चीन हमेशा से अपनी
संस्कृति, कला, वास्तुकला, विश्वास, दर्शन आदि के लिए दुनिया में आकर्षण का
एक केन्द्र है। पेकिंग मानव के अवशेषों के साक्ष्य के साथ यह आदिम मानव के
विकास का भी गवाह रहा है। नवपाषाण युग में, इसे व्यवस्थित जीवन शैली की
शुरूआत के रूप में परिभाषित किया गया जो बाद में जटिल सभ्यता के रूप में
अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचा।
ताओवाद और कन्फ्यूशियस विद्यालयों के विचार विश्व की दो प्रमुख दार्शिनक धाराओं को चीन के उपहार थे। "मृत्यु के बाद जीवन 'की अवधारणा पर निर्मित प्राचीन चीनी सम्राटों के मकबरे बेमिसाल हैं। चीन ने एक आश्चर्यजनक वास्तुकला के रूप में बनाई गयी अपनी "चीन की महान दीवार" जैसे निर्माण से दुनिया को हैरान कर दिया। कागज, रेशम, मृतिका - शिल्प और कांस्य से बनी हुई कुछ उल्लेखनीय श्रेणी की वस्तुएं हैं जिनपर इतिहास के प्रारंभिक काल में चीन का पूरी तरह से अधिकार था। गुणवत्ता, विविधता और प्राचीन सांस्कृतिक स्मृति चिन्हों की समृद्धि और इनसे जुड़ी शानदार प्रौद्योगिकियों के मामले में, चीन का दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में महत्वपूर्ण स्थान है।
चीन में करीब 12 हजार वर्ष पूर्व प्रारंभ हुए नवपाषण युग ने (सभाओं, मछली पकड़ने और शिकार करने ) जैसी अर्थव्यवस्था से उत्पादन रूपी अर्थव्यवस्था में होता बदलाव देखा । इस संदर्भ में, मध्य चीन में पीलगंग संस्कृति, लियांगझू संस्कृति और यांगशाओ संस्कृति महत्वपूर्ण रही हैं। व्यवस्थित कृषि के विकास ने बर्तनों और औजारों सहित विभिन्न संबंधित गतिविधियों में भी मदद प्रदान की। पत्थर के टुकड़ो से बने हथियारों की जगह अच्छी तरह से तराशे गये उपकरणों ने ले ली।
कृषि और उससे संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए कुदाल, चक्की के पाट, दरांती, हलों के फल, कुल्हाड़ी, बसूली जैसे पत्थरों के औजार थे।
समय बीतने के साथ प्राचीन लोगों ने बर्तनों का उत्पादन किया और काफी हद तक अपने दैनिक जीवन में सुधार कर लिया। विभिन्न रंगों से चित्रित मिट्टी के बर्तनों ने अपनी खास छटा बिखेरी। रंगों से चित्रित कलाओँ ने लोगों की गतिविधियों के साथ साथ प्रारंभिक युग की कलात्मक प्रतिभा को भी प्रस्तुत किया।
खासतौर पर शांग और झोउ राजवंशों ने (18 वीं सदी ईसा पूर्व से तीसरी सदी बीसीई तक) प्राचीन दुनिया के उत्कृष्ट धातु शिल्प में विशेष उपलब्धि हासिल की। प्राचीन चीन में बनाये गये कांस्य के अनेक पात्र वास्तव में आश्चर्यजनक हैं। कांस्य पर की जाने वाली पालिश के बाद यह चमकीले सुनहरे रंग की आभा देता है और देखने में बहुत खूबसूरत लगता है। लेकिन चीन की क्षारीय मिट्टी कांस्य के लिए उपयुक्त है और इसको आकर्षक हरे और नीले रंग में परिवर्तित करने के बाद यह आंखों को मूल धातु से ज्यादा सुन्दर लगता है। हथियारों के लिए कांस्य का उपयोग प्रारम्भ हो गया (कुल्हाड़ी, बरछी, कटार, तलवारें) छेनी, बसूला, आरी और खेती के उपकरण फावड़ों, फावड़ियों, दंराती, मछली हुक को भी बनाया जाने लगा। कब्र में मिलने वाले हथियार इनके स्वामियों की शक्ति को दर्शाते हैं