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Tuesday, October 12, 2010

हजारों साल पुराने 20 मंदिरों के मिले अवशेष

खबरों में इतिहास ( भाग-९ )
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-रायसेन में हजारों साल पुराने मंदिर के मिले अवशेष
२-आदि मानव खाते थे बच्चों का मांस
३-उल्कापिंडों की बारिश से खत्म हुए डायनासोर
४-अर्जेंटीना में 1,300 साल पुराने बर्तन मिले
५-1200 साल पुराने चाँदी के सिक्के

रायसेन में हजारों साल पुराने 20 मंदिरों के मिले अवशेष

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में हजारों साल पुराने विशाल मंदिर समूह का पता चला है। अब तक इस समूह के 20 मंदिरों के भग्नावशेष मिल चुके हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने इन मंदिरों को फिर से उनके मूल स्वरूप में लाने का बीड़ा उठाया है। संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने इन मंदिरों के भग्नावशेषों का जायजा लेने के बाद बताया कि ये ध्वस्त मंदिर भोजपुर के प्रसिद्ध शिव मंदिर के पास आशापुरी गांव में मिले हैं। शिव मंदिर गुजरात के ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर के काल का है। सोमनाथ मंदिर की तरह भोजपुर के ऐतिहासिक शिवमंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया है। इस मंदिर से पांच किलोमीटर दूर मिले 20 प्राचीन मंदिरों के टुकड़ों को बेशकीमती पुरा संपदा बताते शर्मा ने कहा कि इनके मिलने से पुरातत्व के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया है। इनमें से भूतनाथ मंदिर के भग्न अवशेषों को जोड़कर मंदिर को पुन: मूल स्वरूप में लाने का काम शुरू कर दिया गया है।

   आशापुरी में मिले खंडहरों से साफ हुआ है कि भूतनाथ मंदिर का निर्माण हजारों बरस पहले विशाल जलाशय के तट पर किया गया था। प्रतिहार और परमार राजाओं ने यह जलाशय आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक बनवाया था। जलाशय पर विशाल घाट था जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। भूतनाथ मंदिर परमार कालीन स्थापत्य कला का भूमिज शैली में निर्मित उत्कृष्ट मंदिर था। इस पूर्वाभिमुख मंदिर के अवशेषों से पता चला है कि भूतनाथ मंदिर भी भोजपुर के शिव मंदिर की तरह विशाल था। आशापुरी गांव में भूतनाथ मंदिर के अलावा आशापुरी मंदिर, बिलोटा मंदिर, सतमसिया मंदिर आदि मिले हैं। इन मंदिरों में ब्रह्मा, नृवराह, नृसिंह, विष्णु, सूर्य, गणेश, उमा-महेश्वर, नटराज, सदाशिव, कृष्ण, महिषासुर मर्दिनी, नायिकाओं और अप्सराओं की प्रतिमाएं मिली हैं।

आशापुरी क्षेत्र मध्यभारत के मध्यकालीन वटेसर, खजुराहो, कदवाहा आदि की तरह अहम शिल्पकला केंद्र के रूप में विकसित हुआ था। पुरातत्वविद् इसकी शैलीगत विशिष्टताओं का अध्ययन कर रहे हैं। ध्वस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण के लिए चार हजार चार सौ शिलाखंडों को भूगर्भ से निकालकर सुरक्षित रखा गया है। शिल्पखंडों को सहेजने का काम भी किया जा रहा है। तीन महीने की मेहनत से भूतनाथ मंदिर काफी हद तक अपने प्राचीन भव्य स्वरूप में खड़ा होने लगा है। प्राचीन मंदिरों में कोई उत्तराभिमुख है तो कोई दक्षिणाभिमुख। कोई पूर्वाभिमुख है तो कोई पश्चिमाभिमुख। कई मंदिरों के आठवीं, नवीं और दसवीं शताब्दी में बनने का अनुमान लगाया गया है। कुछ मंदिर पंचांग शैली में निर्मित हैं। कई प्रतिमाएं शिल्प कला के लिहाज से बेजोड़ मानी गई हैं। ( जनसत्ता ब्यूरो )।


आदि मानव खाते थे बच्चों का मांस

यूरोप में करीब आठ लाख वर्ष पूर्व आदि मानव अपने प्रतिदिन के भोजन के रूप में मानव मांस, खासकर बच्चों के मांस का भक्षण करते थे। स्पेन में मिले हडि्डयों के जीवाश्म के अध्ययन से यह खुलासा हुआ है। वैज्ञानिकों को ग्रान डोलिना की गुफा से बिजोन, हिरण, जंगली भेड़ और अन्य जीवों की हडि्डयों के साथ ही बच्चों और किशोरों के भी कटे हुए अवशेष मिले हैं। सूत्रों ने खबर दी है कि अनुसंधानकताओं को इन हडि्डयों पर कटने या अन्य चोट के निशान मिले हैं जो प्रस्तर के हथियारों के वार से पड़े होंगे। अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि हडि्डयों के बीच की मज्जा को निकालने का प्रसास किया गया है और इस बात के भी प्रमाण है कि उनके मस्तिष्क को भी खाया गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि आदि मानव ने अपनी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने एवं अपने शत्रु पड़ोसियों से निबटने के लिए दूसरे लोगों की हत्या की।

