शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसने कभी हिन्दू धार्मिक पुस्तक पर 'गीता प्रेस, गोरखपुर' की लाइन न देखी हो। भारत में धर्म की गंगा बहाने वाली गीता प्रेस, गोरखपुर इन दिनों 'संकट' में है। खबरों के मुताबिक ट्रस्ट और कर्मचारियों के बीच विवाद से गीता प्रेस, गोरखपुर पर 25 दिनों से ताला लगा हुआ है। ट्रस्ट और कर्मचारियों के विवाद के बाद प्रेस बंद पड़ी है। हर हिन्दू को संस्कृति का पाठ पढ़ाने वाली गीता प्रेस, गोरखपुर वर्तमान में बदहाल स्थिति में है।
हर हिन्दू धर्म को मानने वाले व्यक्ति के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर एक तीर्थ की तरह है, लेकिन आज इस तीर्थ से ज्ञान की गंगा नहीं बह रही है। जानकारी के मुताबिक गीता प्रेस, गोरखपुर रोजाना करीब 50 हजार से ज्यादा धार्मिक पुस्तकें बेचती हैं।
कब हुई थी शुरुआत : गीता प्रेस, गोरखपुर की स्थापना 1923 में हुई थी। गीता प्रेस, गोरखपुर का संचालन कोलकाता स्थित गोविंद भवन संस्था करती है। आम लोगों के बीच सनातन धर्म के प्रचार के लिए गीता प्रेस की स्थापना की गई थी।
कम लागत पर पुस्तकें : प्रेस का स्थापना का उद्देश्य कम मूल्य पर धार्मिक किताबें उपलब्ध कराना था। गीता प्रेस, गोरखपुर धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी संस्था है। प्रेस में करीब 780 पुस्तकों का प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में होता है।
गीता प्रेस वह पहली प्रेस है, जिसने नेपाली भाषा में रामायण का प्रकाशन किया था। इसकी लाइब्रेरी में कई दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं। इसके कुल में 35 प्रतिशत हिस्सा रामचरित मानस का है। गीता प्रेस बिना लाभ के पुस्तकों का विक्रय करती है। लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम कीमतों पर किताबों को बेचा जाता है। इस बात का उदाहरण है कि यहां छपी हनुमान चालीसा चाय से भी कम कीमत 2 रुपए में मिल जाती है।
यह है विवाद : खबरों के मुताबिक प्रेस में करीब 180 स्थायी और 300 अस्थायी कर्मचारी काम करते हैं। बताया जाता है कि ट्रस्ट और कर्मचारियों के बीच दो मांगों पर विवाद है। पहली, कर्मचारी सभी के लिए समान वेतन की मांग कर रहे हैं। दूसरी, अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने को लेकर है।
इसी विवाद के बाद बाद गीता प्रेस, गोरखपुर में छपाई का काम नहीं हो रहा है। खबरों के अनुसार ट्रस्ट ने कर्मचारियों पर मारपीट का आरोप भी लगाया है। मारपीट के आरोप में ट्रस्ट ने 17 कर्मचारियों को निलंबित किया है। कर्मचारी इन 17 कर्मचारियों को भी वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
किसी से नहीं लेती आर्थिक मदद : गीता प्रेस, गोरखपुर में हर महीने करीब 400 टन कागजों पर छपाई होती है। प्रेस इस पर किसी भी प्रकार की सब्सिडी नहीं लेती है। गीता प्रेस बाजार भाव पर ही कागजों की खरीदी करती है। गीता प्रेस की नीति के मुताबिक वह सरकार, संस्था या किसी व्यक्ति से भी किसी भी तरह की आर्थिक मदद भी नहीं ली जाती है।
गलती पर इनाम : गांधीजी की सलाह पर प्रेस की किसी धार्मिक पुस्तक पर विज्ञापन और किसी पुस्तक की समीक्षा नहीं छापी जाती है। यहां तक की किसी जीवित व्यक्ति का फोटो भी किसी पुस्तक में नहीं प्रकाशित किया जाता है। धार्मिक पुस्तक में किसी प्रकार की गलती होने पर बताने वाले पाठक को प्रेस इनाम भी देती है।
