ओड़ीशा के जाटनी कस्बा के पास हरिराजपुर ग्राम पंचायत के बाहरी इलाके के बंग गांव के पास असुराबिंधा में 13 मार्च 2014 को खुदाई के दौरान उत्कल विश्वविद्यालय के पुरातत्वविज्ञानियों को 3500 साल पुराने नरकंकाल मिले हैं। इनमें से एक महिला की है। यह जानकारी 14 मार्च को संवाददाताओं को विश्वविद्यालय के नृविज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने दी। यह खबर ओड़ीशा के ओड़ीशा सनटाईम्स, ओडिया अखबार समाज समेत कई अखबारों ने छापी है। जानकारी दे रहे उत्कल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर किशोर कुमार बासा, प्रोफेसर सविता आचार्य और दकन कालेज पुणे की डाक्टर बीना मुशरिफ त्रिपाठी ने बताया कि एक नरकंकाल 30 से35 वर्ष की महिला की है। अभी सही उम्र का पता करने के लिए कार्बन डेटिंग करायी जाएगी। इसके अलावा पुरुष नरकंकाल का डीएनए कराकर महिला से उसके कोई संबंध की भी जांच की जाएगी। दोनों नरकंकाल 3 से 4 फीट की दूरी पर पाे गए हैं। एक बर्तन के अंदर मिले शिशु नरकंकाल के लिंग का निर्धारण नहीं हो पाया है। यह शिशु पुरुष नरकंकाल के पास मिला है। सभी की हैदराबाद से कार्बन डेटिंग कराई जाएगी। इनकी मौत कैसे हुई होगी, इसका भी पता नहीं चल पाया है।
उठेगा 600 साल पुराने रहस्य से पर्दा..
लंदन क्रॉसरेल परियोजना की खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों को सामूहिक रूप से दफ़न किए गए लोगों के नर कंकाल मिले हैं. इन कब्रों के प्लेग से मरने वाले व्यक्तियों के अवशेष होने के संभावना है. फॉरेंसिक जाँच से कंकालों के 14वीं शताब्दी का होने का संकेत मिला है.सरकारी अभिलेखों से जानकारी मिलती है कि प्लेग की महामारी के दौरान लंदन में हज़ारों लोगों को शहर के बाहर सामूहिक क़ब्रों में दफ़न किया गया था, लेकिन कब्रों की वास्तविक स्थिति एक रहस्य थी.पुरातत्वविदों का मानना है कि यह जगह चार्टरहाऊस चौक के पास स्थित बर्बिकन के करीब है.पुरातत्वविदों की योजना इस पूरे क्षेत्र में प्लेग से मारे गए लोगों के परिजनों की खोज करने की है. इस जगह कई क़ब्रों के होने के निशान मिले हैं.खुदाई के दौरान मिले कंकाल के दाँतों से प्लेग के बैक्टीरिया येरसिनिया परसिस्ट के डीएनए मिले हैं. .ये क़ब्रें वर्ष 1348 से साल 1350 के बीच की मानी जा रही हैं.क्रॉसरेल परियोजना के प्रमुख पुरातत्वविद् जे कार्वर इस खोज के बारे में कहते हैं, "इससे 660 साल पुराने रहस्य की गुत्थी सुलझ सकती है."जे कार्वर बताते हैं, "इस खुदाई से यूरोप की सबसे भयानक महामारी के दस्तावेज़ीकरण और उसे समझने में मदद मिलेगी. आगे की खुदाई से पता चलेगा कि हम अपनी उम्मीदों पर कितने खरे उतरेंगे."
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