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Tuesday, October 27, 2009

सात पुरियों में से एक है अयोध्या




    भारतवर्ष की प्राचीन सात पुरियों में से एक अयोध्या है। सात पुरियों की गणना इस प्रकार की जाती है।1. अयोध्या पुरी 2. मथुरा पुरी 3. माया पुरी 4. काशी पुरी 5. कांची पुरी 6.अवंतिकापुरी 7. द्वारिका पुरी । जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि सभी का हमारे सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें से अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि के संदर्भ में जानी जाती है हालाकि इस विषय को लेकर राजनैतिक विवाद जारी है। मैं यहां किसी संप्रदायिक या राजनैतिक विवाद की चर्चा नहीं कर रहा हूं बल्कि अयोध्या के बारे में ही कुछ कहना चाहता हूं। कुछ प्चलित कथाएं हैं अयोध्या के बारे में। हालाकि इनके भी साक्ष्य हमारे पौराणिक साहित्य में उपलब्ध हैं। आइए इन कथाओं के माध्य से अयोध्या को जानने की कोशिश करते हैं।




कब और किसने बसाया अयोध्या को ?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, अयोध्यापुरी को मनु ने बसाया था, जबकि स्कंदपुराण कहता है कि यह नगरी विष्णु के सुदर्शन चक्र पर बसी है। कुछ मतों के अनुसार, अयोध्या श्रीरामचंद्र के धनुष के अग्रभाग पर स्थित है। कथा है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम पृथ्वी पर लीला समाप्ति के बाद समस्त अयोध्यावासियों को निज धाम ले गए। अयोध्या वीरान हो गई। बाद में श्रीराम के पुत्र कुश ने इसे फिर से बसाया। कहते हैं कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण पटरानी रुक्मिणी के साथ अयोध्या आए थे। उनके नाम पर बना कुंड आज भी 'रुक्मिणी कुंड' के नाम से जाना जाता है।



विक्रमादित्य ने किया पुनरोद्धार



कलियुग में अयोध्या के पुनरोद्धार का श्रेय उज्जायिनी के राजा विक्रमादित्य को जाता है। मान्यता है कि एक बार उनके मन में भावना उठी कि हम सूर्यवंशी है, श्रीरामचंद्रजी की जन्मभूमि का पता लगाना चाहिए। एक दिन प्रात:काल सरयू नदी के किनारे उन्होंने देखा कि श्यामवर्ण का एक पुरुष काले रंग के घोड़े पर सवार होकर आया और उसने सरयू में डुबकी लगा दी। जब वह घुड़सवार सरयू से बाहर आया, तो वह गौरवर्ण तथा उसका घोड़ा सफेद रंग का दिखा। मान्यता है कि उन्होंने घुड़सवार से उसका परिचय पूछा, तो वह अश्वारोही बोला, 'मैं तीर्थराज प्रयाग हूं। पापियों के पाप धोते-धोते कलुषित हो जाता हूं। सरयू और अयोध्यापुरी के प्रताप से मैं पापों से मुक्त होकर वास्तविक स्वरूप में आ जाता हूं।' प्रयागराज ने उन्हे रामजन्मभूमि की खोज के लिए काशी जाने का परामर्श दिया। काशी पहुंचकर विक्रमादित्य अन्न-जल त्यागकर विश्वनाथ मंदिर के द्वार पर बैठ गए। विक्रमादित्य का संकल्प देखकर विश्वनाथ बूढ़े ब्राह्मण के वेश में आकर बोले- 'राजा! तुम यह गऊ और पोथी लेकर अयोध्या जाओ, जहां गऊ के थन से स्वत: दूध गिरेगा, उसे ही श्रीरामचंद्र की जन्मभूमि समझना। इसके बाद इस पोथी के आधार पर अयोध्या के प्राचीन स्थलों का पुनरोद्धार करना।'





मंदिर का निर्माण



अयोध्या में जिस स्थान पर गाय का दूध स्वत: थनों से बहने लगा, वहां विक्रमादित्य ने सुंदर मंदिर बनवाया, जिसमें एक भव्य शालिग्राम शिला पर श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सहित हनुमानजी की स्थापना की। 84 कसौटी के स्तंभों पर निर्मित 7 कलशों वाले श्रीरामजन्मभूमि मंदिर को 1528 में यवनों की सेना ने ध्वस्त कर दिया। उस समय श्रीराम-पंचायतन के विग्रह वाली शिला को सरयू में प्रवाहित कर दिया गया। कहा जाता है कि 1748 में महाराष्ट्रियन ब्राह्मण श्रीनरसिंहराव मोघे को लक्ष्मण घाट पर श्रीराम-पंचायतन शिला प्राप्त हुई। इसे उन्होंने अयोध्या के स्वर्गद्वार पर मंदिर बनवाकर बैठाया। एक ही शालिग्राम शिला पर सम्पूर्ण राम-पंचायतन बने होने के कारण यह देवालय 'श्रीकालेराम मंदिर' के नाम से विख्यात हो गया।