और साथ ही यह भी पता चलता है कि दैनिक जीवन में इनका उपयोग होता था लेकिन खाना पकाने-बनाने के बर्तन, खाना रखने के कन्टेनर, मदिरा और जल आदि रखने के बर्तन और उनकी सुंदरता एवं उच्च शिल्प ने चीन और विदेशों का सबसे ज्यादा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वे इनका उपयोग अपने देवताओं और पूर्वजों को बलिदान करने में किया करते थे और बाद में इन्हें मृत व्यक्ति के साथ दफना दिया जाता था।
कांस्य को ढाल कर वस्तुओं का निर्माण भारी गोल बर्तनों को बनाने में किया जाता था। चीनी कांसे का उपयोग संगीत वाद्ययंत्र, वजन और माप यंत्र, रथ एवं घोड़े का साजो-सामान, गहने और दैनिक उपयोग की विविध वस्तुओं को बनाने में भी करते थे। उनको अतिरिक्त घुंडियों, हैडिंलों और घनी सजावट के साथ बनाया जाता था।
कांसे के मामले में एक पृथक उत्कृष्ट श्रेणी कांस्य दर्पण है। इसके सामने का हिस्सा काफी चमकदार है और पिछला हिस्सा विभिन्न सजावटी डिजायनों और शिलालेखों से ढका है। अधिकांश गोल है तो कुछ चौकोर और कुछ का आकार फूलों की पंखुड़ियों जैसा है तो कुछ हैंडिल के साथ हैं। ये अधिकांशत: हान राजवंश और तांग राजवंश की युद्धरत अवधि से संबंधित हैं।
चीनी कला वस्तुओं में हरिताश्म से बनी वस्तुओं का एक विशेष स्थान है। हरिताश्म एक हल्का हरा, सलेटी और भूरे रंग का खूबसूरत सघन पत्थर है। इस प्रकार से यह ना सिर्फ आंखों को भाता है बल्कि स्पर्श करने में भी अच्छा है। इसकी शुरूआत नवपाषाण युग में पत्थर उद्योग के विस्तार के रूप में हुई। चीनी हरिताश्म को पुण्य और भलाई के पत्थर के रूप में मानते थे और उनका विश्वास था कि इस तरह के गुणों को अपने स्वजनों को दिया जा सकता है। इसलिए, हरिताश्म का उपयोग विशेष अनुष्ठानों और संस्कार क्रिया-कलापों में आमतौर पर किया जाता था लेकिन इसका उपयोग गहनें, पेंडेंट और छोटे पशुओं की आकृति बनाने में भी किया जाता था। आमतौर पर, हरिताश्म से बनी वस्तुओं को संस्कार के लिए बनी वस्तुओं, धारण और दफनाई जाने वाली वस्तुओं की श्रेणी में बांटा जा सकता है।
इसका तकनीकी कारण यह भी था कि हरिताश्म के भारी गोल आकार में होने के कारण इसे पतले, तीखे और घुमावदार आकारों में नहीं ढाला जा सकता था।
चीनी मिट्टी से बने बर्तन चीन की सजावटी कला का सबसे स्थाई पहलू हैं और जिसमें उच्च गुणवत्ता वाली मुल्तानी मिट्टी की उपलब्धता को प्रमुख महत्व दिया गया था। वे अपनी बेहतर सतह और शानदार रंगों के लिए उल्लेखनीय हैं जिन्हें अग्नि की अत्याधुनिक तकनीक से प्राप्त किया गया है। थोड़े से आयरन ऑक्साईड को मिलाकर उच्च ताप से हरित रोगन तैयार किया जाता और आमतौर पर सीलाडॉन ग्लेज कहे जाने वाले एक हल्के ताप के वातावरण में बर्तन को पकाया जाता था।
चीनी के बर्तनों की उपस्थिति के साथ चीन में चीनी बर्तनों के इतिहास में एक नये युग की शुरूआत हुई। करीब 3500 वर्ष पूर्व, शांग काल में, एक सफेद पत्थर उपयोग में आया जो चीनी मिट्टी के बर्तनों के ही समान था और बाद में इसका विकसित उपयोग पूर्वी हान, तांग, संग, युआंन, मिंग और किंग राजवंशों
में किया गया।
