बिहार के गया शहर स्थित महाबोधि मंदिर के
पश्चिम स्थित पुरातात्विक स्थल ताराडीह का सौंदर्यीकरण होगा. इसके लिए
योजना बना कर पर्यटन विभाग को भेजने का निर्देश दिया गया है।
मगध प्रमंडल के आयुक्त विवेक कुमार सिंह ने भी पिछले दिनों इस पर चर्चा की थी और उसके अनुपालन के लिए पर्यटन और कला-संस्कृति विभाग को निर्देश दिया है। ताराडीह भारत का एक मात्र ऐसा उत्खनन स्थल है जहां नव प्रस्तर काल से वर्तमान काल तक के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अवशेष मिले हैं।
वर्षे बाद शुरू हुआ प्रयास
चार दिसंबर, 2000 को बिहार सरकार के कला,संस्कृति व युवा विभाग ने इसके सौंदर्यीकरण का प्रयास किया था. विभागीय मंत्री अशोक कुमार सिंह बोधगया ताराडीह गौतम वन पुरातत्व परिसर के सौंदर्यीकरण और संरक्षण के कार्ये का शिलान्यास भी किया था, लेकिन 11 वर्ष बीत गये पर किसी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखायी। श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रेम दासा ने इस पुरातात्विक स्थल के विकास में रुचि दिखायी थी पर 1993 में उनकी हत्या हो जाने के बाद यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।
यहां मिले हैं ऐतिहासिक अवशेष
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, बिहार अंचल द्वारा1981-82 में इस पुरातात्विक स्थल का उत्खनन डॉ अजीत कुमार सिन्हा के निर्देशन में शुरू हुआ था. यहां से मिले सामान को बोधगया के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है. यहां सात कालों के अवशेष मिले हैं।
इतने महत्वपूर्ण धरोहर को संरक्षित करने के बजाय उन्हें मिट्टी से भर दिया गया है. आज यह स्थल देखरेख के अभाव में मल, मूत्र त्याग और कूड़ा फेंकने का स्थल बन कर रह गया है। यहां हुई खुदाई में तमाम पुरातात्विक चीजें मिली हैं।
* नव पाषाण युग - पत्थर के मनके, सूई, पत्थर के खिलौने।
* ताम्र युग - धातु की सूई, मनके, बरतन, हांडी।
* कृष्ण-लोहित व कृष्ण मृदभाड - मिट्टी के बरतन, मिट्टी के बने मनुष्य के सिर, मिट्टी की सूई।
* उत्तरी कृष्ण मांजित मृदभांड - हैडल लगे बरतन व चूल्हा।
* कुषाण कालीन - बुद्ध की मूर्ति, पत्थर मनका, धातु की सूई, चूल्हे के अवशेष।
* गुप्त काल - अभिलेखयुक्त बुद्ध की मूर्ति, सिर विहीन मूर्ति, बौद्ध मठ।
* पाल युग - बुद्ध की मूति, बौद्ध मठ । (साभार-प्रभात खबर)
मगध प्रमंडल के आयुक्त विवेक कुमार सिंह ने भी पिछले दिनों इस पर चर्चा की थी और उसके अनुपालन के लिए पर्यटन और कला-संस्कृति विभाग को निर्देश दिया है। ताराडीह भारत का एक मात्र ऐसा उत्खनन स्थल है जहां नव प्रस्तर काल से वर्तमान काल तक के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अवशेष मिले हैं।
वर्षे बाद शुरू हुआ प्रयास
चार दिसंबर, 2000 को बिहार सरकार के कला,संस्कृति व युवा विभाग ने इसके सौंदर्यीकरण का प्रयास किया था. विभागीय मंत्री अशोक कुमार सिंह बोधगया ताराडीह गौतम वन पुरातत्व परिसर के सौंदर्यीकरण और संरक्षण के कार्ये का शिलान्यास भी किया था, लेकिन 11 वर्ष बीत गये पर किसी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखायी। श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रेम दासा ने इस पुरातात्विक स्थल के विकास में रुचि दिखायी थी पर 1993 में उनकी हत्या हो जाने के बाद यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।
यहां मिले हैं ऐतिहासिक अवशेष
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, बिहार अंचल द्वारा1981-82 में इस पुरातात्विक स्थल का उत्खनन डॉ अजीत कुमार सिन्हा के निर्देशन में शुरू हुआ था. यहां से मिले सामान को बोधगया के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है. यहां सात कालों के अवशेष मिले हैं।
इतने महत्वपूर्ण धरोहर को संरक्षित करने के बजाय उन्हें मिट्टी से भर दिया गया है. आज यह स्थल देखरेख के अभाव में मल, मूत्र त्याग और कूड़ा फेंकने का स्थल बन कर रह गया है। यहां हुई खुदाई में तमाम पुरातात्विक चीजें मिली हैं।
* नव पाषाण युग - पत्थर के मनके, सूई, पत्थर के खिलौने।
* ताम्र युग - धातु की सूई, मनके, बरतन, हांडी।
* कृष्ण-लोहित व कृष्ण मृदभाड - मिट्टी के बरतन, मिट्टी के बने मनुष्य के सिर, मिट्टी की सूई।
* उत्तरी कृष्ण मांजित मृदभांड - हैडल लगे बरतन व चूल्हा।
* कुषाण कालीन - बुद्ध की मूर्ति, पत्थर मनका, धातु की सूई, चूल्हे के अवशेष।
* गुप्त काल - अभिलेखयुक्त बुद्ध की मूर्ति, सिर विहीन मूर्ति, बौद्ध मठ।
* पाल युग - बुद्ध की मूति, बौद्ध मठ । (साभार-प्रभात खबर)
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