खबरों में इतिहास ( भाग-१४ ) अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------। १- दिल्ली का चौथा नगर ‘जहांपनाह’ २--बोथनिया की समुद्रतल पर मिली उड़नतश्तरी ? ३- 4 लाख साल पुराना मानव दांत मिला |
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दिल्ली का चौथा नगर ‘जहांपनाह’
दिल्ली का चौथा नगर ‘जहांपनाह’ पहले दो नगरों ‘किला राय पिथौरा’ और ‘सीरी’ को जोड़ने वाला दीवारनुमा अहाता था। इसका निर्माण मंगोल आक्रमण से बचने के लिए कराया गया था। इसका निर्माण तुगलक वंश के शासक जौना शाह यानी मुहम्मद बिन तुगलक ने कराया था। दिल्ली से लगभग साढ़े 14 किलोमीटर दूर पर ये दीवारें दिल्ली-महरौली सड़क को काटती हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-दिल्ली) के उत्तर में, बेगमपुरी मस्जिद के उत्तर में, खिड़की मस्जिद के दक्षिण में, चिराग दिल्ली के उत्तर में और सतपुल के निकट इस नगर के अवशेषों को देखा जा सकता है।
इतिहासकार वाईडी शर्मा के मुताबिक, 1964-65 में थोड़े पैमाने पर की गई खुदाई के बाद ‘किला राय पिथौरा’ की पूर्वी दीवार के साथ उसके संधि स्थल पर ‘जहांपनाह’ का एक हिस्सा मिला है। खुदाई से निर्माण और विस्तार के तीन स्थानों का पता चलता है। इसकी बुनियाद खुरदरे छोटे पत्थर हैं और जमीन से ऊपरी दीवार तक का हिस्सा चिनाई का है। बीसवीं सदी में दिल्ली में बढ़ते हुए उपनगरों की जरूरतों के कारण इस शहर की पत्थर से निर्मित दीवारों को अब हटाकर दूर फैला दिया गया है। स्थापत्य के लिहाज से खिलजी शासकों ने बादामी पत्थरों के स्थान पर लाल पत्थरों को तरजीह दी थी। तुगलकों ने इसे पूरी तरह बदल दिया। उनकी इमारतों में भूरे पत्थर के सीधे-सादे और कठोरतल, बड़े बड़े कमरों के ऊपर मेहराबी छत, भीतर की ओर ढालू दीवारें, किनारों की तरफ बुर्ज, चार केंद्रीय मेहराबें और खुले भागों पर सरदल होते थे।
शर्मा के मुताबिक, मिट्टी और र्इंटों से बनी मोटी दीवारों के लिए बाहर की तरफ ढालू बनाना जरूरी था। लेकिन वह पत्थर की दीवार के लिए जरूरी नहीं था। इस पद्धति को तुगलकों ने संभवत: सिंध, पंजाब या अफगानिस्तान से लिया था जहां गारे या र्इंटों का इस्तेमाल होता था। बर्नी के मुताबिक, मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दिल्ली के कोषागार में सबसे अधिक कर संग्रह किया। सुल्तान ने दिल्ली में रहने के दौरान कृषि उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास किया और अकाल के दौरान कुंओं का निर्माण करवाया। कृषि के लिए अलग विभाग ‘दीवान-ए-अमीरकोट’ की स्थापना की।
तुगलक को भारतीय उपमहाद्वीप का एक विशाल क्षेत्र शासन करने को प्राप्त हुआ था। उसे राजधानी दक्षिण के दौलताबाद ले जाने और मुद्रा नीति के लिए जाना जाता है। महत्वाकांक्षी सुल्तान ने तुगलकाबाद के दक्षिण पूर्व में 1327 में एक छोटी पहाड़ी पर आदिलाबाद के किले का निर्माण कराया था। इस किले का नाम मुहम्मदाबाद था। लेकिन बाद में इसे आदिलाबाद नाम से जाना जाने लगा। पुरातत्वविदों के मुताबिक, इसकी प्राचीर की सुरक्षा तीन स्तरों बाह्य दुर्ग प्राचीर, गलियारा और अंतर्कोट में थी। इसका निर्माण विशुद्ध रूप से स्थानीय शैली में किया गया है। केंद्र में निर्मित तल का विन्यास आयताकार है। चारों ओर से अनगढ़ पत्थरों की प्राचीर से घिरा हुआ है। ( नई दिल्ली, 7 अगस्त -भाषा)।
बोथनिया की समुद्रतल पर मिली उड़नतश्तरी?
