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Wednesday, May 12, 2010

अविवाहित थे तुलसी दास ?

खबरों में इतिहास: भाग-७
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करेगा, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-क्या अविवाहित थे तुलसी दास ?
२-बत्तीस सौ साल पुराना किला

अविवाहित थे तुलसी दास ?

 पिछले कई दशकों से तुलसी के जन्म स्थान के विवाद को हल करने में जुटे सनातन धर्म परिषद के अध्यक्ष स्वामी भगवदाचार्य ने कहा कि हिंदी साहित्य के इतिहास में कुछ तथ्यों पर भ्रम बना हुआ है। उन्होंने कहा कि मध्य युग में तुलसी नाम के चार साहित्यकार पैदा हुए। पहले तुलसी गोण्डा जनपद के सूकरखेत राजापुर ग्राम में पैदा हुए, जिन्होने रामचरित मानस समेत 12 ग्रंथों की रचना की। दूसरे तुलसी एटा जिले के सोरों में हुए, तीसरे तुलसी हाथरस जिले में पैदा हुए और चौथे तुलसी बलरामपुर जिले के वर्तमान तुलसीपुर तहसील के देवीपाटन गांव में पैदा हुए थे, जिन्होंने जानकी विजय, गंगा कथा, लवकुश कांड और हनुमान चालीसा की रचना की। उन्होंने कहा कि इतिहासकार इन चारों रचनाकारों की जीवन गाथा को भिन्न-भिन्न समझने की बजाए इन्हें एक ही तुलसीदास समझने की भूल कर बैठे, जिससे मानस के रचियता तुलसीदास के बारे में अनेक भ्रांतियां पैदा हो गर्इं। उन्होंने कहा कि हमें इन चारो तुलसीदास को अलग-अलग रूप में जानने कोशिश करने का प्रयास करना होगा।

स्वामी भगवदाचार्य के अनुसार मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास(1556-1605) सम्राट अकबर महान के समकालीन थे। उन्होंने कहा कि एक अकबर द्वितीय भी हुआ, जो शाह आलम द्वितीय का पुत्र था। उसका समय 1806 से 1837 था। अकबर द्वितीय के समय में लिखे गए गजेटियर में जिस तुलसी का उल्लेख है, वह राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास नहीं थे। उन्होंने कहा कि बांदा के जिला गजेटियर में उल्लेख है कि तुलसी यमुना पार करके आए और यहां उन्होंने साधना की। इससे यह सहज साबित हो जाता है कि कोई तुलसी नाम का विद्वान वहां गया होगा, लेकिन वहां वह पैदा कोई नहीं हुआ। इंपीरियल गजेटियर आफ इंडिया, कलकत्ता के अनुसार तुलसी ने बांदा जिले में राजापुर ग्राम बसाया था। इससे भी यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस नाम के गांव को किसी ने बसाया हो, वह उसी नाम के गांव में पैदा कैसे हो सकता है?

मानस लिखने वाले तुलसीदास का जन्म स्थान गोण्डा जनपद का राजापुर गांव ही असली जन्म स्थान होने बारे में कुछ अकाट्य तथ्य प्रस्तुत करते हुए स्वामी भगवदाचार्य ने कहा कि राजस्व अभिलेखों में यहां पर आत्मा राम के नाम एक टेपरा गोचर भूमि आज भी दर्ज है। आत्मा राम दुबे, गोस्वामी जी के पिता का नाम बताया जाता है। ये सरयूपारी ब्राह्मण थे। इस गोत्र के ब्राह्मण सरयू नदी के आसपास इसी इलाके में ही पाए जाते हैं। यहीं पर पसका के निकट सरयू और घाघरा नदियों के संगम पर सूकरखेत भी है। गोस्वामी जी के गुरु नरहरि दास का आश्रम भी पास में ही है। गोस्वामी जी ने अपनी रचनाओं में अवधी भाषा का प्रयोग किया है। उनकी एक रचना है राम लला नहछू। नहछू नामक संस्कार केवल अवध क्षेत्र में ही प्रचलित है। यह प्रदेश के किसी अन्य हिस्से में नहीं होता है। इस रचना के गीत गोण्डा तथा आसपास के जनपदों में आज भी विवाह के अवसरों पर उसी भाषा में गाए जाते हैं।

डॉ भगवदाचार्य के मुताबिक श्रीराम चरित मानस के बालकांड में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- मैं पुनि निज गुरु सन सुनी, कथा सो सूकर खेत। नहिं समझेउ कछु बाल मन तब मैं रहेंउ अचेत। अर्थात बाल्यकाल में उन्होंने सूकरखेत स्थित गुरु नरहरिदास के आश्रम में आकर शिक्षा प्राप्त की और बहुत दिन तक यहां रहे भी। उन्होंने इन संदर्भों का हवाला देते हुए यह सवाल उठाया कि बाल्य काल में कोई बालक अकेले बांदा जिले से गोण्डा तक कै से आ सकता है। निश्चित रूप से वह स्थान गोण्डा जिले का राजापुर गांव ही है, जहां से सूकरखेत स्थित गुरु नरहरि दास की कुटी चंद कदमों की दूरी पर है। सभी विद्वान इस बात पर एकमत हैं कि उनकी माता का निधन बचपन में ही हो गया था। उनका लालन-पालन चुनिया नाम की एक महिला ने किया था। कुछ दिनों बाद उनके पिता की मृत्यु भी हो गई और इस तरह वे एक अनाथ बालक की तरह भटकते हुए नरहरिदास के आश्रम पर आ गए थे। उन्होंने कहा कि अपनी रचनाओं में गोस्वामी जी ने पौराणिक स्थलों का छोड़कर मौजूदा नाम वाले किसी भी शहर के नाम का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन उन्होंने बहराइच का उल्लेख जरूर किया है, जो गोण्डा के बगल में ही है।

