांकि शोधकर्ताओं का मानना है कि उस समय मकई लोगों के आहार का अहम हिस्सा नहीं था।
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