लंदन। बोथनिया की खाड़ी में स्वीडन के एक व्यापारी जहाज के मलबे की खोज के दौरान अभियानकर्ताओं ने सोनार किरणों के माध्यम से एक ऐसी रहस्यमय चीज का मलबा खोजने का दावा किया है, जो अज्ञात उड़न तश्तरी (यूएफओ) हो सकती है।
इस रहस्यमय आकार के यूएफओ की खोज स्वीडन और फिनलैंड के बीच स्थित समुद्री हिस्से में करीब 100 मीटर गहराई पर की गई। इस खोज के आधार पर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि दूसरे ग्रह के लोग धरती पर आते रहे हैं।
समाचार पत्र 'डेली मेल' के अनुसार यूएफओ की खोज करने वाले खोजी दल की राय है कि कीचड़ से सने इस वस्तु ने समुद्रतल से हटने का प्रयास किया होगा क्योंकि उसके आसपास हिलने-डुलने के निशान पाए गए हैं।
शराब और शैम्पेन से लदे स्वीडन के डूबे जहाजों की खोज में लगे स्वीडिश विशेषज्ञ पीटर लिंडबर्ग ने इस यूएफओ के मलबे की खोज की। कुछ लोगों का मत है कि इस यूएफओ का आकार स्टार वार्स श्रृंखला की फिल्मों में दिखाए जाने वाली मिलेनियम फाल्कन उड़न तश्तरी से मिलता है, जिसका आकार गोलाकार था।
लिंडबर्ग ने कहा कि यह 60 फुट बड़ा है और इसे आसानी से देखा जा सकता है। बकौल लिंडबर्ग, " इस पेशे में हम अक्सर अजीबोगरीब चीजें देखते हैं लेकिन अपने 18 वर्ष के पेशेवर करियर के दौरान मैंने इस तरह की चीज पहले कभी नहीं देखी।"
4 लाख साल पुराना मानव दांत मिला
तेल अवीव। तेल अवीव विश्वविद्यालय ने अपनी वेबसाइट पर मंगलवार को लिखा कि इजराइली शहर रोश हाइन में एक गुफा में चार लाख साल पुराना मानव दांत मिला है। यह प्राचीन आधुनिक मानव का सबसे पुराना प्रमाण है।समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक वेबसाइट पर इसके साथ ही लिखा गया कि अब तक मानव के जिस समय काल से अस्तित्व में होने की बात मानी जा रही थी, यह मानव उससे दोगुना अधिक समय पहले जीवित था। यह दांत 2000 में गुफा में मिला था।
इससे पहले आधुनिक मानव का सबसे प्राचीन अवशेष अफ्रीका में मिला था, जो दो लाख साल पुराना था। इसके कारण शोधार्थी यह मान रहे थे कि मानव कि उत्पत्ति अफ्रीका से हुई थी।सीटी स्कैन और एक्स रे से पता चलता है कि ये दांत बिल्कुल आधुनिक मानवों जैसे हैं और इजरायल के ही दो अलग जगहों पर पाए गए दांत से मेल खाते हैं। इजरायल के दो अलग जगहों पर पाए गए दांत एक लाख साल पुराने हैं।
गुफा में काम कर रहे शोधार्थियों के मुताबिक इस खोज से वह धारणा बदल जाएगी कि मानव की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी।गुफा की खोज करने वाले तेल अवीव विश्वविद्यालय के अवि गाफेर और रैन बरकाई ने कहा कि चीन और स्पेन में मिले मानव अवशेष और कंकाल से हालांकि मानव की अफ्रीका में उत्पत्ति की अवधारणा कमजोर पड़ी थी, लेकिन यह खोज उससे भी महत्वपूर्ण है।
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