अफगानिस्तान में मिला महाभारतकालीन विमान..! अभी
तक हम धर्मग्रंथों में ही पढ़ते ही रहे हैं कि रामायणकाल और महाभारत काल
में विमान होते थे। पुष्पक विमान के बारे में भी हम सबने पढ़ा है।...लेकिन
हाल ही में एक सनसनीखेज जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिक अफगानिस्तान में
एक 5000 साल पुराना विमान मिला है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह
महाभारतकालीन हो सकता है।
वायर्ड डॉट कॉम की एक रिपोर्ट में दावा
किया जा रहा है कि प्राचीन भारत के पांच हजार वर्ष पुराने एक विमान को हाल
ही में अफगानिस्तान की एक गुफा में पाया गया है। कहा जाता है कि यह विमान
एक 'टाइम वेल' में फंसा हुआ है अथवा इसके कारण सुरक्षित बना हुआ है। यहां
इस बात का उल्लेख करना समुचित होगा कि 'टाइम वेल' इलेक्ट्रोमैग्नेटिक
शॉकवेव्स से सुरक्षित क्षेत्र होता है और इस कारण से इस विमान के पास जाने
की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य
हो जाता है।
कहा जा रहा है कि यह विमान महाभारत काल का है और इसके
आकार-प्रकार का विवरण महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में किया गया है।
इस कारण से इसे गुफा से निकालने की कोशिश करने वाले कई सील कमांडो गायब हो
गए हैं या फिर मारे गए हैं।
रशियन फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विज (एसवीआर)
का कहना है कि यह महाभारत कालीन विमान है और जब इसका इंजन शुरू होता है तो
इससे बहुत सारा प्रकाश निकलता है। इस एजेंसी ने 21 दिसंबर 2010 को इस आशय
की रिपोर्ट अपनी सरकार को पेश की थी।
रूसी रिपोर्ट में यह भी कहा
गया है कि इस विमान में चार मजबूत पहिए लगे हुए हैं और यह प्रज्जवलन
हथियारों से सुसज्जित है। इसके द्वारा अन्य घातक हथियारों का भी इस्तेमाल
किया जाता है और जब इन्हें किसी लक्ष्य पर केन्द्रित कर प्रक्षेपित किया
जाता है तो ये अपनी शक्ति के साथ लक्ष्य को भस्म कर देते हैं।
ऐसा
माना जा रहा है कि यह प्रागेतिहासिक मिसाइलों से संबंधित विवरण है। अमेरिकी
सेना के वैज्ञानिकों का भी कहना है कि जब सेना के कमांडो इसे निकालने का
प्रयास कर रहे थे तभी इसका टाइम वेल सक्रिय हो गया और इसके सक्रिय होते ही
आठ सील कमांडो गायब हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टाइम वेल
सर्पिलाकार में आकाशगंगा की तरह होता है और इसके सम्पर्क में आते ही सभी
जीवित प्राणियों का अस्तित्व इस तरह समाप्त हो जाता है मानो कि वे मौके पर
मौजूद ही नहीं रहे हों।
एसवीआर रिपोर्ट का कहना है कि यह क्षेत्र 5
अगस्त को पुन: एक बार सक्रिय हो गया था और इसके परिणामस्वरूप 40 सिपाही और
प्रशिक्षित जर्मन शेफर्ड डॉग्स इसकी चपेट में आ गए थे। संस्कृत भाषा में