उल्कापिंडों की वर्षा में खत्म हुए डायनासोर

डायनासोर दुनिया से कैसे गायब हुए, इसको लेकर पिछले तीन दशकों से बहस जारी है। अब एक नए अध्ययन में कहा गया है कि साढे़ छह करोड़ साल पहले उल्कापिंड की बारिश में डायनासोर का अंत हो गया। खगोलीय पिंडों की बारिश हजारों साल चली । वैज्ञानिकों ने इससे पहले मैक्सिको की खाड़ी में एक विशाल गड्ढा पाया था जो प्रागैतिहासिक काल में एक उल्का पिंड के टकराने से बना था। डेली टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने अब ऐसा ही एक और विशाल गड्ढा यूक्रेन में पाया है जो मैक्सिको की खाड़ी वाले गड्ढे से हजारों साल पुराना है और इससे इस बात की संभावना को बल मिला है कि उल्का पिंडो की बारिश में डायनासोरों का अंत हो गया। यूक्रेन के बोत्शि गड्डे की खोज 2002 में हुई थी। आबरदीन विश्वविद्यालय के प्रो. डेविड जोली की अगुवाई में वैज्ञानिकों के दल ने यूक्रेन के उस गड्ढे में एक और गड्ढा पाया जिसके बारे में उनका विश्वास है कि यह किसी और उल्का पिंड के टकराने से बने और उन दोनों उल्का पिंडों के बीच कई साल का अंतर था ।

अर्जेंटीना में 1,300 साल पुराने बर्तन मिले

अर्जेंटीना में एक घर से खुदाई के दौरान लगभग 1,300 साल पुराने बर्तन मिले हैं। समाचार एजेंसी ईएफई के मुताबिक माना जा रहा है कि ये बर्तन जूजू प्रांत के मूल निवासियों से संबंधित हैं। बर्तन फ्रांसो और गोंजालो को उस समय मिले जब वह अपने घर के निर्माण के लिए खुदाई का काम करवा रहे थे। उनके चाचा राबटरे काराजाना ने बताया, "40 सेंटीमीटर खुदाई करने के बाद बर्तन का टुकड़ा बरामद किया गया और बाद में धीरे-धीरे आगे की खुदाई की गई जिसके बाद ये बर्तन बरामद किए गए। हमने पुरातत्तवविदें से संपर्क किया।"

तिलकारा पुरातत्व संस्थान के वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि बर्तनों के अलावा कोई अन्य मूल्यवान वस्तु भी है अथवा नहीं। माना जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले ‘ओमागुआसा इंडियन्स’ समुदाय के इस इलाके में रहते थे।



1200 साल पुराने चाँदी के सिक्के

जर्मनी के अंकलाम शहर में 1200 साल पुराने चाँदी के सिक्के मिले हैं। इन पर अरबी भाषा में खुदाई है, जिससे साबित होता है कि प्राचीन काल में जर्मनी भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार में शामिल रहा है। कुछ सिक्कों पर शानदार नक्काशी है। गैर पेशेवर पुरातत्वशास्त्री पीटर डाखनर ने इन सिक्कों को बेहतरीन डिजाइन वाला बताया। उन्होंने कुछ स्वयंसेवियों और ग्रीफ्सवाल्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर खुदाई का काम किया। जर्मनी के अंकलाम शहर के पास मेटल डिटेक्टर की मदद से खुदाई में 82 चाँदी के सिक्के मिले हैं। यहाँ चाँदी का बाजूबंद और चाँदी की कुछ सिल्लियाँ भी मिली हैं। ये सभी चीजें 20 से 25 मीटर के दायरे में पाई गईं।

पुरातत्वशास्त्री मिषाएल शाइरेन का कहना है, 'इस जमाने के सिक्के बहुत दुर्लभ हैं। इतनी बड़ी संख्या में उनका यहाँ पाया जाना बड़ी बात है।' सबसे पुराना सिक्का सन 610 का बताया जा रहा है, जबकि यहाँ पाया गया सबसे नया सिक्का 820 एडी का हो सकता है। ग्रीफ्सवाल्ड यूनिवर्सिटी के इतिहासकार फ्रेड रुखोएफ्ट ने कहा, 'बाल्टिक सागर के किनारे अरबी भाषा के अक्षर खुदे हुए सिक्के मिलने से साबित होता है कि यह इलाका 1200 साल से अंतरराष्ट्रीय कारोबार के रूट में रहा है।' ये सिक्के मौजूदा वक्त के ईरान, इराक, अफगानिस्तान या उत्तरी अफ्रीका में ढाले गए हो सकते हैं। समझा जाता है कि काले सागर के कारोबारी रास्ते से होते हुए वे वोल्गा नदी से गुजरकर बाल्टिक सागर के तट तक पहुँचे। सिक्के स्लाविच बस्तियों के पास से मिले हैं। यूरोपीय और एशियाई नस्ल के मिले जुले लोगों की बस्ती स्लाविच बस्ती कही जाती थी। इतिहासकारों का मत है कि स्लाविच और वीकिंग लोगों के बीच कारोबार हुआ होगा। यूरोप के स्कैनडिनेवयाई इलाकों में वाइकिंग लोग रहते थे। यहाँ सिक्के और चाँदी के दूसरे सामान मिले हैं जिनका वजन करीब 200 ग्राम है। उनका मूल्य तो खत्म हो गया होगा, लेकिन चाँदी होने की वजह से उनका महत्व बना रहा होगा। इतिहासकारों का मानना है कि इतनी चाँदी से चार बैल या एक गुलाम खरीदा जा सकता था।

2 comments:

शरद कोकास said...

डॉक्टर साहब देश विदेश की यह पुरातत्व सम्बन्धी खबरें पढ़कर बहुत अच्छा लगा । राय सेन में किसके निर्देशन में उत्खनन चल रहा है ?

Dr Mandhata Singh said...

शरदजी यह खबर जनसत्ता ब्यूरों से मिली है। विस्तृत विवरण हासिल करने की कोशिश कर रहा हूं।

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