दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी के रहस्यों और कालखंड को तलाशने के लिए दिल्ली ASI और पटना की टीम काशी के राजघाट पहुंची है। खुदाई के लिए ट्रैंच बनाकर मापन कर लिया गया है।
पहले ट्रैंच A-1 में 92 सेमी की खुदाई भी हो चुकी है। अभी तक की खुदाई में कुछ बर्तनों के टुकड़े मिले हैं। जानकारों के मुताबिक खुदाई की गहराई का मापन मिलती जा रही मिटटी की सतहों पर ही डिसाइड होगा।
1969 के बाद फिर से काशी की प्राचीनता को वैज्ञानिक आधार देने के लिए खुदाई की जा रही है। वैज्ञानिकों की टीम कार्बन डेटिंग के जरिए ये पता लगाएगी कि इस शहर की नगरीय सभ्यता कैसी और कितनी पुरानी है।
राजघाट में बीएचयू ने वर्ष 1960 से 1969 तक खुदाई कराई थी। खुदाई से इस तथ्य का खुलासा हुआ था कि ईसा पूर्व 8वीं शताब्दी से लेकर आज तक काशी में मानव जीवन रहा है। कई कालखंडों में यहां पर मानव जीवन होने के साक्ष्य भी मिले हैं।
दिल्ली से आई ASI टीम के सहायक पुरातत्व विद राजेश यादव ने बताया कि ट्रैंच बनाकर खुदाई का काम शुरू हो गया है। उन्होंने बताया, माउंट (टीला ) कल्चर सीक्वल जानने के लिए वर्टिकल और डिटेल्ड खुदाई की जा रही है।
इतिहासकार ओपी केजरीवाल ने बताया कि काशी में हो रही खुदाई विज्ञान और इतिहास को एक नया आधार देगी। ग्रंथों में बनारस का इतिहास महाभारत काल का मिलता है। इतिहास की कई किताबों में काशी कि सभ्यता का प्राचीन वर्णन मिलता है। खुदाई से जो चीजें मिलेंगी वो प्राचीनता की दिशा में एक नया इतिहास दुनिया को देंगी।
राजघाट के पास अवशेष स्थल पर खुदाई 1969 के बाद एक बार फिर ASI और ज्ञान प्रवाह की संयुक्त देख-रेख में खुदाई शुरू हो गई है। पुरातत्वविद और बीएचयू की पूर्व प्रो. विदुला जायसवाल ने बताया कि राजघाट के पुरातात्विक खंडहर से काशी की प्राचीनता का जो इतिहास ईसापूर्व 8 वीं शताब्दी यानि 2800 वर्ष का मिलता है।
इस बार खुदाई के दौरान मिलने वाले अवशेषों की कार्बन डेटिंग कराई जाएगी तभी पता चल पाएगा कि इस शहर का इतिहास कितना पुराना है।
सहायक पुरातत्वविद राजेश यादव ने बताया कि कार्बन डेटिंग आधुनिक विज्ञान में काफी विकसित प्रणाली है। खुदाई के दौरान प्राप्त जीव-जंतुओं के अवशेषों, बर्तन, नगर सभ्यता की ईटों और भी तमाम ऐसी चीजें होती हैं जिनका कार्बन कण और एक्टिव पदार्थों से काल खंड का पता लगाया जा सकता है। वैज्ञानिक आधार पर कार्बन डेटिंग ही प्राचीनता का सबसे पुख्ता प्रमाण दे सकता है। वहीं, इससे पहले भी अक्टूबर माह में पुरात्व विभाग ने एक और स्थान की खुदाई की थी। लखनऊ से 50 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा गांव में साधु शोभन सरकार के सपने से प्रेरित होकर सोने के लिए खुदाई भी की गई। वहां कुछ न मिलने पर आखिर कर खुदाई करने पहुंची टीम को अपना बोरिया बिस्तर बांध कर निकल जाना ही सही लगा।
(साभार दैनिक जागरण-वाराणसी.)