विमान केवल उड़ने वाला वाहन ही नहीं होता है वरन इसके कई अर्थ हो सकते हैं,
यह किसी मंदिर या महल के आकार में भी हो सकता है।
ऐसा भी दावा किया
जाता है कि कुछेक वर्ष पहले ही चीनियों ने ल्हासा, तिब्बत में संस्कृत में
लिखे कुछ दस्तावेजों का पता लगाया था और बाद में इन्हें ट्रांसलेशन के लिए
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में भेजा गया था।
यूनिवर्सिटी की डॉ. रूथ
रैना ने हाल ही इस बारे में जानकारी दी थी कि ये दस्तावेज ऐसे निर्देश थे
जो कि अंतरातारकीय अंतरिक्ष विमानों (इंटरस्टेलर स्पेसशिप्स) को बनाने से
संबंधित थे।
हालांकि इन बातों में कुछ बातें अतरंजित भी हो सकती हैं
कि अगर यह वास्तविकता के धरातल पर सही ठहरती हैं तो प्राचीन भारतीय
ज्ञान-विज्ञान और तकनीक के बारे में ऐसी जानकारी सामने आ सकती है जो कि आज
के जमाने में कल्पनातीत भी हो सकती है।
रामायण में भी पुष्पक विमान
का उल्लेख मिलता है जिसमें बैठकर रावण सीताजी को हर ले गया था। हनुमान भी
सीता की खोज में समुद्र पार लंका में उड़ कर ही पहुंचे थे। रावण के पास
पुष्पक विमान था जिसे उसने अपने भाई कुबेर से हथिया लिया था।
राम-रावण
युद्ध के बाद श्रीराम ने सीता, लक्ष्मण तथा अन्य लोगों के साथ सुदूर
दक्षिण में स्थित लंका से कई हजार किमी दूर उत्तर भारत में अयोध्या तक की
दूरी हवाई मार्ग से पुष्पक विमान द्वारा ही तय की थी। पुष्पक विमान रावण ने
अपने भाई कुबेर से बलपूर्वक हासिल किया था। रामायण में मेघनाद द्वारा उड़ने
वाले रथ का प्रयोग करने का भी उल्लेख मिलता है।
आज भी इंका सभ्यता
के खंडहरों और पिरामिडों (मिस्र के बाद पिरामिड यहां भी मिले हैं) के
भित्तिचित्रों में मनुष्यों के पंख दर्शाए गए हैं तथा उड़नतश्तरी और
अंतरिक्ष यात्रियों सरीखी पोशाक में लोगों के चित्र बने हैं। इसके अलावा
मध्य अमेरिका से मिले पुरातात्विक अवशेषों में धातु की बनी आकृतियां बिलकुल
आधुनिक विमानों से मिलती हैं। माचू-पिच्चू की धुन्ध भरी पहाड़ियों में
रहने वाले कुछ समुदाय वहाँ पाए जाने वाले विशालकाय पक्षी कांडोर को पूजते
हैं और इस क्षेत्र में मिले प्राचीन भित्ति चित्रों में लोगों को इसकी पीठ
पर बैठ कर उड़ते हुए भी दिखाया गया है।
इन सभी उल्लेखों में
मनुष्य द्वारा आकाश में उड़ने की बात इतनी बार बताई गई है, जिससे विश्वास
होता है कि कई प्राचीन सभ्यताएं कोई ऐसी तकनीक का आविष्कार कर चुकी थीं
जिनकी सहायता से वे आसानी से आकाश में उड़ सकती थीं। इन सभ्यताओं ने हजारों
साल पहले पिरामिड, चीन की दीवार से लेकर झूलते बचीगे जैसे स्थापत्य कला के
जो नायाब नमूने बनाए थे उसे देखकर इस बात पर कतई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
खोज लिए रावण के हवाई अड्डेअशोक
वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, रावण के हवाई अड्डे, रावण का