रामदूत बने क्षेत्राधिकारी



किंवदंतियों के अनुसार, जब श्रीरामचंद्र अयोध्यावासियों के साथ निजधाम जाने लगे, तो उन्होंने हनुमानजी को अयोध्या की सम्पूर्ण व्यवस्था सौंप दी। हनुमानगढ़ी में उनका दर्शन करके भक्त कृतार्थ हो जाते है।



प्रमुख तीर्थस्थल



सोने से बना कनक भवन सीताजी को कैकेयी माता ने मुंह-दिखाई में दिया था। वर्तमान भवन ओरछा स्टेट द्वारा बनवाया गया है। यहां युगल सरकार का दर्शन करके तीर्थयात्री कृतार्थ हो जाते हैं। इसके पास ही मत्तागजेन्द्रजी का स्थान है, जो विभीषणजी के पुत्र है। यहां से उत्तार में सप्तसागरतीर्थ है। पूर्वी भाग में अयोध्या की अधिष्ठात्री 'छोटी देवकाली' प्रतिष्ठित है। जन्मभूमि के निकट सीता रसोई एवं अग्निकोण में सीता कूप है। आगे रत्न सिंहासन मंदिर है। अयोध्या में गरुड़ द्वारा लाया गया मणि पर्वत है। अयोध्या के स्वर्गद्वार पर किया गया जप-तप, स्नान-दान, हवन, पूजा-पाठ अक्षय फलदायक होता है। सरयू में सहस्त्रधारा तीर्थ और लक्ष्मण टीले पर लक्ष्मण किला है। कार्तिक-शुक्ल-नवमी (अक्षय नवमी), देवोत्थान एकादशी और रामनवमी के दिन श्रद्धालु अयोध्या की परिक्रमा करते है। उत्तार प्रदेश के फैजाबाद जिले में स्थित अयोध्या की यात्रा रेल और सड़क मार्ग से आसानी से की जा सकती है। [साभार-अतुल टण्डन-याहू जागरण]



अयोध्या विवाद: कब-कब, क्या-क्या हुआ! और अयोध्या के इतिहास व दर्शनीय स्थल की जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करिए।--------।

अयोध्या-१
अयोध्या-२
अयोध्या-३
अयोध्या-४
अयोध्या-५
अयोध्या-६

9 comments:

Jandunia said...

इतिहास पर काफी अच्छा ब्लॉग है

Taarkeshwar Giri said...

बहुत ही अच्छा लगा पढ़ करके, पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा और आनंद आ गया, इतिहास मेरा सबसे प्रिय बिषय है, मुझे इतिहास पढने और सुनाने मैं बहुत ही आन्नद आता है, आपको बहुत -बहुत धन्यवाद् इस ब्लॉग के लिए.
मेरा ब्लॉग है, www.taarkeshwargiri.blogspot.com
email: tkgiri1@gmail.com

Mishra Pankaj said...

अच्छी जानकारी

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बढिया चित्र, बढिया विवरण- आभार॥

PN Subramanian said...

रोचक विवरण.चित्र भी सुन्दर हैं. क्या उज्जैनी के विक्रमादित्य का कोई ऐतिहासिक आधार है? क्या आज की अयोध्या वास्तविक अयोध्या है.क्या यहाँ से कोई मानी प्रमाण मिले हैं? हमारे यहाँ भी एक अयोध्या है. इस लिए पूछ रहे हैं..

Ambarish said...

sundar post.. acchi jankari.. shukriya..

रंजना said...

Mere liye ayodhya se sambandhit ye sabhi tathy poorntah naveen the,so padhkar itna aanand aaya ki kya kahun....

Aapki aabhari hun ki aapke is mahat aalekh ke karan yah jaanne ka suawsar mila...

Naveen Tyagi said...

aapka aaleka bahut hi sundar hai.

Naveen Tyagi said...

pn subranian ji jo samaaj apne itihaas ko nahi jaanta,us samaaj ka bhavishy bhi andhkarmay hota hai.hum to angrejon va musalmaano ka likha itihaas padh rahe hai.naalanda va takxshilaa jaise saikdo vishvvidyaly islaam ki aandhi me dah gaye.lakhon-2 granth va itihasik saamagree ko aag me swaha kar diya gaya.baaki bachaa kuchaa ka angrejon ne apne dhang se va apne fayde ke liye anuwaad karaya.vikrmaditiy ko padhne ke liye aap satyarthved.blogspot par aayen.aap samrat vikrmaditiy ka rajy arab tak paayenge.

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