डौंडिया खेड़ा: सोना तो नहीं, सोने से बड़ा खजाना मिला
उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के डौंडिया खेड़ा के महल में हुई खोदाई में सोना तो नहीं मिला, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को उससे भी बड़ा खजाना मिला है। खोदाई में निकले अवशेषों से ऐसे प्रमाण मिले हैं कि वहां का इतिहास तीन हजार साल पुराना है। यह तथ्य एएसआइ के लिए काफी अहम है। इससे पहले डौंडिया खेड़ा का इतिहास 7वीं सदी तक का ही माना जा रहा था।
एएसआइ के पहले महानिदेशक ने 1860 में प्रमाण जुटाए थे कि चीनी यात्री ह्वेन सांग ने सातवीं सदी में डौंडिया खेड़ा का भ्रमण किया था। उसने लिखा था कि डौंडिया खेड़ा में बौद्ध धर्म मानने वाले लोग उसे मिले थे। एएसआइ ने जब डौंडिया खेड़ा में राजा राव रामबख्श के महल की खोदाई की तो वहां मिले अवशेषों से प्राथमिक स्तर पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि वहां का इतिहास 2 हजार साल पुराना है। खोदाई में चमकीले मृदभांड, लाल बर्तन, हड्डी की नुकीली वस्तुएं, जानवरों की हड्डियां, सुपारी के आकार के पत्थर व लोहे की कीलें मिली थीं। एएसआइ की उत्खनन एवं अन्वेक्षण शाखा के निदेशक डॉ. जमाल हसन कहते हैं कि अवशेषों के अध्ययन से इस बात का पता चला है कि डौंडिया खेड़ा का इतिहास 3 हजार साल पुराना है। एएसआइ के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. बी आर मणि कहते हैं कि एएसआइ ने परीक्षण के लिए डौंडिया खेड़ा में खोदाई की अनुमति दी थी। विभाग ऐसी खोदाई कराता रहता है।
अंग्रेजों ने कर लिया था राजा रामबख्श के महल पर कब्जा
शोभन सरकार ने डौंडिया खेड़ा में एक हजार टन सोना दबा होने का दावा किया था। इसके बाद राजा राव रामबख्श के खंडहर हो चुके महल में एएसआइ ने 18 अक्टूबर को खोदाई शुरू कराई थी। जियोलॉजिकल ऑफ इंडिया ने एएसआइ को 29 अक्टूबर को रिपोर्ट दी थी, जिसमें उसने कहा था कि महल के नीचे सोना, चांदी या अन्य धातु दबी हो सकती है। राजा के महल में एक माह तक खोदाई चली और काम 19 नवंबर 2013 को पूरा हुआ। इस काम में 278751 रुपये खर्च हुए थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने महल पर कब्जा कर राजा राव रामबख्श को फांसी दे दी थी।
करीब 100 लोगों ने लगाई आरटीआइसोना मामले को लेकर एएसआइ के दिल्ली स्थित मुख्यालय में करीब 100 आरटीआइ लगाई गई हैं। इसमें लोगों ने पूछा है कि क्या सपनों के आधार पर भी एएसआइ खोदाई कराता है? क्या बाबाओं की बात पर भी एएसआइ भरोसा करता है? कई लोगों ने सोना निकालने के मामले पर होने वाले खर्च की जानकारी मांगी है।
(साभार दैनिक जागरण-[वी.के.शुक्ला], नई दिल्ली।)
पहले ट्रैंच A-1 में 92 सेमी की खुदाई भी हो चुकी है। अभी तक की खुदाई में कुछ बर्तनों के टुकड़े मिले हैं। जानकारों के मुताबिक खुदाई की गहराई का मापन मिलती जा रही मिटटी की सतहों पर ही डिसाइड होगा।
1969 के बाद फिर से काशी की प्राचीनता को वैज्ञानिक आधार देने के लिए खुदाई की जा रही है। वैज्ञानिकों की टीम कार्बन डेटिंग के जरिए ये पता लगाएगी कि इस शहर की नगरीय सभ्यता कैसी और कितनी पुरानी है।
राजघाट में बीएचयू ने वर्ष 1960 से 1969 तक खुदाई कराई थी। खुदाई से इस तथ्य का खुलासा हुआ था कि ईसा पूर्व 8वीं शताब्दी से लेकर आज तक काशी में मानव जीवन रहा है। कई कालखंडों में यहां पर मानव जीवन होने के साक्ष्य भी मिले हैं।
दिल्ली से आई ASI टीम के सहायक पुरातत्व विद राजेश यादव ने बताया कि ट्रैंच बनाकर खुदाई का काम शुरू हो गया है। उन्होंने बताया, माउंट (टीला ) कल्चर सीक्वल जानने के लिए वर्टिकल और डिटेल्ड खुदाई की जा रही है।
इतिहासकार ओपी केजरीवाल ने बताया कि काशी में हो रही खुदाई विज्ञान और इतिहास को एक नया आधार देगी। ग्रंथों में बनारस का इतिहास महाभारत काल का मिलता है। इतिहास की कई किताबों में काशी कि सभ्यता का प्राचीन वर्णन मिलता है। खुदाई से जो चीजें मिलेंगी वो प्राचीनता की दिशा में एक नया इतिहास दुनिया को देंगी।
राजघाट के पास अवशेष स्थल पर खुदाई 1969 के बाद एक बार फिर ASI और ज्ञान प्रवाह की संयुक्त देख-रेख में खुदाई शुरू हो गई है। पुरातत्वविद और बीएचयू की पूर्व प्रो. विदुला जायसवाल ने बताया कि राजघाट के पुरातात्विक खंडहर से काशी की प्राचीनता का जो इतिहास ईसापूर्व 8 वीं शताब्दी यानि 2800 वर्ष का मिलता है।
इस बार खुदाई के दौरान मिलने वाले अवशेषों की कार्बन डेटिंग कराई जाएगी तभी पता चल पाएगा कि इस शहर का इतिहास कितना पुराना है।
सहायक पुरातत्वविद राजेश यादव ने बताया कि कार्बन डेटिंग आधुनिक विज्ञान में काफी विकसित प्रणाली है। खुदाई के दौरान प्राप्त जीव-जंतुओं के अवशेषों, बर्तन, नगर सभ्यता की ईटों और भी तमाम ऐसी चीजें होती हैं जिनका कार्बन कण और एक्टिव पदार्थों से काल खंड का पता लगाया जा सकता है। वैज्ञानिक आधार पर कार्बन डेटिंग ही प्राचीनता का सबसे पुख्ता प्रमाण दे सकता है। वहीं, इससे पहले भी अक्टूबर माह में पुरात्व विभाग ने एक और स्थान की खुदाई की थी। लखनऊ से 50 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा गांव में साधु शोभन सरकार के सपने से प्रेरित होकर सोने के लिए खुदाई भी की गई। वहां कुछ न मिलने पर आखिर कर खुदाई करने पहुंची टीम को अपना बोरिया बिस्तर बांध कर निकल जाना ही सही लगा।
(साभार दैनिक जागरण-वाराणसी.)