मिट्टी के बर्तनों के बाद आदिम सफेद मिट्टी के बर्तनों बने और सफेद मिट्टी के बर्तनों का बदलाव नीले और सफेद ग्लेज मिश्रित बर्तनों में हुआ। ग्लेज मिश्रित लाल रंग से रंगे मिट्टी के बर्तन भी प्रचलन में रहे। इसके बाद, विविध रंगों से बने मिट्टी के बर्तन प्रचलित हुए। चीन में बने चीनी के बर्तन अपने विभिन्न आकारों और डिजाइनों, गहनों की चमक और इसके कपड़े अपनी अनुकूलता और उज्जवलता के लिए जाने जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों के मामले में चीनी बर्तन उद्योग ने चीन को विश्वभर में प्रसिद्धि दी।
तांग राजवंश के विविध रंगों से बने बर्तनों में शीशे और आकार के बीच मनोहर पंक्तियों को उकेरने पर जोर दिया गया। लेकिन इस समयावधि को आमतौर पर उल्लेखनीय रूप से तीन रंगों से मिश्रित कांच कला युक्त मिट्टी के बर्तनों की उत्कृष्ट श्रेणी के रूप में जाना जाता है। इन्हें गहरे नीले आकाश, बैंगनी, गहरे पीले और गेरूएं, गहरे और हल्के हरे और लाल रंग से सजाया जाता था इन रंगों को अग्नि के हल्के तापमान से बनी उपयुक्त धातु ऑक्साइड के मिश्रण से तैयार किया जाता था। विविध रंगों के संगम ने तिरंगे बर्तनों को विशेष आकर्षक बना दिया और ये तांग राजवंश के काल में दफनाने वाली वस्तुओं में सबसे लोकप्रिय बन गये। इस श्रेणी के मिटटी के बर्तनों में मानव और पशुओं की आकृतियां इनकी सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं।
किंन और हांन राजवंशों से मृतक लोगों के साथ बड़ी मात्रा में शानदार समानों और मिट्टी के बर्तनों को दफनाने की प्रथा आरंभ हुई। चीनी सम्राटों का मानना था कि मरने के बाद लोग एक नई दुनिया में जीवन जीने के लिए जाते हैं और इसलिए उनके मरने के बाद वे सबकुछ अपने साथ ले जाना चाहते थे जिसका उपयोग उन्होंने अपने जीवनकाल में किया था। इसलिए, सम्राट के मकबरे का एक बड़ा टीला सा बन जाता था जिसमें बहुत से बर्तनों, अनाज के भंडार, हथियार, पशु, दैनिक उपयोग की वस्तुओं, घोड़ों, रथों और मुहरों आदि को दफन किया जाता था। टेराकोट्टा सेना और टेराकोट्टा योद्धा मृतक और उसके बाद के जीवन को मानने वालों में प्राचीन चीनी अंतिम संस्कार के सबसे स्पष्ट उदाहरण हैं। उन्होंने शाही अंतिम संस्कार की रस्मों को पूरी तरह से निभाया। भूमिगत कब्रों में अपने भारी कवच के साथ दफनाए गये योद्धाओं के हाथों में उनके हथियार यह दिखाते थे कि वे अपने सम्राट की रक्षा के लिए किसी भी समय अपनी जान कुर्बान करने के लिए तैयार हैं। अपने खूबसूरत रेशम के लिबास के साथ हजारों की संख्या में महिला गणिकाएं नृत्य कर रही हैं और सुअरों, घोड़ो, पशु, भेड़, बकरियों, कुत्तों और मुर्गियों को उनके भोजन के लिए उनके साथ बांध दिया जाता था।
