मुगल शासक हुमायूं का मकबरे को देखकर लगता है कि इस पर गुजरते वक्त की परछाई नहीं पड़ी है। आज भी इस मकबरे का अनछुआ सौंदर्य बेहद प्रभावशाली है। यह मकबरा ताजमहल की पूर्ववर्ती इमारत है। इसी के आधार पर बाद में ताजमहल का निर्माण हुआ। हुमायूं की मौत 19 जनवरी 1556 को शेरशाह सूरी की बनवाई गई दो मंजिला इमारत शेरमंडल की सीढ़ियों से गिर कर हुई थी। इस इमारत को हुमायूं ने ग्रंथालय में तब्दील कर दिया था। मौत के बाद हुमायूं को यहीं दफना दिया गया।
पुरातत्वविद वाईडी शर्मा के मुताबिक, हुमायूं का मकबरा 1565 में उसकी विधवा हमीदा बानू बेगम ने बनवाया था। मकबरे का निर्माण पूरा होने के बाद हुमायूं के पार्थिव अवशेष यहां लाकर दफनाए गए। पूरे परिसर में सौ से अधिक कब्र हैं जिनमें हुमायूं, उसकी दो रानियों और दारा शिकोह की कब्र भी है। दारा शिकोह की उसके भाई औरंगजेब ने हत्या करवा दी थी। विश्व विरासत स्थल में शामिल इसी स्थान से 1857 की क्रांति के बाद ब्रितानिया फौजों ने अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार किया था। फिर निर्वासित कर बर्मा (वर्तमान म्यामां) भेज दिया था।
इतिहासकारों के मुताबिक, हुमायूं के मकबरे के स्थापत्य के आधार पर ही शाहजहां ने दुनिया का आठवां अजूबा ताजमहल बनाया। इसके बाद इसी आधार पर औरंगजेब ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ‘बीबी का मकबरा’ बनवाया, जिसे दक्षिण का ताजमहल कहा जाता है। यह इमारत मुगलकालीन अष्टकोणीय वास्तुशिल्प का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इसका इस्लामिक स्थापत्य स्वर्ग के नक्शे को प्रदर्शित करता हैं।
मकबरा परिसर में प्रवेश करते ही दाहिनी ओर ईसा खान की कब्र है। यह कब्र इतनी खूबसूरत है कि अनजान पर्यटक इसे ही हुमायूं का मकबरा समझ लेते हैं। ईसा खान हुमायूं के प्रतिद्वंद्वी शेर शाह सूरी के दरबार में था। इसके अष्टकोणीय मकबरे के आसपास खूबसूरत मेहराबें और छत पर छतरियां बनी हैं। कुल 30 एकड़ क्षेत्र में फैले बगीचों के बीच हुमायूं का मकबरा एक ऊंचे प्लेटफार्म पर बना है, जो मुगल वास्तुकला का शानदार नमूना है। भारत में पहली बार बड़े पैमाने पर संगमरमर और बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल हुआ। मकबरे में बलुआ पत्थरों की खूबसूरत जाली से छन कर आती रोशनी मानो आंखमिचौली करती है।
हुमायूं का मकबरा एक विशाल कक्ष में है। इसके ठीक पीछे अफसरवाला मकबरा है। कोई नहीं जानता कि यह मकबरा किसने बनवाया, यहां किसे दफनाया गया। इस मकबरे का हुमायूं के मकबरे से क्या संबंध है। हुमायूं के मकबरे के पास ही अरब सराय है। दीवारों से घिरी इस इमारत में हुमायूं के मकबरे के निर्माण के लिए फारस से आए शिल्पकार रहते थे। सिरेमिक की टाइलों से सजी अरब सराय में कई झरोखे और रोशनदान हैं। ( साभार-नई दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा)।
प्राचीन गोवा के 16वीं सदी के एक प्राचीन किले का निर्माण किस राजवंश ने किया ?
गोवा में विरासतों के संरक्षण के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों के बीच इस बात को लेकर मतभेद हैं कि प्राचीन गोवा के 16वीं सदी के एक प्राचीन किले का निर्माण किस राजवंश ने किया। विरासत कार्यकर्ताओं का मानना है कि आदिलशाह महल के प्रसिद्ध द्वार का निर्माण कदंब वंश के हिंदू राजाओं ने करवाया था। लेकिन, एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि इसका निर्माण मुसलिम शासक आदिल शाह ने कराया था।
विरासत संरक्षणकर्ता संजीव सरदेसाई का कहना है कि एएसआई ने आदिलशाह महल के द्वार पर इस आशय की एक पट्टिका लगाई है। लेकिन द्वार के दोनों तरफ ग्रेनाइट की जाली में शेर, मोर, फूल और हिंदू देवताओं की आकृति से साफ होता है कि यह हिंदू कदंब राजाओं ने बनवाया है।
पुराने गोवा के सेंट कजेटान चर्च के सामने यह ऐतिहासिक इमारत यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों की सूची में भी शामिल की गई है। एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद डाक्टर शिवानंदा राव का कहना है कि इस इमारत को पुर्तगाली दौर के समय से अधिसूचित किया गया है। कुछ लोग इसके विपरीत दावा कर रहे हैं। जब तक एएसआई इस जगह की खुदाई नहीं करेगा तब तक कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता।
सरदेसाई ने कहा कि यह अजीब लगता है कि एक मुसलिम शासक अपने किले के प्रवेश द्वार पर हिंदू देवताओं की आकृति बनवाएगा। गोवा हेरिटेज एक्शन ग्रुप के अधिशासी सदस्य और सक्रिय विरासत संरक्षणकर्ता प्रजल शखरदांडे का कहना है कि उन्होंने इस संबंध में अनेक बार एएसआई के अधिकारियों को पत्र लिखा है। लेकिन अधिकारियों ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। गोवा पर एक समय कदंब वंश का राज था जिसके बाद 1469 से बीजापुर के आदिलशाह ने यहां शासन किया था। ( साभार-पणजी, 11 अगस्त (भाषा)।