शाहजहांपुर से करीब 42 किमी दूर
पुवायां तहसील के मुड़िया कुमिर्यात गांव में करीब 350 साल पुराना
राधा-कृष्ण का मंदिर है। बावन दरवाजों वाले इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक
फैली है। जर्जर होते इस मंदिर को मरम्मत की जरूरत है, लेकिन मरम्मत के
लिए धन की मांग वाली फाइल पुरातत्व विभाग में धूल फांक रही है।
यह ऐतिहासिक मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 42 किमी दूर है। जिले की सबसे समृद्ध तहसील पुवायां नगर से बंडा रोड पर करीब दस किमी चलने पर जुझारपुर मोड़ पड़ता है। यहीं से पश्चिम के लिए पतली सी पक्की सड़क जाती है। इसी सड़क पर चार किमी दूरी पर है मुड़िया कुमिर्यात गांव। मुड़िया कुमिर्यात से पहले एक गांव और पड़ता है वनगवां। वनगवां से आगे बढ़ते ही मंदिर के विशाल बुर्ज दिखाई देने लगते हैं।
मंदिर अक्सर बंद ही रहता है। मंदिर के पुजारी बिहारी सुबह-शाम यहां पूजा करते हैं। यह मंदिर गांव के ही पुष्कर वर्मा के पूर्वज चूड़ामणि व उनके भाई बुद्धसेन ने करीब 350 साल पहले बनवाया था। यह करीब 13 पीढ़ी पहले की बात है। पुष्कर वर्मा मंदिर से कुछ दूर ही रहते हैं। वर्मा ने बताया कि उनके पूर्वज निगोही के रहने वाले थे। तब लड़ाइयों के कारण राजा पुवायां ने उनके पूर्वजों से मदद मांगी थी। राजा पुवायां ने ही उनके पूर्वजों को मुड़िया कुमिर्यात की रियासत दी थी। पुष्कर वर्मा ने बताया कि मंदिर बनने में 12 साल लगे थे। हर साल भादो में मंदिर में रौनक रहती है। जन्माष्टमी में विशाल मेला लगता है। दूर-दूर से लोग आते हैं। मेला पास ही बाग में लगता है। बाग मंदिर की ही संपत्ति है। मंदिर का परिसर पहले पांच एकड़ का था। लोग मकान बनाते गए और मंदिर का परिसर सिकुड़ कर अब करीब तीन एकड़ रह गया है।
पुष्कर वर्मा के मुताबिक, इस मंदिर पर सच्चे मन से मांगी गई हर मनौती पूरी होती है। जिसकी मनौती पूरी हो जाती है वह अपनी श्रद्धानुसार चांदी का सिक्का चढ़ाता है। मंदिर के फर्श और चौखटों पर लगे अनगिनत चांदी के सिक्के इस बात को प्रमाणित करते हैं। हालांकि चोर यहां से सिक्कों को उखाड़ भी ले जाते हैं। जहां से सिक्के उखड़े हैं, वहां निशान छूट जाते हैं। इसके अलावा गांव वाले अपने धार्मिक उत्सव भी मंदिर में मनाते हैं। मुंडन, बच्चे का मुंहवौर और ऐसे ही दूसरे कार्यक्रम मंदिर में किए जाते हैं। मंदिर के नाम से गांव में दो दिन बाजार भी लगता है। यह मंदिर की ही जमीन है और इससे होने वाली आय मंदिर के कार्यों पर खर्च की जाती है। बुधवार और शनिवार को मंदिर का बाजार लगता है।
राधा-कृष्ण के इस बेमिसाल मंदिर का निर्माण करने वाले कारीगर मुसलिम थे। इन कारीगरों ने बारह साल तक दिन-रात काम करके मंदिर बनाया था। सुर्खी को बड़ी सी चक्की से पीसकर मसाला बनाया जाता था। इसमें 12 अन्य तत्व मिलाए जाते थे। दिन भर में बमुश्किल दस से बारह तसला मसाला ही तैयार हो पाता था। सुर्खी मसाला की मजबूती के कारण आज भी मंदिर ज्यों का त्यों खड़ा है। मंदिर के चारों ओर बेलबूटों की चित्रकारी 350 साल बाद भी बरकरार है।
मंदिर के अंदर की बनावट भूलभुलैया जैसी है। मंदिर में तेरह बुर्ज हैं। 52 दरवाजे हैं। लेकिन सिर्फ दो ही दरवाजे खोले जाते हैं। पूरबी दरवाजे पर मंदिर का मुख्य भाग है। इस दरवाजे के खुलते ही देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के दर्शन हो जाते हैं। यही मंदिर का मुख्य भाग है।
मंदिर में राधा-कृष्ण की पांच फुट ऊंची और करीब 86 किलो बजनी अष्टधातु की संयुक्त प्रतिमा थी। यह प्रतिमा 1988 में चोरी चली गई। करोड़ों की कीमत वाली यह प्रतिमा नहीं मिल पाई। इसके बाद मंदिर में पत्थर की प्रतिमा स्थापित की गई। मंदिर में काले रंग के पत्थर से बनी भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है जो काफी प्राचीन है।
350 साल से मंदिर की मरम्मत नहीं की गई है। कई बुर्जों में दरारें पड़ने लगी हैं। मंदिर परिसर के आसपास की इमारत खंडहर बन गई हैं। पुष्कर वर्मा ने इसकी मरम्मत के लिए पुरातत्व विभाग का दरवाजा खटखटाया तो सौंदर्यीकरण के लिए 24 लाख मंजूर हो गया। लेकिन मरम्मत वाली फाइल अभी भी धूल चाट रही है। पुष्कर वर्मा का कहना है बिना मरम्मत के मंदिर का सौंदर्यीकरण कराना बेमतलब है। उन्हें पुरातत्व विभाग से मरम्मत के धन के लिए फाइल की मंजूरी का इंतजार है। ( साभार-जनसत्ता )