शव, रावण का महल और ऐसे 50 रामायणकालीन स्थलों की खोज करने का दावा किया
गया है। बकायदा इसके सबूत भी पेश किए गए हैं।
इस बात को कुछ साल हो
गए हैं अब तो श्रीलंका पर्यटन विमान इन स्थानों की सैर करवाता है।
'श्रीलंकाज रामायण ट्रेल' नामक 'स्प्रिच्युअल टूरिज्म' की इस योजना और टूर
को लेकर श्रीलंका सरकार के पास काफी प्रस्ताव आएं हैं।
श्रीलंका का
इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर रामायण
से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व
है और जिनका रामायण में भी उल्लेख मिलता है। हाल ही में रावण के चार हवाई
अड्डे भी ढूंढ लिए गए हैं।
रावण के पुष्पक विमान के उतरने के स्थान
और रामायणकाल के कुछ हवाई अड्डे भी ढूंढ लिए गए हैं। वेरांगटोक (जो
महियांगना से 10 किलोमीटर दूर है) में हैं ये हवाई अड्डे। यहीं पर रावण ने
सीता का हरण कर पुष्पक विमान को उतारा था।
महियांगना मध्य, श्रीलंका
स्थित नुवारा एलिया का एक पर्वतीय क्षेत्र है। इसके बाद सीता माता को जहां
ले जाया गया था उस स्थान का नाम गुरुलपोटा है। इसे अब 'सीतोकोटुवा' नाम से
जाना जाता है। यह स्थान भी महियांगना के पास है।
रावणैला गुफा :
16 मई 1970 को वैलाव्या और ऐला के बीच सत्रह मील लम्बे मार्ग का उद्घाटन
करते हुए तत्कालीन राज्यमंत्री ने कहा था, '...उस मार्ग पर एक बहुत सुन्दर
स्थान, जिसने उनका ध्यान खींचा है, रावणैला गुफा है। रावण ने सीता से भेंट
करने के लिए उस गुफा में प्रवेश करने का प्रयत्न किया था, परन्तु वह न तो
गुफा के अन्दर जा सका और न सीता के ही दर्शन कर सका।'
श्रीलंका की
श्रीरामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रावण के चार हवाई अड्डे थे। उनके चार
हवाई अड्डे ये हैं- उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला। इन
चार में से एक उसानगोड़ा हावाई अड्डा नष्ट हो गया था। कमेटी अनुसार सीता
की तलाश में जब हनुमान लंका पहुंचे तो लंका दहन में रावण का उसानगोड़ा हवाई
अड्डा नष्ट हो गया था।
उसानगोड़ा हवाई अड्डे को स्वयं रावण निजी तौर पर
इस्तेमाल करता था। यहां रनवे लाल रंग का है। इसके आसपास की जमीन कहीं काली
तो कहीं हरी घास वाली है।
रिसर्च कमेटी के अनुसार पिछले चार साल की
खोज में ये हवाई अड्डे मिले हैं। कमेटी की रिसर्च के मुताबिक रामायण काल
से जुड़ी लंका वास्तव में श्रीलंका ही है। कैंथ ने बताया कि श्रीलंका में
50 जगहों पर रिसर्च की गई है।
कुबेर का था पुष्पक विमान : रामायण
अनुसार रावण सीता का हरण कर पुष्पक विमान द्वारा श्रीलंका ले गया था।
रामायण में वर्णित है कि युद्ध के बाद श्रीराम, सीता, लक्ष्मण तथा अन्य
लोगों के साथ दक्षिण में स्थित लंका से अयोध्या पुष्पक विमान द्वारा ही आए