गीता प्रेस ने दी सफाई : इस पूरे विवाद पर गीता प्रेस गोरखपुर ने ट्वीट कर सफाई दी है कि गीता प्रेस को किसी प्रकार के अनुदान की आवश्यकता नहीं है। कर्मचारियों से बात चल रही है और सभी कर्मचारी जल्द काम पर लौटेंगे।
http://hindi.webdunia.com/regional-hindi-news/gita-press-gorakhpur-115082800076_1.html
हर हिन्दू धर्म को मानने वाले व्यक्ति के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर एक तीर्थ की तरह है, लेकिन आज इस तीर्थ से ज्ञान की गंगा नहीं बह रही है। जानकारी के मुताबिक गीता प्रेस, गोरखपुर रोजाना करीब 50 हजार से ज्यादा धार्मिक पुस्तकें बेचती हैं।
कब हुई थी शुरुआत : गीता प्रेस, गोरखपुर की स्थापना 1923 में हुई थी। गीता प्रेस, गोरखपुर का संचालन कोलकाता स्थित गोविंद भवन संस्था करती है। आम लोगों के बीच सनातन धर्म के प्रचार के लिए गीता प्रेस की स्थापना की गई थी।
कम लागत पर पुस्तकें : प्रेस का स्थापना का उद्देश्य कम मूल्य पर धार्मिक किताबें उपलब्ध कराना था। गीता प्रेस, गोरखपुर धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी संस्था है। प्रेस में करीब 780 पुस्तकों का प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में होता है।
गीता प्रेस वह पहली प्रेस है, जिसने नेपाली भाषा में रामायण का प्रकाशन किया था। इसकी लाइब्रेरी में कई दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं। इसके कुल में 35 प्रतिशत हिस्सा रामचरित मानस का है। गीता प्रेस बिना लाभ के पुस्तकों का विक्रय करती है। लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम कीमतों पर किताबों को बेचा जाता है। इस बात का उदाहरण है कि यहां छपी हनुमान चालीसा चाय से भी कम कीमत 2 रुपए में मिल जाती है।
यह है विवाद : खबरों के मुताबिक प्रेस में करीब 180 स्थायी और 300 अस्थायी कर्मचारी काम करते हैं। बताया जाता है कि ट्रस्ट और कर्मचारियों के बीच दो मांगों पर विवाद है। पहली, कर्मचारी सभी के लिए समान वेतन की मांग कर रहे हैं। दूसरी, अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने को लेकर है।
इसी विवाद के बाद बाद गीता प्रेस, गोरखपुर में छपाई का काम नहीं हो रहा है। खबरों के अनुसार ट्रस्ट ने कर्मचारियों पर मारपीट का आरोप भी लगाया है। मारपीट के आरोप में ट्रस्ट ने 17 कर्मचारियों को निलंबित किया है। कर्मचारी इन 17 कर्मचारियों को भी वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
किसी से नहीं लेती आर्थिक मदद : गीता प्रेस, गोरखपुर में हर महीने करीब 400 टन कागजों पर छपाई होती है। प्रेस इस पर किसी भी प्रकार की सब्सिडी नहीं लेती है। गीता प्रेस बाजार भाव पर ही कागजों की खरीदी करती है। गीता प्रेस की नीति के मुताबिक वह सरकार, संस्था या किसी व्यक्ति से भी किसी भी तरह की आर्थिक मदद भी नहीं ली जाती है।
गलती पर इनाम : गांधीजी की सलाह पर प्रेस की किसी धार्मिक पुस्तक पर विज्ञापन और किसी पुस्तक की समीक्षा नहीं छापी जाती है। यहां तक की किसी जीवित व्यक्ति का फोटो भी किसी पुस्तक में नहीं प्रकाशित किया जाता है। धार्मिक पुस्तक में किसी प्रकार की गलती होने पर बताने वाले पाठक को प्रेस इनाम भी देती है।
गीता प्रेस ने दी सफाई : इस पूरे विवाद पर गीता प्रेस गोरखपुर ने ट्वीट कर सफाई दी है कि गीता प्रेस को किसी प्रकार के अनुदान की आवश्यकता नहीं है। कर्मचारियों से बात चल रही है और सभी कर्मचारी जल्द काम पर लौटेंगे।
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