दोनों देशो के बीच ऐतिहासिक मित्रता के आदान-प्रदान को और बढ़ाने के लिए वर्ष 2006 को भारत-चीन मित्रता वर्ष के रूप में घोषित किया गया था। इस वर्ष के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तौर पर, वर्ष 2006-07 के दौरान चीन के चार प्रमुख शहरों- बीजिंग, झेंग्झौ चूंगकींग, और गुआंगज़ौ में "प्राचीन चीन की निधि" पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी में चीन के लोगों के लिए उनके ही घर में भारतीय कला से जुड़ी सौ कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद, वर्ष 2011 में भारत के चार शहरों- नई दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता में भी "प्राचीन चीन की निधि" पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी का आयोजन संयुक्त रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और चीन के सांस्कृतिक विरासत प्रशासन द्वारा किया गया। इस प्रदर्शनी के दौरान निओलिथिक से क्विंग राजवंश की विभिन्न कलाओं से जुड़ी सौ प्राचीन काल की वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया। चीनी वस्तुओं की विभिन्न श्रेणियों जैसे आभूषणों, सजावटी वस्तुओं,मिट्टी और धातु आदि से बने बर्तनों का प्रदर्शन नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में फिलहाल जारी प्रदर्शनी में किया गया। यह प्रदर्शनी 20 मार्च, 2011 तक चली। इस प्रदर्शनी का उद्देश्य दोनों देशों के लोगों के बीच मित्रता के संबंध को और मजबूत बनाना था।
साभार- http://www.pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx
ताओवाद और कन्फ्यूशियस विद्यालयों के विचार विश्व की दो प्रमुख दार्शिनक धाराओं को चीन के उपहार थे। "मृत्यु के बाद जीवन 'की अवधारणा पर निर्मित प्राचीन चीनी सम्राटों के मकबरे बेमिसाल हैं। चीन ने एक आश्चर्यजनक वास्तुकला के रूप में बनाई गयी अपनी "चीन की महान दीवार" जैसे निर्माण से दुनिया को हैरान कर दिया। कागज, रेशम, मृतिका - शिल्प और कांस्य से बनी हुई कुछ उल्लेखनीय श्रेणी की वस्तुएं हैं जिनपर इतिहास के प्रारंभिक काल में चीन का पूरी तरह से अधिकार था। गुणवत्ता, विविधता और प्राचीन सांस्कृतिक स्मृति चिन्हों की समृद्धि और इनसे जुड़ी शानदार प्रौद्योगिकियों के मामले में, चीन का दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में महत्वपूर्ण स्थान है।
चीन में करीब 12 हजार वर्ष पूर्व प्रारंभ हुए नवपाषण युग ने (सभाओं, मछली पकड़ने और शिकार करने ) जैसी अर्थव्यवस्था से उत्पादन रूपी अर्थव्यवस्था में होता बदलाव देखा । इस संदर्भ में, मध्य चीन में पीलगंग संस्कृति, लियांगझू संस्कृति और यांगशाओ संस्कृति महत्वपूर्ण रही हैं। व्यवस्थित कृषि के विकास ने बर्तनों और औजारों सहित विभिन्न संबंधित गतिविधियों में भी मदद प्रदान की। पत्थर के टुकड़ो से बने हथियारों की जगह अच्छी तरह से तराशे गये उपकरणों ने ले ली।
कृषि और उससे संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए कुदाल, चक्की के पाट, दरांती, हलों के फल, कुल्हाड़ी, बसूली जैसे पत्थरों के औजार थे।
समय बीतने के साथ प्राचीन लोगों ने बर्तनों का उत्पादन किया और काफी हद तक अपने दैनिक जीवन में सुधार कर लिया। विभिन्न रंगों से चित्रित मिट्टी के बर्तनों ने अपनी खास छटा बिखेरी। रंगों से चित्रित कलाओँ ने लोगों की गतिविधियों के साथ साथ प्रारंभिक युग की कलात्मक प्रतिभा को भी प्रस्तुत किया।