थे। पुष्पक विमान को रावण ने अपने भाई धनपति कुबेर से बलपूर्वक हासिल किया
था।
पुष्पक विमान का प्रारूप एवं निर्माण विधि ब्रह्मर्षि अंगिरा ने
बनाई थी और इसका निर्माण डिजाइल और कार्यक्षमता को भगवान विश्वकर्मा ने
निर्मित किया था। इस अद्भुत रचना के कारण ही वे 'शिल्पी' कहलाए।
पुष्पक विमान की विशेषता :
पुष्पक विमान की यह विशेषता थी कि वह छोटा या बड़ा किया जा सकता था।
पुष्पक विमान में इच्छानुसार गति होती थी और बहुत से लोगों को यात्रा
करवाने की क्षमता थी। यह विमान आकाश में स्वामी की इच्छानुसार भ्रमण करता
था अर्थात उसमें मन की गति से चलने की क्षमता थी।
अंतरिक्ष एजेंसी
नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है।
इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस
सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का
संहार किया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सेवानिवृत्त
पुरातत्वविद् डॉ. एलएम बहल कहते हैं कि रामायण में वर्णित श्लोकों के आधार
पर इस गणना का मिलान किया जाए तो राम-रावण के युद्ध की भी पुष्टि होती है।
इसके अलावा इन घटनाओं का खगोलीय अध्ययन करने वाले विद्वान भी हैं।
भौतिकशास्त्री डॉ. पुष्कर भटनागर ने रामायण की तिथियों का खगोलीय अध्ययन
किया है।
श्रीरामायण रिसर्च कमेटी : वर्ष 2004 में पंजाब के
बांगा इलाके के रहने वाले अशोक कैंथ श्रीलंका में अशोक वाटिका की खोज की
सुर्खियां में आथे था। श्रीलंका सरकार ने 2007 में रिसर्च कमेटी का गठन
किया।
कमेटी में श्रीलंका के पर्यटन मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल
क्लाइव सिलवम, ऑस्ट्रेलिया के डेरिक बाक्सी, श्रीलंका के पीवाई सुंदरेशम,
जर्मनी की उर्सला मुलर, इंग्लैंड की हिमी जायज शामिल हैं। अब तक कमेटी ने
श्रीलंका में रावण के महल, विभीषण महल, श्रीगुरु नानक के लंका प्रवास पर
रिसर्च की है।
चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित
‘वैमानिक शास्त्र’ जिसमें एक उड़ने वाले यंत्र ‘विमान’ के कई प्रकारों का
वर्णन किया गया था तथा हवाई युद्ध के कई नियम व प्रकार बताए गए।
‘गोधा’
ऐसा विमान था जो अदृश्य हो सकता था। ‘परोक्ष’ दुश्मन के विमान को पंगु कर
सकता था। ‘प्रलय’ एक प्रकार की विद्युत ऊर्जा का शस्त्र था, जिससे विमान
चालक भयंकर तबाही मचा सकता था। ‘जलद रूप’ एक ऐसा विमान था जो देखने में
बादल की भांति दिखता था।
- वेबदुनिया संदर्भ प्राचीन उड़न खटोले : हकीकत या कल्पना?पक्षियों
को आसमान में स्वछंद उड़ते देख सदियों से मनुष्य के मन में भी आसमान छूने
की तमन्ना रही है। 1903 में राइट बन्धुओं ने किटी हॉक बनाकर इस सपने को सच
कर दिखाया पर सवाल यह है कि क्या इससे पहले भी मनुष्य के आसमान में उड़ने
की कोई कोशिश सफल हुई है?