डौंडिया खेड़ा: सोना तो नहीं, सोने से बड़ा खजाना मिला
उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के डौंडिया खेड़ा के महल में हुई खोदाई में सोना तो नहीं मिला, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को उससे भी बड़ा खजाना मिला है। खोदाई में निकले अवशेषों से ऐसे प्रमाण मिले हैं कि वहां का इतिहास तीन हजार साल पुराना है। यह तथ्य एएसआइ के लिए काफी अहम है। इससे पहले डौंडिया खेड़ा का इतिहास 7वीं सदी तक का ही माना जा रहा था।
एएसआइ के पहले महानिदेशक ने 1860 में प्रमाण जुटाए थे कि चीनी यात्री ह्वेन सांग ने सातवीं सदी में डौंडिया खेड़ा का भ्रमण किया था। उसने लिखा था कि डौंडिया खेड़ा में बौद्ध धर्म मानने वाले लोग उसे मिले थे। एएसआइ ने जब डौंडिया खेड़ा में राजा राव रामबख्श के महल की खोदाई की तो वहां मिले अवशेषों से प्राथमिक स्तर पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि वहां का इतिहास 2 हजार साल पुराना है। खोदाई में चमकीले मृदभांड, लाल बर्तन, हड्डी की नुकीली वस्तुएं, जानवरों की हड्डियां, सुपारी के आकार के पत्थर व लोहे की कीलें मिली थीं। एएसआइ की उत्खनन एवं अन्वेक्षण शाखा के निदेशक डॉ. जमाल हसन कहते हैं कि अवशेषों के अध्ययन से इस बात का पता चला है कि डौंडिया खेड़ा का इतिहास 3 हजार साल पुराना है। एएसआइ के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. बी आर मणि कहते हैं कि एएसआइ ने परीक्षण के लिए डौंडिया खेड़ा में खोदाई की अनुमति दी थी। विभाग ऐसी खोदाई कराता रहता है।
अंग्रेजों ने कर लिया था राजा रामबख्श के महल पर कब्जा
शोभन सरकार ने डौंडिया खेड़ा में एक हजार टन सोना दबा होने का दावा किया था। इसके बाद राजा राव रामबख्श के खंडहर हो चुके महल में एएसआइ ने 18 अक्टूबर को खोदाई शुरू कराई थी। जियोलॉजिकल ऑफ इंडिया ने एएसआइ को 29 अक्टूबर को रिपोर्ट दी थी, जिसमें उसने कहा था कि महल के नीचे सोना, चांदी या अन्य धातु दबी हो सकती है। राजा के महल में एक माह तक खोदाई चली और काम 19 नवंबर 2013 को पूरा हुआ। इस काम में 278751 रुपये खर्च हुए थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने महल पर कब्जा कर राजा राव रामबख्श को फांसी दे दी थी।
करीब 100 लोगों ने लगाई आरटीआइसोना मामले को लेकर एएसआइ के दिल्ली स्थित मुख्यालय में करीब 100 आरटीआइ लगाई गई हैं। इसमें लोगों ने पूछा है कि क्या सपनों के आधार पर भी एएसआइ खोदाई कराता है? क्या बाबाओं की बात पर भी एएसआइ भरोसा करता है? कई लोगों ने सोना निकालने के मामले पर होने वाले खर्च की जानकारी मांगी है।
(साभार दैनिक जागरण-[वी.के.शुक्ला], नई दिल्ली।)
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