खासतौर पर शांग और झोउ राजवंशों ने (18 वीं सदी ईसा पूर्व से तीसरी सदी बीसीई तक) प्राचीन दुनिया के उत्कृष्ट धातु शिल्प में विशेष उपलब्धि हासिल की। प्राचीन चीन में बनाये गये कांस्य के अनेक पात्र वास्तव में आश्चर्यजनक हैं। कांस्य पर की जाने वाली पालिश के बाद यह चमकीले सुनहरे रंग की आभा देता है और देखने में बहुत खूबसूरत लगता है। लेकिन चीन की क्षारीय मिट्टी कांस्य के लिए उपयुक्त है और इसको आकर्षक हरे और नीले रंग में परिवर्तित करने के बाद यह आंखों को मूल धातु से ज्यादा सुन्दर लगता है। हथियारों के लिए कांस्य का उपयोग प्रारम्भ हो गया (कुल्हाड़ी, बरछी, कटार, तलवारें) छेनी, बसूला, आरी और खेती के उपकरण फावड़ों, फावड़ियों, दंराती, मछली हुक को भी बनाया जाने लगा। कब्र में मिलने वाले हथियार इनके स्वामियों की शक्ति को दर्शाते हैं और साथ ही यह भी पता चलता है कि दैनिक जीवन में इनका उपयोग होता था लेकिन खाना पकाने-बनाने के बर्तन, खाना रखने के कन्टेनर, मदिरा और जल आदि रखने के बर्तन और उनकी सुंदरता एवं उच्च शिल्प ने चीन और विदेशों का सबसे ज्यादा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वे इनका उपयोग अपने देवताओं और पूर्वजों को बलिदान करने में किया करते थे और बाद में इन्हें मृत व्यक्ति के साथ दफना दिया जाता था।
कांस्य को ढाल कर वस्तुओं का निर्माण भारी गोल बर्तनों को बनाने में किया जाता था। चीनी कांसे का उपयोग संगीत वाद्ययंत्र, वजन और माप यंत्र, रथ एवं घोड़े का साजो-सामान, गहने और दैनिक उपयोग की विविध वस्तुओं को बनाने में भी करते थे। उनको अतिरिक्त घुंडियों, हैडिंलों और घनी सजावट के साथ बनाया जाता था।
कांसे के मामले में एक पृथक उत्कृष्ट श्रेणी कांस्य दर्पण है। इसके सामने का हिस्सा काफी चमकदार है और पिछला हिस्सा विभिन्न सजावटी डिजायनों और शिलालेखों से ढका है। अधिकांश गोल है तो कुछ चौकोर और कुछ का आकार फूलों की पंखुड़ियों जैसा है तो कुछ हैंडिल के साथ हैं। ये अधिकांशत: हान राजवंश और तांग राजवंश की युद्धरत अवधि से संबंधित हैं।
चीनी कला वस्तुओं में हरिताश्म से बनी वस्तुओं का एक विशेष स्थान है। हरिताश्म एक हल्का हरा, सलेटी और भूरे रंग का खूबसूरत सघन पत्थर है। इस प्रकार से यह ना सिर्फ आंखों को भाता है बल्कि स्पर्श करने में भी अच्छा है। इसकी शुरूआत नवपाषाण युग में पत्थर उद्योग के विस्तार के रूप में हुई। चीनी हरिताश्म को पुण्य और भलाई के पत्थर के रूप में मानते थे और उनका विश्वास था कि इस तरह के गुणों को अपने स्वजनों को दिया जा सकता है। इसलिए, हरिताश्म का उपयोग विशेष अनुष्ठानों और संस्कार क्रिया-कलापों में आमतौर पर किया जाता था लेकिन इसका उपयोग गहनें, पेंडेंट और छोटे पशुओं की आकृति बनाने में भी किया जाता था। आमतौर पर, हरिताश्म से बनी वस्तुओं को संस्कार के लिए बनी वस्तुओं, धारण और दफनाई जाने वाली वस्तुओं की श्रेणी में बांटा जा सकता है।
इसका तकनीकी कारण यह भी था कि हरिताश्म के भारी गोल आकार में होने के कारण इसे पतले, तीखे और घुमावदार आकारों में नहीं ढाला जा सकता था।