पहले परवाज : 1780 में दो फ्रेंच
नागरिकों ने पेरिस में हवा से हलके गुब्बारे में हवा में कुछ दूर तक उड़ान
भरी थी, पर अब कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कई सभ्यताओं ने इससे कहीं
पहले उड़ने की तकनीक विकसित कर ली थी। वर्षों की खोज के बाद मिले
पुरातात्विक सबूत भी इस ओर इशारा करते हैं।
प्राचीन युग में भी
बेबीलोन, मिस्र तथा चीनी सभ्यता में उड़नखटोलों या उड़ने वाले यांत्रिक
उपकरणों की कहानियाँ प्रचलित हैं। इन सभ्यताओं के पौराणिक ग्रंथों में
पौराणिक नायकों तथा देवताओं के आकाश में उड़ने के कई किस्से मिलते हैं।
भारतीय
पौराणिक प्रमाण : भारतीय हिंदू पौराणिक और वैदिक साहित्य में ऐसे कई
उल्लेख मिलते हैं जिनमें ऋषि-मुनि तथा देवपुरुष सशरीर अथवा किसी यांत्रिक
उपकरण के माध्यम से उड़कर अपनी यात्रा पूरी करते थे।
स्कंद पुराण के
खंड तीन अध्याय 23 में उल्लेख मिलता है कि ऋषि कर्दम ने अपनी पत्नी के लिए
एक विमान की रचना की थी जिसके द्वारा कहीं भी आया जाया सकता था। उक्त पुराण
में विमान की रचना और विमान की सुविधा का वर्णन भी मिलता है।
विद्या
वाचस्पति पं. मधुसूदन सरस्वती ने 'इन्द्रविजय' नामक ग्रंथ में ऋग्वेद के
छत्तीसवें सूक्त के प्रथम मंत्र का अर्थ लिखा है जिसमें कहा गया है कि
ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था।
रामायण
में भी पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है जिसमें बैठकर रावण सीताजी को हर
ले गया था। हनुमान भी सीता की खोज में समुद्र पार लंका में उड़ कर ही पहुँचे
थे। राम-रावण युद्ध के बाद श्रीराम ने सीता, लक्ष्मण तथा अन्य लोगों के
साथ सुदूर दक्षिण में स्थित लंका से कई हजार किमी दूर उत्तर भारत में
अयोध्या तक की दूरी हवाई मार्ग से पुष्पक विमान द्वारा ही तय की थी। पुष्पक
विमान रावण ने अपने भाई कुबेर से बलपूर्वक हासिल किया था। रामायण में
मेघनाद द्वारा उड़ने वाले रथ का प्रयोग करने का भी उल्लेख मिलता है।
भरद्वाज का वैमानिक शास्त्र :
सबसे महत्वपूर्ण है चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में महर्षि भरद्वाज द्वारा
लिखित ‘वैमानिक शास्त्र’ जिसमें एक उड़ने वाले यंत्र ‘विमान’ के कई
प्रकारों का वर्णन किया गया था तथा हवाई युद्ध के कई नियम व प्रकार बताए
गए।
वैमानिक शास्त्र में भरद्वाज मुनि ने विमान की परिभाषा, विमान
का चालक जिसे रहस्यज्ञ अधिकारी कहा गया, आकाश मार्ग, वैमानिक के कपड़े,
विमान के पुर्जे, ऊर्जा, यंत्र तथा उन्हें बनाने हेतु विभिन्न धातुओं का
जैसा वर्णन किया गया है वह आधुनिक युग में विमान निर्माण प्रकिया से काफी
मिलता है।
भरद्वाज मुनि ने उनसे पूर्व के विमानशास्त्री आचार्य और उनके ग्रंथों के बारे में भी लिखा है जो
निम्नानुसार हैं- 1.नारायण द्वारा रचित विमान चन्द्रिका, 2.शौनक द्वारा
रचित व्योमयान तंत्र, 3.गर्ग द्वारा रचित यन्त्रकल्प 4. वायस्पति द्वारा
रचित यान बिन्दु, 5.चाक्रायणी द्वारा रचित खेटयान प्रदीपिका और 6.
