सारनाथ में पवित्र बोधि वृक्ष गिरने की वजह से बौद्ध भिक्षुओं में निराशा भले ही हो, लेकिन उनके हाथ में बैठ बिठाए एक बड़ा खजाना हाथ लग गया है। आम लोगों के लिए पीपल की लकड़ियों का भले ही कोई खास मतलब न हो, पर धार्मिक मान्यताओं की वजह से बौद्ध भिक्षुओं के लिए इसकी छोटी सी टहनी ही नहीं, एक-एक पत्ती भी बेशकीमती है। ऐसे में बोधि वृक्ष की लकड़ियों पर दुनिया भर की निगाहें टिकी हुई हैं। इसके बावजूद टूटी हुई डाल को सुरक्षित रखने के लिए सारनाथ मंदिर प्रशासन की ओर से कोई खास इंतजामात नहीं किए गए हैं।
ऐतिहासिक बोधि वृक्ष का इतिहास भगवान बुद्ध के सारनाथ में प्रथम उपदेश से जुड़ा है। जिस स्थान पर बैठकर बुद्ध ने प्रथम पांच शिष्यों को उपदेश दिया था, ठीक उसी जगह बोध गया के बोधि वृक्ष की शाखा वर्ष 1931 में श्रीलंका से लाकर लगाई गई थी। इसी बोधि वृक्ष की एक मोटी शाखा (आधा हिस्सा) शुक्रवार की सुबह अचानक बिना आंधी-हवा चले ही गिर पड़ने से सारनाथ में मौजूद बौद्ध भिक्षु चिंतित हैं।
दुनिया भर को बौद्ध भिक्षु इससे जुड़ी जानकारियां लेने के लिए लगातार यहां के स्थानीय प्रशासन के संपर्क में हैं। बौद्ध धर्मावलंबी शोक मनाने के क्रम में पूजन व दीप दान कर रहे वहीं बौद्ध मंदिरों में शोक सभाओं का दौर जारी है। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष भिक्षु चंदिमा ने इसे अनहोनी का संकेत बताया और कहा कि इसकी पौराणिकता को ध्यान में रखते हुए संरक्षण के लिए कुछ होता, तो बोधि वृक्ष नहीं गिरता।
बौद्ध धर्मावलंबी सदियों से बोधि वृक्ष को भगवान बुद्ध का स्वरूप मान पूजते आए हैं। सारनाथ आने वाले देश-दुनिया के श्रद्धालु इस पवित्र वृक्ष का दर्शन व उसकी परिक्रमा जरूर करते हैं। साथ ही इसके पत्ते ले जाकर घर, पुस्तक या पूजाघर में रखते हैं। धार्मिक मान्यता के चलते इसकी एक इंच लकड़ी के लिए भी दुनिया भर में फैले बौद्ध भिक्षु मुंहमांगी रकम अदा कर सकते हैं। इसको देखते हुए ही गिरी डाल पर लोगों की नजर लगी हुई है।
महाबोधि सोसायटी के असिस्टेंट भिक्षु इंचार्ज नंदा थेरो का कहना है कि गिरी डाल को छोटे-छोटे टुकड़ो में कटवाकर बोधि परिसर के ही एक हिस्से में सुरक्षित रख दिया गया है। इसे किसी को नहीं दिया जाएगा। उनका दावा है कि पवित्र लकड़ियां यहां पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी। जबकि दावे के उलट शनिवार को दिन में भी तमाम बौद्ध भिक्षु व स्थानीय लोग टहनियों को तोड़ ले जाते रहे। वहां मौजूद गार्ड मूक दर्शक बने रहे। ऐसे में रात के समय परिसर में पवित्र लकड़ियां कितनी सुरक्षित रह पाएंगीं, यह सवाल उठना लाजिमी है। सारनाथ में चर्चा जोरों पर है कि सोसायटी द्वारा इसे बौद्ध भिक्षुओं को बांटने पर अलग ही खेल होगा। यह सवाल भी उठने लगा है कि यह महज हादसा है या इसके पीछे भी कमाने की साजिश तो नहीं है।
बौद्ध भिक्षु धम्मलोक का कहना है कि बोधगया और श्रावस्ती में बोधि वृक्षों के संरक्षण के लिए तमाम उपाय किए गए हैं। वैज्ञानिकों से राय लेकर इन्हें बचाए रखने के लिए केमिकल डाले जाते हैं, वहीं मोटी टहनियों को टूटने से बचाने के लिए स्टील राड का सपोर्ट दिया गया है। सारनाथ में ऐसी व्यवस्था न करने पर सवालिया निशान लग रहे हैं। (साभार- नवभारत टाइम्स,वाराणसी)
ऐतिहासिक बोधि वृक्ष का इतिहास भगवान बुद्ध के सारनाथ में प्रथम उपदेश से जुड़ा है। जिस स्थान पर बैठकर बुद्ध ने प्रथम पांच शिष्यों को उपदेश दिया था, ठीक उसी जगह बोध गया के बोधि वृक्ष की शाखा वर्ष 1931 में श्रीलंका से लाकर लगाई गई थी। इसी बोधि वृक्ष की एक मोटी शाखा (आधा हिस्सा) शुक्रवार की सुबह अचानक बिना आंधी-हवा चले ही गिर पड़ने से सारनाथ में मौजूद बौद्ध भिक्षु चिंतित हैं।
दुनिया भर को बौद्ध भिक्षु इससे जुड़ी जानकारियां लेने के लिए लगातार यहां के स्थानीय प्रशासन के संपर्क में हैं। बौद्ध धर्मावलंबी शोक मनाने के क्रम में पूजन व दीप दान कर रहे वहीं बौद्ध मंदिरों में शोक सभाओं का दौर जारी है। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के अध्यक्ष भिक्षु चंदिमा ने इसे अनहोनी का संकेत बताया और कहा कि इसकी पौराणिकता को ध्यान में रखते हुए संरक्षण के लिए कुछ होता, तो बोधि वृक्ष नहीं गिरता।
बौद्ध धर्मावलंबी सदियों से बोधि वृक्ष को भगवान बुद्ध का स्वरूप मान पूजते आए हैं। सारनाथ आने वाले देश-दुनिया के श्रद्धालु इस पवित्र वृक्ष का दर्शन व उसकी परिक्रमा जरूर करते हैं। साथ ही इसके पत्ते ले जाकर घर, पुस्तक या पूजाघर में रखते हैं। धार्मिक मान्यता के चलते इसकी एक इंच लकड़ी के लिए भी दुनिया भर में फैले बौद्ध भिक्षु मुंहमांगी रकम अदा कर सकते हैं। इसको देखते हुए ही गिरी डाल पर लोगों की नजर लगी हुई है।
महाबोधि सोसायटी के असिस्टेंट भिक्षु इंचार्ज नंदा थेरो का कहना है कि गिरी डाल को छोटे-छोटे टुकड़ो में कटवाकर बोधि परिसर के ही एक हिस्से में सुरक्षित रख दिया गया है। इसे किसी को नहीं दिया जाएगा। उनका दावा है कि पवित्र लकड़ियां यहां पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी। जबकि दावे के उलट शनिवार को दिन में भी तमाम बौद्ध भिक्षु व स्थानीय लोग टहनियों को तोड़ ले जाते रहे। वहां मौजूद गार्ड मूक दर्शक बने रहे। ऐसे में रात के समय परिसर में पवित्र लकड़ियां कितनी सुरक्षित रह पाएंगीं, यह सवाल उठना लाजिमी है। सारनाथ में चर्चा जोरों पर है कि सोसायटी द्वारा इसे बौद्ध भिक्षुओं को बांटने पर अलग ही खेल होगा। यह सवाल भी उठने लगा है कि यह महज हादसा है या इसके पीछे भी कमाने की साजिश तो नहीं है।
बौद्ध भिक्षु धम्मलोक का कहना है कि बोधगया और श्रावस्ती में बोधि वृक्षों के संरक्षण के लिए तमाम उपाय किए गए हैं। वैज्ञानिकों से राय लेकर इन्हें बचाए रखने के लिए केमिकल डाले जाते हैं, वहीं मोटी टहनियों को टूटने से बचाने के लिए स्टील राड का सपोर्ट दिया गया है। सारनाथ में ऐसी व्यवस्था न करने पर सवालिया निशान लग रहे हैं। (साभार- नवभारत टाइम्स,वाराणसी)
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