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Tuesday, August 9, 2011

पांचवीं दिल्ली का निर्माण तुगलक शासक फिरोजशाह ने कराया


    दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश के शासक फिरोजशाह ने पांचवीं दिल्ली का निर्माण कराया।  पूर्ववर्ती बादशाहों की बनाई इमारतों का जीर्णोद्धार कराया और कई शहरों के नए नाम रखे गए। उन्होंने राजस्व प्रणाली में सुधार भी किया। उनके शासनकाल में महामारी नहीं फैलीं और बाहरी आक्रमण नहीं हुए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुताबिक यमुना  तट पर फिरोजशाह तुगलक ने 1354 में पांचवीं दिल्ली ‘कोटला फिरोजशाह’ को स्थापित किया और फिरोजाबाद दुर्ग का निर्माण कराया। उन्होंने 38 साल के शासनकाल में दिल्ली के पास 1200 बाग बगीचे लगवाए। फिरोजशाह को वास्तुशिल्प का शौक था और उनकी तुलना रोम के सम्राट अगस्तस से की जाती है।
फिरोजशाह के मुख्य शिल्पकारों मल्लिक गाजÞी सहना और अब्दुल हक्क द्वारा तैयार ‘कुश्क ए फिरोज’ ही उसकी राजधानी फिरोजाबाद कहलाई। यह राजभवन योजना में बहुभुजाकार था, जो लंबाई में आधा मील और चौड़ाई में एक चौथाई मील है। इसमें निर्मित इमारतों में खासमहल, जनाना महल, महल ए बार ए आम, सहन ए मियांनगी (स्तंभयुक्त बरामदा), अंगूरी महल, शाही महल, जामी मस्जिद और बाउली प्रमुख थे। भवन निर्माण के बारे में फिरोजशाह का कहना था  - अल्लाह की नियामत से मुझ जैसे एक अदना से बंदे को बहुत सारे तोहफे मिले हैं, जिसमें से एक लोकहित के लिए भवन निर्माण की इच्छा है। इस कारण मैंने कई मस्जिद, मदरसे और सराय बनवार्इं।
 एतिहासिक तथ्यों के मुताबिक सम्राट अशोक के दो स्तंभों को फिरोजशाह तुगलक दिल्ली लाए। पहले स्तंभ को टोपरा (अम्बाला) से लाकर जामी मस्जिद के पास लगवाया, जिसे सुनहरी मीनार भी कहा जाता है। दूसरे स्तंभ को मेरठ के पास से लाकर ‘कुश्क ए शिकार’ पर स्थापित किया गया। इसमें अशोक के पाली, प्राकृत और ब्राही लिपि में सात अभिलेख उत्कीर्ण है। इस पर चौहान शासक बीसलदेव, भद्रमित्र और इब्राहीम लोदी के भी अभिलेख उत्कीर्ण हैं। इस स्तंभ में उत्कीर्ण अशोक की राजाज्ञाओं को सबसे पहले 1837 में जेम्स प्रिन्सेप ने पढ़ा। पहले 27 टन भार वाले स्तंभ की ढुलाई के बारे में समकालीन इतिहासकार अफीक ने लिखा है, जिसे 30 सितंबर 1367 में वर्तमान स्थान पर स्थापित किया गया। फिरोज ने इन्हें लाने के बारे में कहा - अल्लाह के रहम से हम इस विशाल स्तम्भ को लाकर फिरोजाबाद की जामी मस्जिद में मीनार के रूप में स्थापित करेंगे और अल्लाह की इच्छा से यह तब तक रहेगा, जब तक विश्व रहेगा।
 फिरोजशाह ने यमुना नदी की दीवार के साथ भव्य मस्जिद बनवाई। यह तीन तरफ खंभेयुक्त गलियारे और पश्चिम की तरफ पूजास्थल से युक्त हैं, जिसमे केवल किबला की दीवार के अवशेष ही बचे हैं। तैमूर इस मजिस्द से इतना प्रभावित हुआ कि उसने समरकंद में 1398 में बीबी खानम की मजिस्द बनवाई जिसके लिए भारत से गए कारीगरों को लगाया गया।
 इतिहास गवाह है कि फिरोजशाह तुगलक के 38 साल के शासनकाल के बाद वंशानुगत झगड़ों के कारण उसकी सल्तनत 1398 में तैमूर के हमले की शिकार हो गई, जिसके कारण दिल्ली में भारी तबाही हुई। (नई दिल्ली, 9 अगस्त -भाषा)।

6 comments:

Sunil Kumar said...

जानकारी से भरी पोस्ट आपका आभार ......

vidhya said...

जानकारी से भरी पोस्ट आपका आभार .

udaya veer singh said...

very valuable post by virtue of historical knowledge ....... commendable job you have done sir .Thanks a lot .

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच

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