धुण्डीनाथ द्वारा रचित व्योमयानार्क प्रकाश।
वैमानिक शास्त्र में उल्लेखित प्रमुख पौराणिक विमान :*‘गोधा’ ऐसा विमान था जो अदृश्य हो सकता था। इसके जरिए दुश्मन को पता चले बिना ही उसके क्षेत्र में जाया जा सकता था।
*‘परोक्ष’
दुश्मन के विमान को पंगु कर सकता था। इसकी कल्पना एक मुख्य युद्धक विमान
के रूप में की जा सकती है। इसमें ‘प्रलय’ नामक एक शस्त्र भी था जो एक
प्रकार की विद्युत ऊर्जा का शस्त्र था, जिससे विमान चालक भयंकर तबाही मचा
सकता था।
*‘जलद रूप’ एक ऐसा विमान था जो देखने में बादल की भाँति दिखता था। यह विमान छ्द्मावरण में माहिर होता था।
अन्य ऐतिहासिक साक्ष्य : 1898
में मिस्र के सक्कारा में एक मकबरे से 6 इंच लम्बा लकड़ी का बना ग्लाइडर
जैसा दिखने वाला एक मॉडल मिला जो संभवत: 200 ई.पू. में बना था। कई सालों
बाद मिस्र के एक वैमानिक विशेषज्ञ डॉ. खलीली मसीहा ने इसका अध्ययन कर बताया
कि इसकी बनावट पूरी तरह आजकल के विमानों की तरह है। यहाँ तक कि इसकी टेल
भी उतने ही कोण पर बनी है जिस पर वर्तमान ग्लाइडर बहुत कम ऊर्जा में भी उड़
सकता है।
हालाँकि अभी तक मिस्र के किसी भी मकबरे या पिरामिड से
किसी विमान के कोई अवशेष या ढाँचा नहीं मिला है, पर एबीडोस के मंदिर पर
उत्कीर्ण चित्रों में आजकल के विमानों से मिलती-जुलती आकृतियाँ उकेरी हुई
मिली हैं। इसके खोजकर्ता डॉ. रूथ होवर का कहना है कि ‘पूरे मंदिर में ऐसी
कई आकृतियाँ देखने को मिलती हैं जिसमें विमानों तथा हवा में उड़ने वाले
उपकरणों को प्रदर्शित किया गया है। इनमें से कुछ तो आधुनिक हेलिकॉप्टर तथा
जेट से मिलते-जुलते हैं’। इसके अलावा मिस्र की कई लोककथाओं तथा अरब देश की
मशहूर कहानी अलिफ-लैला (अरेबियन नाइट्स) में भी उड़ने वाले कालीन का जिक्र
मिलता है।
इसी तरह सदियों तक पेरू के धुंधभरे पहाड़ों में छिपी इंका
सभ्यता की नाज़्का रेखाएँ तथा आकृतियाँ आज भी अंतरिक्ष से देखी जा सकती हैं।
लेटिन अमेरिकी भूमि के समतल और रेतीले पठार पर बनी मीलों लंबी यह रेखाएँ
ज्यामिति का एक अनुपम उदाहरण हैं। यहाँ बनी जीव-जंतुओं की 18 विशाल
आकृतियाँ भी इतनी कुशलता से बनाई गई हैं कि लगता है मानो किसी विशाल से
ब्रश के जरिये अंतरिक्ष से उकेरी गई हों।
आज भी इंका सभ्यता के
खंडहरों और पिरामिडों (मिस्र के बाद पिरामिड यहाँ भी मिले हैं) के
भित्तिचित्रों में मनुष्यों के पंख दर्शाए गए हैं तथा उड़नतश्तरी और
अंतरिक्ष यात्रियों सरीखी पोशाक में लोगों के चित्र बने हैं। इसके अलावा
मध्य अमेरिका से मिले पुरातात्विक अवशेषों में धातु की बनी आकृतियाँ बिलकुल
आधुनिक विमानों से मिलती हैं। माचू-पिच्चू की धुन्ध भरी पहाड़ियों में
रहने वाले कुछ समुदाय वहाँ पाए जाने वाले विशालकाय पक्षी कांडोर को पूजते
हैं और इस क्षेत्र में मिले प्राचीन भित्ति चित्रों में लोगों को इसकी पीठ
पर बैठ कर उड़ते हुए भी दिखाया गया है।
इन सभी उल्लेखों में मनुष्य