चीनी मिट्टी से बने बर्तन चीन की सजावटी कला का सबसे स्थाई पहलू हैं और जिसमें उच्च गुणवत्ता वाली मुल्तानी मिट्टी की उपलब्धता को प्रमुख महत्व दिया गया था। वे अपनी बेहतर सतह और शानदार रंगों के लिए उल्लेखनीय हैं जिन्हें अग्नि की अत्याधुनिक तकनीक से प्राप्त किया गया है। थोड़े से आयरन ऑक्साईड को मिलाकर उच्च ताप से हरित रोगन तैयार किया जाता और आमतौर पर सीलाडॉन ग्लेज कहे जाने वाले एक हल्के ताप के वातावरण में बर्तन को पकाया जाता था।
चीनी के बर्तनों की उपस्थिति के साथ चीन में चीनी बर्तनों के इतिहास में एक नये युग की शुरूआत हुई। करीब 3500 वर्ष पूर्व, शांग काल में, एक सफेद पत्थर उपयोग में आया जो चीनी मिट्टी के बर्तनों के ही समान था और बाद में इसका विकसित उपयोग पूर्वी हान, तांग, संग, युआंन, मिंग और किंग राजवंशों
में किया गया।
मिट्टी के बर्तनों के बाद आदिम सफेद मिट्टी के बर्तनों बने और सफेद मिट्टी के बर्तनों का बदलाव नीले और सफेद ग्लेज मिश्रित बर्तनों में हुआ। ग्लेज मिश्रित लाल रंग से रंगे मिट्टी के बर्तन भी प्रचलन में रहे। इसके बाद, विविध रंगों से बने मिट्टी के बर्तन प्रचलित हुए। चीन में बने चीनी के बर्तन अपने विभिन्न आकारों और डिजाइनों, गहनों की चमक और इसके कपड़े अपनी अनुकूलता और उज्जवलता के लिए जाने जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों के मामले में चीनी बर्तन उद्योग ने चीन को विश्वभर में प्रसिद्धि दी।
तांग राजवंश के विविध रंगों से बने बर्तनों में शीशे और आकार के बीच मनोहर पंक्तियों को उकेरने पर जोर दिया गया। लेकिन इस समयावधि को आमतौर पर उल्लेखनीय रूप से तीन रंगों से मिश्रित कांच कला युक्त मिट्टी के बर्तनों की उत्कृष्ट श्रेणी के रूप में जाना जाता है। इन्हें गहरे नीले आकाश, बैंगनी, गहरे पीले और गेरूएं, गहरे और हल्के हरे और लाल रंग से सजाया जाता था इन रंगों को अग्नि के हल्के तापमान से बनी उपयुक्त धातु ऑक्साइड के मिश्रण से तैयार किया जाता था। विविध रंगों के संगम ने तिरंगे बर्तनों को विशेष आकर्षक बना दिया और ये तांग राजवंश के काल में दफनाने वाली वस्तुओं में सबसे लोकप्रिय बन गये। इस श्रेणी के मिटटी के बर्तनों में मानव और पशुओं की आकृतियां इनकी सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं।
किंन और हांन राजवंशों से मृतक लोगों के साथ बड़ी मात्रा में शानदार समानों और मिट्टी के बर्तनों को दफनाने की प्रथा आरंभ हुई। चीनी सम्राटों का मानना था कि मरने के बाद लोग एक नई दुनिया में जीवन जीने के लिए जाते हैं और इसलिए उनके मरने के बाद वे सबकुछ अपने साथ ले जाना चाहते थे जिसका उपयोग उन्होंने अपने जीवनकाल में किया था। इसलिए, सम्राट के मकबरे का एक बड़ा टीला सा बन जाता था जिसमें बहुत से बर्तनों, अनाज के भंडार, हथियार, पशु, दैनिक उपयोग की वस्तुओं, घोड़ों, रथों और मुहरों आदि को दफन किया जाता था। टेराकोट्टा सेना और टेराकोट्टा योद्धा मृतक और उसके बाद के जीवन को मानने वालों में प्राचीन चीनी अंतिम संस्कार के सबसे स्पष्ट उदाहरण हैं। उन्होंने शाही अंतिम संस्कार की रस्मों को पूरी तरह से निभाया। भूमिगत कब्रों में अपने भारी कवच के साथ दफनाए गये योद्धाओं के हाथों में उनके हथियार यह दिखाते थे कि वे अपने सम्राट की रक्षा के लिए किसी भी समय अपनी जान कुर्बान करने के लिए तैयार हैं। अपने खूबसूरत रेशम के लिबास के साथ हजारों की संख्या में महिला गणिकाएं नृत्य कर रही हैं और सुअरों, घोड़ो, पशु, भेड़, बकरियों, कुत्तों और मुर्गियों को उनके भोजन के लिए उनके साथ बांध दिया जाता था।
