नालंदा में सारिपुत्त स्तूप का अवशेष। नालंदा में प्राचीन विश्वविद्यालय के स्थल पर कुछ बौद्ध भिक्षु ( सभी फोटो विकीपीडिया से साभार ।
भारत में दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना सातवीं शताब्दी ईसापूर्व यानी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना से करीब १२०० साल पहले ही हो गई थी। यह नालंदा भारत का दूसरा प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसका पुनर्निर्माण किया जा रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना से काफी पहले यानी करीब १००० साल पहले गौतम बुद्ध के समय (५०० ईसापूर्व ) से ही नालंदा प्रमुख गतिविधियों का केंद्र रहा है।
तमाम बौद्ध साक्ष्यों में उल्लेख है कि गौतमबुद्ध नालंदा में कई बार आए थे। वहां एक आम के बगीचे में धम्म के संदर्भ में विचार विमर्श किया था। आखिरी बार गौतमबुद्ध नालंदा आए तो मगध के सारिपुत्त ने बौद्ध धर्म में अपनी आस्था जताई। यह भगवान बुद्ध का दाहिना हाथ और सबसे प्रिय शिष्यों में एक था। केवत्तसुत्त में वर्णित है कि गौतमबुद्ध के समय नालंदा काफी प्रभावशाली व संपन्न इलाका था। शिक्षा का बड़ा केंद्र बनने तक यह घनी आबादी वाला जगह बन गया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद दुनिया के सबसे लोकप्रिय जगहों में शुमार हो गया। बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय में यहां अकाल पड़ने का भी उल्लेख है। गौतमबुद्ध का शिष्य सारिपुत्त तो नालंदा में ही पैदा हुआ और यहीं इसका निधन भी हुआ ( सारिपुत्त के निधन की जगह नालका की पहचान की इतिहासकारो ने नालंदा से की है।
बौद्ध अनुयायी सम्राट अशोक ( २५० ईसापूर्व ) ने तो सारिपुत्त की याद में यहां बौद्ध स्तूप बनवाया था। नालंदा तब भी कितना महत्वपूर्ण केंद्र था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह जैन धर्मावलंबियों के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र था। जैन तीर्थंकर महावीर ने जिस पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था, वह नालंदा में ही था। नालंदा पाचवीं शताब्दी में आकर शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र में तब्दील हो गया।
अब पुनः अपनी स्थापना से करीब १५०० साल बाद विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के फिर से दुनिया का वृहद शिक्षाकेंद्र बनाने की नींव पड़ गई है। आज राज्यसभा ने इससे संबंधित विधेयक को मंजूरी दे दी। गुप्तराजाओं के उत्तराधिकारी और पराक्रमी शासक कुमारगुप्त ने पांचवीं शताब्दी में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। गुप्तों के बाद इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसांग आया था उस समय १०००० विद्यार्थी और १५१० आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। ( प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक विवरण देखने के लिए यहां क्लिक करें।)
दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध शिक्षाकेंद्र के तौर पर पहचान बन चुके इस विश्वविद्यालय को अंततः मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने ११९९ ईसवी में जलाकर नष्ट कर दिया। अब बख्तियारपुर के नीतिश कुमार, जो अभी बिहार के मुख्यमंत्री हैं, के प्रयासों से फिर नालंदा विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया है। १६ देशों की मदद से इसके निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। भारत के नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की देखरेख में इसकी रूपरेखा तय की जा रही है। यह तो तय है कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तरह यह सिर्फ बौद्ध शिक्षा का केंद्र नहीं रहेगा लेकिन इस विश्वविद्यालय के पुनर्जीवित करने के विधेयक को मंजूरी दे चुके राज्यसभा सदस्यों को उम्मीद है कि प्रस्तावित नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर दुनिया में भारत का नाम उसी तरह रोशन करेगा जैसा कि प्राचीन काल में था। इसी उम्मीद के साथ नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक 2010 को राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया है।
लंबे अंतराल के बाद शनिवार को राज्यसभा में एक सार्थक और सारगर्भित चर्चा देखने को मिली। सभी दलों के सदस्यों ने इस विश्वविद्यालय के तमाम पहलुओं पर अपनी राय जाहिर की। सांसदों के सुझावों में विश्वविद्यालय की इमारत के वास्तुशिल्प से लेकर इसमें पढ़ाए जाने वाले विषय भी शामिल थे। यह विधेयक गत 12 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था।
बिहार की राजधानी पटना से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित बड़ा गांव में आज भी नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष मौजूद हैं। राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में बड़ा गांव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।अपनी ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक पांचवीं सदी में दुनिया के तमाम देशों के करीब 10 हजार विद्यार्थी वहां शिक्षा ग्रहण करते थे। कहा जाता है कि तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय काफी समृद्ध था। उसकी इमारत नौ मंजिल की थी।
विधेयक के मुताबिक नया नालंदा विश्वविद्यालय परिसर 441 एकड़ में बनेगा। विदेश राज्यमंत्री परनीति कौर के मुताबिक इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में इतिहास, व्यापार प्रबंधन, भाषा, पर्यावरण एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों जैसे महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया जाएगा। इसकी इमारत के वास्तुशिल्प का चयन अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के जरिए किया जाएगा।
वरिष्ठ सदस्य डा. कर्ण सिंह ने चर्चा के दौरान कहा कि इतिहास बताता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में चीन, जापान, मंगोलिया, अफगानिस्तान, तिब्बत एवं अन्य देशों से शोधार्थी आते थे। उन्होंने उम्मीद जताई कि नया नालंदा विश्वविद्यालय ऑक्सफर्ड एवं अन्य विदेशी विश्वविद्यालयों से ज्यादा बेहतर होगा। सीताराम येचुरी ने इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि यह दिलचस्प है कि नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने नष्ट करवाया था। आज उसको पुन: जीवित कराने में बख्तियारपुर के ही एक व्यक्ति (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार) की महत्वपूर्ण भूमिका है।
बीजेपी के बाल आप्टे का सुझाव था कि इस विश्वविद्यालय को विदेश मंत्रालय के बजाय शिक्षा मंत्रलाय के अधीन होना चाहिए था। बीएसपी के युवा सदस्य प्रमोद कुरील का सुझाव था कि नए विश्वविद्यालय का वास्तुशिल्प पुराने विश्वविद्यालय जैसा ही होना चाहिए। ताकि यह अहसास हो कि ज्ञान का प्राचीन केंद्र पुनर्जीवित हो रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय
3 comments:
अच्छी जानकारी। सुबह से भटकते हुए आखिर एक अच्छी पोस्ट पढने को मिली आपका आभार।
नालंदा विशव्विधालय की पुन: स्थापना एक सराहनीय कार्य होगा , अगर वास्तव मे यह बात सच हो जाये ..
यह बहुत अच्छी खबर है । हालाँकि जो खत्म हो गया है वह पुन: प्राप्त तो नही हो सकता लेकिन कम से कम उसका स्मरण दिलाने के लिये यह काम आयेगा ।
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