द्वारा आकाश में उड़ने की बात इतनी बार बताई गई है, जिससे विश्वास होता है
कि कई प्राचीन सभ्यताएँ कोई ऐसी तकनीक का आविष्कार कर चुकी थीं जिनकी
सहायता से वे आसानी से आकाश में उड़ सकती थीं। इन सभ्यताओं ने हजारों साल
पहले पिरामिड, चीन की दीवार से लेकर झूलते बचीगे जैसे स्थापत्य कला के जो
नायाब नमूने बनाए थे उसे देखकर इस बात पर कतई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
लोककथाओं,
धार्मिक साहित्य, अभिलेखों, भित्तिचित्रों, प्राचीन वस्तुओं तथा प्राचीन
लेखों को इतिहास जानने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण व प्रामाणिक जरिया माना
जाता है, तो क्या यह संभव नहीं कि प्राचीनकाल में किसी सभ्यता के पास उड़ने
की तकनीक रही हो जो कालांतर में कहीं लुप्त हो गई हो।दशानन रावण का रहस्य, यहां रखा है शव!श्रीलंका
में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी और जहां
रावण के मरने के बाद उसका शव रखा गया है। रावण से जुड़े ऐसे 50 स्थान ढूंढ
लिए गए हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व है।
श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण
रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर रामायण से जुड़े ऐसे 50
स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व है और जिनका रामायण
में भी उल्लेख मिलता है।
श्रीलंका सरकार ने 'रामायण' में आए लंका
प्रकरण से जुड़े तमाम स्थलों पर शोध करवाकर उनकी ऐतिहासिकता सिद्ध कर इन
स्थानों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना ली है।
इसमें भारत भी मदद कर रहा है।
यहां रखा है रावण का शव : ऐसा माना जाता
है कि रैगला के जंगलों के बीच एक विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां
उसने घोर तपस्या की थी। उसी गुफा में आज भी रावण का शव सुरक्षित रखा हुआ
है। रैगला के घने जंगलों और गुफाओं में कोई नहीं जाता है, क्योंकि यहां
जंगली और खूंखार जानवरों का बसेरा है।
रैगला के इलाके में रावण की यह
गुफा 8 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जहां 17 फुट लंबे ताबूत में रखा है
रावण का शव। इस ताबूत के चारों तरफ लगा है एक खास लेप जिसके कारण यह ताबूत
हजारों सालों से जस का तस रखा हुआ है।
गौरतलब है कि मिस्र में
प्राचीनकाल में ममी बनाने की परंपरा थी, जहां आज भी पिरामिडों में हजारों
साल से कई राजाओं के शव रखे हुए हैं। यह भी जानना जरूरी है कि उस समय शैव
संप्रदाय में समाधि देने की रस्म थी। रावण शैवपंथी था।
रामायणकाल के रहस्यरामायण
काल को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं होने के कारण
कुछ लोग जहां इसे नकारते हैं, वहीं कुछ इसे सत्य मानते हैं। हालांकि इसे
आस्था का नाम दिया जाता है, लेकिन नासा द्वारा समुद्र में खोजा गया रामसेतु
ऐसे लोगों की मान्यता को और पुष्ट करता है। आइए देखते हैं कुछ ऐसे ही
साक्ष्य, जो रामायण काल के अस्तित्व को स्वीकारते हैं...