भारत और चीन
दुनिया की दो अद्भुत प्राचीन सभ्यताओं, भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक
संबंध दो शताब्दी से ज्यादा पुराने हैं। दोनों देश प्राचीन रेशम मार्ग के
माध्यम से जुड़े थे। लेकिन भारत से चीन गये बौद्ध धर्म का परिचय आपसी
संबंधों के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम था जिसने चीन में बौद्ध कला और
वास्तुकला के निर्माण और चीनी बौद्ध भिक्षुओं जैसे फा-जियान, जुनजांग और
इजिंग की भारत यात्रा को एक नये संबंध से जोड़ दिया। भारत से चीन आए बौद्ध
धर्म का परिचय धार्मिक प्रतिमाओं के रूप में सामने आया जो अंततः स्वयं के
एक वर्ग के रूप में विकसित हुआ और वेई, सुई, तांग, संग, मिंग और किंग
राजवंशों के उत्कृष्ट काल तक पहुँचा। इन बौद्ध मूर्तियों को उत्कृष्ट
शिल्प कौशल के माध्यम से पत्थर के साथ-साथ कांसे से बनाया गया और तांग
काल में यह अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंची। अपने विकास के दौरान, चीनी
मूर्तिकला को विविधता प्रदान करने के लिए नये रूपों और शैलियों को
आत्मसात किया गया। द यून गंग, द लांगमेन और दाजू ग्रोटोज इस क्षेत्र की
कृतियों के सिर्फ कुछ एक उदाहरण हैं।दोनों देशो के बीच ऐतिहासिक मित्रता के आदान-प्रदान को और बढ़ाने के लिए वर्ष 2006 को भारत-चीन मित्रता वर्ष के रूप में घोषित किया गया था। इस वर्ष के एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तौर पर, वर्ष 2006-07 के दौरान चीन के चार प्रमुख शहरों- बीजिंग, झेंग्झौ चूंगकींग, और गुआंगज़ौ में "प्राचीन चीन की निधि" पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी में चीन के लोगों के लिए उनके ही घर में भारतीय कला से जुड़ी सौ कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद, वर्ष 2011 में भारत के चार शहरों- नई दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता में भी "प्राचीन चीन की निधि" पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी का आयोजन संयुक्त रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और चीन के सांस्कृतिक विरासत प्रशासन द्वारा किया गया। इस प्रदर्शनी के दौरान निओलिथिक से क्विंग राजवंश की विभिन्न कलाओं से जुड़ी सौ प्राचीन काल की वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया। चीनी वस्तुओं की विभिन्न श्रेणियों जैसे आभूषणों, सजावटी वस्तुओं,मिट्टी और धातु आदि से बने बर्तनों का प्रदर्शन नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में फिलहाल जारी प्रदर्शनी में किया गया। यह प्रदर्शनी 20 मार्च, 2011 तक चली। इस प्रदर्शनी का उद्देश्य दोनों देशों के लोगों के बीच मित्रता के संबंध को और मजबूत बनाना था।
साभार- http://www.pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx