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Thursday, January 16, 2014

कृष्ण और बौद्ध काल के खोए पन्ने

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     इतिहास बुलेटिन में निम्न खबरों का अवलोकन करें। ये खबरें स‌ाभार ली गईं हैं। इन्हें स‌ंकलित करके यहां दे रहा हूं। राजनीति व अपराध प्रमुख खबरों की बहुतायत में इतिहास ये खबरें छपतीं तो हैं मगर यत्र-तत्र बिखरी होने के कारण उचित जगह नहीं ले पातीं। मुझे जब भी ऎसा खबरें उपलब्ध होतीं हैं, मैं उन्हें स‌जोकर रखता हूं और स‌ंकलित करके आप तक पहुंचाने का प्रयास करता हूं। उम्मीद है ये खबरें इतिहास प्रेमियों को रुचिकर लगेंगीं।-- डा. मान्धाता स‌िंह ।


1-  कृष्ण व बौद्धकाल के खोए पन्ने ।
2- 3600 साल पुराने राजा का कंकाल मिला ।
3- पश्चिम बंगाल में मिला प्राचीन बौद्ध मठ ।

कृष्ण और बौद्ध काल के  खोए पन्ने

   मध्‍यकाल में भारतीय इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया। तक्षशिला और पाटलीपुत्र के ध्वंस के बाद महाभारत युद्ध और बौद्ध काल के बीच के हिंदू इतिहास के अब बस खंडहर ही बचे हैं। विदेशी इतिहासकारों ने जानबूझकर इस काल के इतिहास को विरोधाभासी बनाया। क्योंकि उन्हें भारत में नए धर्म को स्थापित करना था। दरअसल बुद्ध के पूर्व के संपूर्ण इतिहास को नष्ट किए जाने का संपूर्ण प्रयास किया गया। इस धूमिल से इतिहास को इतिहासकारों ने खुदाईयों और ग्रंथों की खाक छानते हुए क्रमबद्ध करने का प्रयास किया है।

हड़प्पा, सिंधु और मोहनजोदड़ों सभ्यता का प्रथम चरण 3300 से 2800 ईसा पूर्व, दूसरा चरण 2600 से 1900 ईसा पूर्व और तीसरा चरण 1900 से 1300 ईसा पूर्व तक रहा। इतिहासकार मानते हैं कि यह सभ्यता काल 800 ईस्वी पूर्व तक चलता रहा।

प्रथम चरण के काल में महाभारत हुई, दूसरे चरण के काल में मिस्र के फराओं और भारत के कुरु और पौरवो के राजवंश थे। तीसरे चरण में यहूदी धर्म के संस्थापक इब्राहिम, मूसा, सुलेमान ने यहूदी वंशों का निर्माण किया तो भारत में सभी वंशों के 16 महाजनपदों का उदय हुआ। हड़प्पा से पहले सिंधु नदी के आसपास मेहरगढ़ की सभ्यता का अस्तित्व था। उससे पूर्व मध्यप्रदेश में भीमबेटका में भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता को खोजा गया जिसका काल 9000-7000 ईसा पूर्व था। यहां गुफाओं में कुछ शैलचित्र ऐसे भी मिले हैं जिनकी उम्र कार्बनडेटिंग अनुसार 35 हजार ईसा पूर्व की मानी गई है।

सिंधु या मोहनजोदड़ो के काल में इराक में सुमेरी और मिस्र में सबाइन सभ्यता सबसे विकसित सभ्यता थी। मोहदजोदड़ों हड़प्पा से मिलने वली मुहरें, बर्तन, भित्तिचित्र आदि ईरान, मिस्र और इराकी सभ्यताओं में पाई गई मुहरों आदि से मिलती जुलती है। सिंधु घाटी की कई मोहरें सुमेरिया से मिली है जिससे यह भी सिद्ध होता है कि इस देश के उस काल में भारत से संबंध थे।

2800 से 1900 ईसापूर्व के बीच भारत में किन राजवंशों का राज था इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस काल में धर्म का केंद्र हस्तीनापुर, मधुरा आदि से हटकर तक्षशिला हो गया था। अर्थात पेशावर से लेकर हिंदुकुश के इलाके में बहुत तेजी से परिवर्तन हो रहे थे।

1300 ईसा पूर्व भारत 16 महाजनपदों में बंटा गया- 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चे‍दि, 12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कंबोज। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था, परंतु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था।

महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है। मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तक्षशिला और पाटलीपुत्र के संहार किए जाने के कारण महाभारत से बुद्धकाल तक के इतिहास का अस्पष्ट उल्लेख मिलता है।

यह काल बुद्ध के पूर्व का काल है, जब भारत 16 जनपदों में बंटा हुआ था। हर काल में उक्त जनपदों की राजधानी भी अलग-अलग रही, जैसे कोशल राज्य की राजधानी अयोध्या थी तो बाद में साकेत और उसके बाद बौद्ध काल में श्रावस्ती बन गई।

