वाराणसी में पिछले दिनों तुलसीघाट से चोरी गई तुलसीदास
रचित रामचरित मानस की पांडुलिपि असली नहीं है। इसका रहस्यमय खुलासा करते
हुए गोस्वामी तुलसीदास के मित्र राय टोडर की 14वीं पीढ़ी के सदस्य वयोवृद्ध
आनंद बहादुर सिंह द्वारा किए जाने से पूरे मानस परिवार से जुड़े लोग व पुलिस
प्रशासन अवाक है। आनंद बहादुर ने अपने भदैनी स्थित आवास पर
जनसत्ता के वाराणसी संवाददाता अरविंद कुमार से बातचीत में बताया कि
गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस की 1704 की असली पांडुलिपि काशीराज के
सरस्वती भंडार कक्ष के लॉकर में रखी है। अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास रामलीला
समिति बतौर मंत्री सिंह ने कहा कि तुलसीघाट स्थित हनुमान मंदिर से चोरी गई
रामचरित मानस, तुलसीदास रचित पांडुलिपि नहीं है।
पिछले दो सौ वर्ष से घाट पर रामलीला के समय का संचालन जिस मानस पांडुलिपि से किया जाता है उसके तुलसीदास के तिरोधान के 200 वर्ष बाद लिखे जाने के संकेत मिलते हैं। असली पांडुलिपि के अंत में गोस्वामी जी ने पुष्पिका को रेखांकित किए थे। जबकि चोरी गई पांडुलिपि के अंत में पुष्पिका न होने से रचनाकार वर्ष अज्ञात सर्वविदित है। असली रामचरित मानस के चोरी का प्रश्न ही नहीं है। वह काशीराज के सरस्वती भंडार में संग्रहीत है। हालांकि तुलसीघाट स्थित हनुमान मंदिर से दो सौ साल पुरानी मानस पांडुलिपि की तलाश में पुलिस प्रशासन बरामदगी के लिए गंभीर है। जनता को इसमें सहयोग करना चाहिए ताकि सच सामने आ सके। काशीराज संस्करण का मूल पाठ तैयार करने के दौरान आचार्य पं. विश्वनाथ मिश्र के साथ तुलसीघाट पर रखी दोनों पांडुलिपि का अध्ययन किया गया था। प्रकाशित संस्करण का भूमिका में उल्लेख है कि 1704 की प्रति अखाड़े के पूर्ववर्ती महंत लक्ष्मण दास ने काशीराज को हनुमत जयंती के अवसर पर भेंट कर दी थी जो आज भी काशीराज के महल में खास पोथी के नाम से राजमहल के लॉकर में सुरक्षित है, जबकि घाट से चोरी गई पांडुलिपि हनुमान जी प्रतिमा के पास ही गद्दी पर विराजमान रही, जो कि तुलसीदास जी द्वारा रचित नहीं है।
अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के सचिव आनंद बहादुर ने बताया कि उनकी पीढ़ी गोस्वामी जी के समय से ही संकटमोचन मंदिर व हनुमान मंदिर की परंपराओं से जुड़ी हैं। वे खुद भी पूर्व महंत बाकेराम मिश्र के सबसे करीबी सहयोगी के रूप में कार्य कर चुके हैं। 1947 से ही गोस्वामी तुलसीदास रामलीला की देखरेख कर रहे हैं। उधर संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र ने कहा कि चोरी गई पांडुलिपि तुलसीदास रचित न होने की बाबत प्रशासन को पहले भी अवगत करा चुके हैं। रामचरित मानस की पांडुलिपि के चोरी होने से संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो वीरभद्र मिश्र भी काफी दु:खी हैं। पांडुलिपि की चोरी हो जाने से काशी के डीएम रवींद्र व डीआईजी रामकुमार मौके पर पहुंचकर रामचरित मानस की हनुमान मंदिर से चोरी हो गई मानस की पड़ताल कराने लगे। पुलिस व गुप्तचरों की टीम, दक्षिण भारत के कई जिलों में खोज के लिए भेज दी गई है। इस विषय पर तुलसीघाट व मंदिर से जुड़े डा. विशंभर नाथ मिश्र भी मानस की चोरी हो जाने पर काफी मर्माहित हैं। (खबर जनसत्ता से साभार )।