यह ऐतिहासिक मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 42 किमी दूर है। जिले की सबसे समृद्ध तहसील पुवायां नगर से बंडा रोड पर करीब दस किमी चलने पर जुझारपुर मोड़ पड़ता है। यहीं से पश्चिम के लिए पतली सी पक्की सड़क जाती है। इसी सड़क पर चार किमी दूरी पर है मुड़िया कुमिर्यात गांव। मुड़िया कुमिर्यात से पहले एक गांव और पड़ता है वनगवां। वनगवां से आगे बढ़ते ही मंदिर के विशाल बुर्ज दिखाई देने लगते हैं।
मंदिर अक्सर बंद ही रहता है। मंदिर के पुजारी बिहारी सुबह-शाम यहां पूजा करते हैं। यह मंदिर गांव के ही पुष्कर वर्मा के पूर्वज चूड़ामणि व उनके भाई बुद्धसेन ने करीब 350 साल पहले बनवाया था। यह करीब 13 पीढ़ी पहले की बात है। पुष्कर वर्मा मंदिर से कुछ दूर ही रहते हैं। वर्मा ने बताया कि उनके पूर्वज निगोही के रहने वाले थे। तब लड़ाइयों के कारण राजा पुवायां ने उनके पूर्वजों से मदद मांगी थी। राजा पुवायां ने ही उनके पूर्वजों को मुड़िया कुमिर्यात की रियासत दी थी। पुष्कर वर्मा ने बताया कि मंदिर बनने में 12 साल लगे थे। हर साल भादो में मंदिर में रौनक रहती है। जन्माष्टमी में विशाल मेला लगता है। दूर-दूर से लोग आते हैं। मेला पास ही बाग में लगता है। बाग मंदिर की ही संपत्ति है। मंदिर का परिसर पहले पांच एकड़ का था। लोग मकान बनाते गए और मंदिर का परिसर सिकुड़ कर अब करीब तीन एकड़ रह गया है।
पुष्कर वर्मा के मुताबिक, इस मंदिर पर सच्चे मन से मांगी गई हर मनौती पूरी होती है। जिसकी मनौती पूरी हो जाती है वह अपनी श्रद्धानुसार चांदी का सिक्का चढ़ाता है। मंदिर के फर्श और चौखटों पर लगे अनगिनत चांदी के सिक्के इस बात को प्रमाणित करते हैं। हालांकि चोर यहां से सिक्कों को उखाड़ भी ले जाते हैं। जहां से सिक्के उखड़े हैं, वहां निशान छूट जाते हैं। इसके अलावा गांव वाले अपने धार्मिक उत्सव भी मंदिर में मनाते हैं। मुंडन, बच्चे का मुंहवौर और ऐसे ही दूसरे कार्यक्रम मंदिर में किए जाते हैं। मंदिर के नाम से गांव में दो दिन बाजार भी लगता है। यह मंदिर की ही जमीन है और इससे होने वाली आय मंदिर के कार्यों पर खर्च की जाती है। बुधवार और शनिवार को मंदिर का बाजार लगता है।
राधा-कृष्ण के इस बेमिसाल मंदिर का निर्माण करने वाले कारीगर मुसलिम थे। इन कारीगरों ने बारह साल तक दिन-रात काम करके मंदिर बनाया था। सुर्खी को बड़ी सी चक्की से पीसकर मसाला बनाया जाता था। इसमें 12 अन्य तत्व मिलाए जाते थे। दिन भर में बमुश्किल दस से बारह तसला मसाला ही तैयार हो पाता था। सुर्खी मसाला की मजबूती के कारण आज भी मंदिर ज्यों का त्यों खड़ा है। मंदिर के चारों ओर बेलबूटों की चित्रकारी 350 साल बाद भी बरकरार है।
मंदिर के अंदर की बनावट भूलभुलैया जैसी है। मंदिर में तेरह बुर्ज हैं। 52 दरवाजे हैं। लेकिन सिर्फ दो ही दरवाजे खोले जाते हैं। पूरबी दरवाजे पर मंदिर का मुख्य भाग है। इस दरवाजे के खुलते ही देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के दर्शन हो जाते हैं। यही मंदिर का मुख्य भाग है।
मंदिर में राधा-कृष्ण की पांच फुट ऊंची और करीब 86 किलो बजनी अष्टधातु की संयुक्त प्रतिमा थी। यह प्रतिमा 1988 में चोरी चली गई। करोड़ों की कीमत वाली यह प्रतिमा नहीं मिल पाई। इसके बाद मंदिर में पत्थर की प्रतिमा स्थापित की गई। मंदिर में काले रंग के पत्थर से बनी भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है जो काफी प्राचीन है।
350 साल से मंदिर की मरम्मत नहीं की गई है। कई बुर्जों में दरारें पड़ने लगी हैं। मंदिर परिसर के आसपास की इमारत खंडहर बन गई हैं। पुष्कर वर्मा ने इसकी मरम्मत के लिए पुरातत्व विभाग का दरवाजा खटखटाया तो सौंदर्यीकरण के लिए 24 लाख मंजूर हो गया। लेकिन मरम्मत वाली फाइल अभी भी धूल चाट रही है। पुष्कर वर्मा का कहना है बिना मरम्मत के मंदिर का सौंदर्यीकरण कराना बेमतलब है। उन्हें पुरातत्व विभाग से मरम्मत के धन के लिए फाइल की मंजूरी का इंतजार है। ( साभार-जनसत्ता )
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