महाभारत युद्ध के पश्चात पंचाल पर पाण्डवों के वंशज तथा बाद में नाग राजाओं का अधिकार रहा। पुराणों में महाभारत युद्ध से लेकर नंदवंश के राजाओं तक 27 राजाओं का उल्लेख मिलता है।

महाभारत काल के बाद अर्थात कृष्ण के बाद हजरत इब्राहीम का काल ईस्वी पूर्व 1800 है अर्थात आज से 3813 वर्ष पूर्व का अर्थात कृष्ण के 1400 वर्ष बाद ह. इब्राहीम का जन्म हुआ था। यह उपनिषदों का काल था। ईसा से 1000 वर्ष पूर्व लिपिबद्ध किए गए छांदोग्य उपनिषद में महाभारत युद्ध के होने का जिक्र है।

हजरत इब्राहीम के काल में वेद व्यास के कुल के महान संत 'सुतजी' थे। इस काल में वेद, उपनिषद, महाभारत और पुराणों को फिर से लिखा जा रहा था। सुतजी और इब्राहीम का काल थोड़ा-बहुत ही आगे-पीछे रहा।

इस काल में उत्तर वैदिक काल की सभ्यता का पतन होना शुरू हो गया था। इस काल में एक और जहां जैन धर्म के अनुयायियों और शासकों की संख्‍या बढ़ गई थी वहीं धरती पर यहूदियों के वंश विस्तार की कहानी लिखी जा रही थी। हजरत इब्राहीम इस इराक का क्षेत्र छोड़कर सीरिया के रास्ते इसराइल चले गए थे और फिर वहीं पर उन्होंने अपने वंश और यहूदी धर्म का विस्तार किया।
इस काल में भरत, कुरु, द्रुहु, त्रित्सु और तुर्वस जैसे राजवंश राजनीति के पटल से गायब हो रहे थे और काशी, कोशल, वज्जि, विदेह, मगध और अंग जैसे राज्यों का उदय हो रहा था। इस काल में आर्यों का मुख्य केंद्र 'मध्यप्रदेश' था जिसका प्रसार सरस्वती से लेकर गंगा दोआब तक था। यही पर कुरु एवं पांचाल जैसे विशाल राज्य भी थे। पुरु और भरत कबीला मिलकर 'कुरु' तथा 'तुर्वश' और 'क्रिवि' कबीला मिलकर 'पंचाल' (पांचाल) कहलाए।

अंतिम राजा निचक्षु : महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है।

जन्मेजय के बाद क्रमश: शतानीक, अश्वमेधदत्त, धिसीमकृष्ण, निचक्षु, उष्ण, चित्ररथ, शुचिद्रथ, वृष्णिमत सुषेण, नुनीथ, रुच, नृचक्षुस्, सुखीबल, परिप्लव, सुनय, मेधाविन, नृपंजय, ध्रुव, मधु, तिग्म्ज्योती, बृहद्रथ और वसुदान राजा हुए जिनकी राजधानी पहले हस्तिनापुर थी तथा बाद में समय अनुसार बदलती रही। बुद्धकाल में शत्निक और उदयन हुए। उदयन के बाद अहेनर, निरमित्र (खान्दपनी) और क्षेमक हुए।

मगध वंश में क्रमश: क्षेमधर्म (639-603 ईपू), क्षेमजित (603-579 ईपू), बि‍म्बिसार (579-551), अजातशत्रु (551-524), दर्शक (524-500), उदायि (500-467), शिशुनाग (467-444) और काकवर्ण (444-424 ईपू) ये राजा हुए।

नंद वंश में नंद वंश उग्रसेन (424-404), पण्डुक (404-294), पण्डुगति (394-384), भूतपाल (384-372), राष्ट्रपाल (372-360), देवानंद (360-348), यज्ञभंग (348-342), मौर्यानंद (342-336), महानंद (336-324)। इससे पूर्व ब्रहाद्रथ का वंश मगध पर स्थापित था।

अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजित, वीरजित और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेमधर्म (639-603 ईपू) से पूर्व राज किया था।( स‌ाभार- http://www.webdunia.com/)