पिछले दो सौ वर्ष से घाट पर रामलीला के समय का संचालन जिस मानस पांडुलिपि से किया जाता है उसके तुलसीदास के तिरोधान के 200 वर्ष बाद लिखे जाने के संकेत मिलते हैं। असली पांडुलिपि के अंत में गोस्वामी जी ने पुष्पिका को रेखांकित किए थे। जबकि चोरी गई पांडुलिपि के अंत में पुष्पिका न होने से रचनाकार वर्ष अज्ञात सर्वविदित है। असली रामचरित मानस के चोरी का प्रश्न ही नहीं है। वह काशीराज के सरस्वती भंडार में संग्रहीत है। हालांकि तुलसीघाट स्थित हनुमान मंदिर से दो सौ साल पुरानी मानस पांडुलिपि की तलाश में पुलिस प्रशासन बरामदगी के लिए गंभीर है। जनता को इसमें सहयोग करना चाहिए ताकि सच सामने आ सके। काशीराज संस्करण का मूल पाठ तैयार करने के दौरान आचार्य पं. विश्वनाथ मिश्र के साथ तुलसीघाट पर रखी दोनों पांडुलिपि का अध्ययन किया गया था। प्रकाशित संस्करण का भूमिका में उल्लेख है कि 1704 की प्रति अखाड़े के पूर्ववर्ती महंत लक्ष्मण दास ने काशीराज को हनुमत जयंती के अवसर पर भेंट कर दी थी जो आज भी काशीराज के महल में खास पोथी के नाम से राजमहल के लॉकर में सुरक्षित है, जबकि घाट से चोरी गई पांडुलिपि हनुमान जी प्रतिमा के पास ही गद्दी पर विराजमान रही, जो कि तुलसीदास जी द्वारा रचित नहीं है।
अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के सचिव आनंद बहादुर ने बताया कि उनकी पीढ़ी गोस्वामी जी के समय से ही संकटमोचन मंदिर व हनुमान मंदिर की परंपराओं से जुड़ी हैं। वे खुद भी पूर्व महंत बाकेराम मिश्र के सबसे करीबी सहयोगी के रूप में कार्य कर चुके हैं। 1947 से ही गोस्वामी तुलसीदास रामलीला की देखरेख कर रहे हैं। उधर संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र ने कहा कि चोरी गई पांडुलिपि तुलसीदास रचित न होने की बाबत प्रशासन को पहले भी अवगत करा चुके हैं। रामचरित मानस की पांडुलिपि के चोरी होने से संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो वीरभद्र मिश्र भी काफी दु:खी हैं। पांडुलिपि की चोरी हो जाने से काशी के डीएम रवींद्र व डीआईजी रामकुमार मौके पर पहुंचकर रामचरित मानस की हनुमान मंदिर से चोरी हो गई मानस की पड़ताल कराने लगे। पुलिस व गुप्तचरों की टीम, दक्षिण भारत के कई जिलों में खोज के लिए भेज दी गई है। इस विषय पर तुलसीघाट व मंदिर से जुड़े डा. विशंभर नाथ मिश्र भी मानस की चोरी हो जाने पर काफी मर्माहित हैं। (खबर जनसत्ता से साभार )।
1 comment:
जहाँ चोरी की घटना दुखद है वहीं, मूल प्रति के सुरक्षित होने की बात दिलासा देने वाली भी है। जो भी हो, संस्कृति की विरासत को अधिक सुरक्षा प्रदान कराये जाने की आवश्यकता तो है ही।
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