स्वामी भगवदाचार्य ने कहा कि पिछले साल लखनऊ विश्वद्यिालय के हिंदी विभाग की ओर से आयोजित राष्टÑीय संगोष्ठी में भी बहुमत से यह सिद्ध हुआ कि बांदा और एटा का दावा निराधार है। उन्होंने कहा कि इससे पहले दिसंबर 2005 में काशी विद्यापीठ वाराणसी में आयोजित चौथे विश्व तुलसी सम्मेलन में भी सर्वसम्मति से यही प्रस्ताव पारित किया गया कि गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर (सूकरखेत) गोण्डा ही है। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास को अविवाहित साबित करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि तुलसी नाम के जो चार साहित्यकार हुए, उनमें से सोरों और बलरामपुर में जन्मे तुलसी दास की पत्नियों का नाम रत्नावली था। स्वामी भगवदाचार्य के मुताबिक मानसकार तुलसी आजीवन अविवाहित और एकांत साधक रहे। स्वामी भगवदाचार्य ने सूकरखेत (राजापुर)को पर्यटन स्थल घोषित करने, तुलसीदास के नाम पर एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने और एक पुलिस चौकी कायम करने की मांग की है।

सर्वमान्य कथा तुलसीदास के बारें में जो हम जानते हैं, उसका अवलोकन इस लिंक से करें। हिंदी विकीपीडिया ने इसे विस्तार से छापा है।

गोस्वामी तुलसीदास [१४९७ (१५३२?) - १६२३] एक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा जिला) उत्तर प्रदेश में हुआ था। अपने जीवनकाल में तुलसीदासजी ने १२ ग्रन्थ लिखे और उन्हें ...


32 सौ साल पुराना निकला जाजमऊ टीला


    कानपुर को लखनऊ से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 25 पर स्थित जाजमऊ के विशाल प्राचीन टीले की खुदाई में सैकड़ों वर्ष पुराने पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। अवशेष ने जाजमऊ की पूर्व अनुमानित प्राचीनता [लगभग 600-700 ईसा पूर्व] को लगभग 600 वर्ष और पीछे [लगभग 1200-1300 ईसा पूर्व] खिसका दी है। इस तरह 3200 साल पुराना टीला माना जा रहा है।

उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व निदेशालय के निदेशक राकेश तिवारी के अनुसार यहा चार साल से उत्खनन कार्य चल रहा था। खुदाई में लगभग दो हजार उत्तरी चमकदार पालिश वाले पात्र [बर्तन], पुराने सैकड़ों सिक्कों का जखीरा, बर्तन बनाने में प्रयोग किया जाने वाला पकी मिट्टी से बना ब्राह्माी लेखयुक्त [पुरानी लिपि] उपकरण तथा कच्ची और पकी ईटों से निर्मित मौर्य और पूर्व मौर्य कालीन इमारतों के अवशेष मुख्य रूप से पाए गए हैं।

गंगा के किनारे वाले हिस्से में डा. राजीव कुमार त्रिवेदी द्वारा कराये गये उत्खनन में एक अत्यन्त चमकदार पात्र में रखे चांदी के सिक्कों का जखीरा मिला है। इन सिक्कों पर सूर्य, चक्र, वेदिका में वृक्ष, अर्ध चन्द्र, मेरु [पर्वत] आदि चिन्ह अंकित हैं। यह जखीरा दुर्लभ उपलब्धि है। पुरातात्विक खुदाई में ऐसा जखीरा पहली बार मिला है। तिवारी के अनुसार जाजमऊ के उत्खनन से अस्थि-निर्मित तीखे बाणाग्र [तीर के आगे हिस्सा], पकी मिट्टी और उप रत्‍‌नों से बनी गुड़िया [मनके], मिट्टी और शीशे के कई कंगन, मिट्टी के खिलौने और मूर्तिया, मुद्रा-छाप [सीलिंग], धातु-उपकरण, मिट्टी के बने विभिन्न तरह के बर्तनों के टुकड़े, सोप स्टोन से बने पात्र [बर्तन] व और उनके ढक्कन, पकी मिट्टी की सुसज्जित चकरियों [डिस्क] के तमाम उदाहरण समकालीन इतिहास के महत्वपूर्ण स्त्रोत होंगे।

4 comments:

VICHAAR SHOONYA said...

ekdam nayi jankari.

शरद कोकास said...

बहुत बढ़िया शोध है लेकिन पुष्टि के लिये और दस्तावेज भी तो ज़रूरी है ।

Udan Tashtari said...

ये तो नई जानकारी दे दी आपने.


एक विनम्र अपील:

कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

Dr Mandhata Singh said...

समीरजी इतिहास में कई बातें स्मृतियों में संरक्षित कथाओं से जोड़ी गईं हैं। इन्हीं कारणों से साहित्यिक साक्ष्य जो भी उपलब्ध हैं, उनके आधार पर स्थापित हो चुकी मान्यताओं पर भी सवाल उठते रहते हैं। तुलसीदास पर उठा यह सवाल भी ऐसा ही है जिसपर आगे शोध की आवश्यकता है। इसे महज अफवाह नहीं मानना चाहिए। हो सकता है कि यह सवाल साक्ष्यों के अभाव में धराशायी हो जाए। ब्लागर और इतिहासकार शरद कोकश जी ने भी यही माना है कि इन बातों के लिए साक्ष्यों की जरूरत है। सवाल को सिरे से नकारने की बजाए साक्ष्य ढूंढना ज्यादा समाचीन होगा। बहरहाल आप दोनों का आभारी हूं कि आपने साक्ष्य का सवाल उठाया।

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