3600 साल पुराने राजा का कंकाल मिला

 मिस्र में एक ऐसे राजा के अवशेष मिला है जिसके बारे में इतिहास में कोई जिक्र नहीं था। वह सम्भवत: तीन हजार 600 साल पहले शासन करता था। मिस्र के एंटिकि्वटी मंत्रालय ने बताया कि राजधानी काहिरा से 500 किलोमीटर दूर सोहाग प्रांत में साउथ अबिदोस नामक स्थान पर यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया की टीम को खुदाई के दौरान सेनब्के नाम के राजा का कंकाल मिला है।
प्राचीन मिस्र के राजाओं को फराओं के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि सेनेब्के का नाम इससे पहले मिस्र के इतिहास में कभी नहीं सुना गया था।
मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि सेनेब्के का नाम खुदाई स्थल पर एक राजकीय कारतूस पर खुदा मिला।
बयान के साथ जारी तस्वीरों में ताबूत काफी खराब हालत में है। जिस चैम्बर में राजा को दफनाया गया था उसकी छत को पेटिंग से सजाया गया था।
राजा के कंकाल की तस्वीरों के साथ जारी कैप्शन में लिखा है कि उसके शव को ममी के रूप में संरक्षित किया गया था, लेकिन पुराकालीन कब्र लूटने वालो ने उसके शरीर को ममी से बाहर निकाल दिया था।
मंत्रालय ने बताया कि कब्र के पास किसी तरह का फर्नीचर न होना इस बात का प्रमाण है कि फराओ काल में कब्र को लूटा गया था। बयान में सेनेब्के का शासनकाल 1650 ईसा पूर्व बताया गया है। (भाषा)

पश्चिम बंगाल में मिला सबसे प्राचीन बौद्ध मठ

 पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर के दातन स‌े दो किलोमीटर दूर मोघलामारी में  पिछले शनिवार को खुदाई के दौरान छठीं शताब्दी ईसापूर्व के बौद्धमठ का पता चला है। यहां स‌े पकाई गईं मिट्टी की छह पट्टलिकाएं ( टेराकोटा टेबलेट्स ) मिले हैं। यहां राज्य के पुरातात्विक विभाग की तरफ स‌े एक टीले की इतिहासकार खुदाई कर रहे हैं। हालांकि इस मठ का क्या नाम था अभी इतिहासकार नहीं तय कर पाएं हैं क्यों कि जो मुहर यहां स‌े मिली है उसे अभी पढ़ा जाना है। इसपर ब्राह्मी लिपि में शब्द उकेरे गए हैं।
  खुदाई में पकाई गई मिट्टी की जो छह पट्टलिकाएं मिली हैं वह एक स‌ीढ़ी के नीचे डिब्बे में रखीं मिली हैं। इनपर ब्राह्मी लिपि में - ये दामा हेतु प्रभाबो....महा शमन....। लिखा हुआ है। इससे इतिहासकारों का मानना है कि यह कोई महत्वपूर्ण बौद्धविहार रहा होगा।
  इस स‌्थल स‌े इसके पहले एक स‌ोने का स‌िक्का और एक लाकेट भी मिला है। इनपर भी ब्राह्मी लिपि में-- महाराजाधिराज स‌माचारदेवो....। लिखा है। इस प्रमाण के आधार पर इतिहासकारों का मानना है कि यह बौद्धविहार बंगाल के स‌्वतंत्र शासक के आधीन था। स‌ंभवतः यह राजा गुप्तशासक कुमारगुप्त के स‌मय यहां का शासक था।
  मालूम हो कि मोघलमारी के इस टीले की स‌बसे पहले खुदाई प्रसिद्ध इतिहासकार बीएन मुखर्जी ने 2003 में की थी। स‌्थानीय लोग िस टीले को स‌खी स‌ेना या स‌शि स‌ेना कहते हैं। प्राप्त प्रमाणों के आधार पर  बीएऩ मुखर्जी ने चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में उल्लिखित उस बौद्ध मठ को बताया जो बंगाल में था और मुर्शिदाबाद के रक्तामृत्तिका विहार स‌े भी प्राचीन है।
 कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर स‌े 2004 में मोगालमारी टीले की खुदाई शुरू की गई थी जो कई चरणों में 2012 तक चली। इस खुदाई में शामिल पुरातत्वविदों ने इस विशाल टीले की खुदाई के बाद निष्कर्ष निकाला है कि इस बौद्ध विहार का दो चरणों में विकास हुआ। पहला चरण छठवीम स‌े स‌ातवीं तक था इसके बाद का चरण नौवीं स‌े दसवीं शताब्दी रहा होगा। अर्थाभाव में यह खुदाई बंद कर दी गई थी जो राज्य पुरातात्विक विभाग ने 20 नवंबर स‌े फिर शुरू की । कलकत्ता विश्वविद्यालय के पुरात्तवविद रजत स‌ान्याल का कहना है कि खुदाई में मिली काफी स‌ंख्या में देवियों की मूर्तियों स‌े स‌ाबित होता है कि यह मठ बुद्धकाल के वज्रयानियों के स‌मय निर्मित किया गया होगा।
     खबर स‌्रोत स‌ाभार----http://timesofindia.indiatimes.com/city/kolkata/

1 comment:

Sp Sudhesh said...

इन खोजों के प़माण क्या हैं? उन स़्ोतों का उल्लेख होना चाहिये । पुराणों को इतिहास नहीं माना जाता ़ ।

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