रावण का महलकहा
जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें अपनी पटरानी मंदोदरि के साथ निवास
करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। यह वही महल है, जिसे पवनपुत्र हनुमान
ने लंका के साथ जला दिया था।
लंका दहन को रावण के विरुद्ध राम की
पहली बड़ी रणनीतिक जीत माना जा सकता है क्योंकि महाबली हनुमान के इस कौशल
से वहां के सभी निवासी भयभीत होकर कहने लगे कि जब सेवक इतना शक्तिशाली है
तो स्वामी कितना ताकतवर होगा। ...और जिस राजा की प्रजा भयभीत हो जाए तो वह
आधी लड़ाई तो यूं ही हार जाता है।
गुसाईं जी पंक्तियां देखिए- 'चलत
महाधुनि गर्जेसि भारी, गर्भ स्रवहि सुनि निसिचर नारी'। अर्थात लंका दहन के
पश्चात जब हनुमान पुन: राम के पास जा रहे थे तो उनकी महागर्जना सुनकर
राक्षस स्त्रियों का गर्भपात हो गया।
सुग्रीव गुफासुग्रीव
अपने भाई बाली से डरकर जिस कंदरा में रहता था, उसे सुग्रीव गुफा के नाम से
जाना जाता है। यह ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित थी। ऐसी मान्यता है कि दक्षिण
भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के विरुपाक्ष मंदिर से कुछ ही दूर पर
स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता था और यही रामायण काल का ऋष्यमूक है।
मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियां स्थापित हैं।
रामायण
की एक कहानी के अनुसार वानरराज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका
शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ
बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि
यह करतूत किसकी है।
क्रुद्ध ऋषि ने बाली को शाप दिया कि यदि वह कभी
भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।
यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब बाली ने उसे
प्रताड़ित कर अपने राज्य से निष्कासित किया तो वह इसी पर्वत पर एक कंदरा
में अपने मंत्रियों समेत रहने लगा। यहीं उसकी राम और लक्ष्मण से भेंट हुई
और बाद में राम ने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला।
अशोक वाटिकाअशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने
सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया
पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था, जिसे 'सीता
एलिया' नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है।
यहीं पर आंजनेय हनुमान ने निशानी के रूप में राम की अंगूठी सीता को सौंपी
थी। ऐसा माना जाता है कि अशोक वाटिका में नाम अनुरूप अशोक के वृक्ष काफी
मात्रा में थे। राम की विरह वेदना से दग्ध सीता अपनी इहलीला समाप्त कर लेना
चाहती थीं। वे चाहती थीं कि अग्नि मिल जाए तो वे खुद को अग्नि को समर्पित
कर दें। इतना हीं नहीं उन्होंने नूतन कोंपलों से युक्त अशोक के वृक्षों से
भी अग्नि की मांग की थी।
तुलसीदास जी ने लिखा भी है- 'नूतन
किसलय अनल समाना, देहि अगिनि जन करहि निदाना'। अर्थात तेरे नए पत्ते अग्नि
के समान हैं। अत: मुझे अग्नि प्रदान कर और मेरे दुख का शमन कर।
रामसेतुरामसेतु
जिसे अंग्रेजी में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत (तमिलनाडु) के दक्षिण
पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर
मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। भौगोलिक प्रमाणों
से पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस
में जोड़ता था। यह पुल करीब 18 मील (30 किलोमीटर) लंबा है।
ऐसा
माना जाता है कि 15वीं शताब्दी तक पैदल पार करने योग्य था। एक चक्रवात के
कारण यह पुल अपने पूर्व स्वरूप में नहीं रहा। रामसेतु एक बार फिर तब
सुर्खियों में आया था, जब नासा के उपग्रह द्वारा लिए गए चित्र मीडिया में
सुर्खियां बने थे।
समुद्र पर सेतु के निर्माण को राम दूसरी बड़ी
रणनीतिक जीत कहा जा सकता है, क्योंकि समुद्र की तरफ से रावण को कोई खतरा
नहीं था और उसे विश्वास था कि इस विराट समुद्र को पार कोई भी उसे चुनौती
नहीं दे सकता।
गोस्वामी तुलसीदासजी के मुताबिक जब दशानन रावण
ने समुद्र पर पुल बनने की बात सुनी तो उसके दसों मुख एकसाथ बोल पड़े-
बांध्यो जलनिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस, सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि
नदीश'। मानस के इस दोहे में आपको समुद्र के 10 पर्यायवाची भी मिल सकते हैं।
मानस और नासा से इतर महाकवि जयशंकर प्रसाद की पंक्तियों में भी रामसेतु होने के संकेत मिलते हैं-सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह,
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह।
साभार - वेबदुनिया http://hindi.webdunia.com