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Sunday, September 30, 2012

उरई में बर्तन व्यवसायी की दुकान से मिले ताम्र युगीन पिंड व उपकरण

  देश के प्रागैतिहासिक काल के मानचित्र में उरई का नाम अंकित
 भारतीय सांस्कृतिक निधि (इंटैक) के उरई चैप्टर की ओर से  बुंदेलखंड संग्रहालय के सभागार में उरई के मातापुरा मुहल्ले से मिले ताम्र युगीन उपकरणों पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय का प्रवर्तन करते हुए इंटैक के उरई चैप्टर के संयोजक डाक्टर हरिमोहन पुरवार ने बताया कि बर्तन व्यावसायी रवि माहेश्वरी की दुकान से कुछ ताम्र पिंड और उपकरण मिले थे। उनका जब बरीकी से अध्ययन किया गया तो पता चला कि ये उपकरण ताम्र युगीन सभ्यता के हैं। गोष्ठी के मुख्य वक्ता भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के अवकाश प्राप्त सह अधीक्षण पुरातत्ववेत्ता डाक्टर कृष्ण कुमार थे। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के अवशेषों के मिलने की सूचना अभी तक नहीं थी। लेनिक इन ताम्र उपकरणों के उरई में मिलने से देश के प्रागैतिहासिक काल के मानचित्र में उरई का नाम अंकित हो गया है। उन्होंने कहा कि यहां मिले उपकरण दो हजार साल ईसा पूर्व से 13 सौ साल ईसा पर्वू का है। इन ताम्र उपकरणों में चार सीघी कुल्हाड़िया, दो शोल्डर्स कुलहाड़ियां, दो बरछियां (हारपूंस), एक गोल चक्का और 5.460 किलोग्राम, 1.340 किलोग्राम, 650 ग्राम और 570 ग्राम के चार ताम्र पिंड शामिल हैं। इन ताम्र पिंडों से ताम्र उपकरण बनाए जाते थे। ताम्र उपकरणों के शिल्प विज्ञान पर प्रकाश डालते हुए डाक्टर कृष्ण कुमार ने कह७ा कि सीधी और शोल्डर्स कुल्हाड़ियों का निर्माण एक सांचे में ढालकर एक बार में किया जाता था, जबकि बरछियों (हारपूंस) का निर्माण दो अलग-अलग सांचों में दो बार में ढालकर किया किया जाता था।
उन्होंने बताया कि शोल्डर्स कुल्हाड़ियां बड़े पेड़ों की डालियां काटने और सीधी कुल्हाड़ियां छोटी-छोटी टहनियां काटने के प्रयोग में लाई जाती थीं। बरछियों (हारपूंस) का उपयोग जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा और उनके शिकार के लिए होता था।
संगोष्ठी का संचालन डाक्टर राजेंद्र कुमार ने किया। संगोष्ठी में उरई में मिले ताम्र युगीन उपकरणों को प्रदर्शित भी किया गया। संगोष्ठी में इतिहासकार डीके सिंह, डाक्टर एसके उपाध्याय, संध्या पुरवार, डाक्टर जयश्री, इंद्रा राजौरिया, डाक्टर राजेश पालीवाल, सुमन, डाक्टल अलका रानी, अखिलेश पुरवार, मोहित पाटकार आदि उपस्थित थे। ( साभार-जनसत्ता व अमर उजाला ---उरई, 30 सितंबर।)

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