इतिहास ब्लाग में आप जैसे जागरूक पाठकों का स्वागत है।​

Website templates

Sunday, August 22, 2010

नालंदा विश्वविद्यालय - बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया, अब बख्तियारपुर का नीतिश इसे जिंदा करेगा !

नालंदा में सारिपुत्त स्तूप का अवशेष। नालंदा में प्राचीन विश्वविद्यालय के स्थल पर कुछ बौद्ध भिक्षु ( सभी फोटो विकीपीडिया से साभार ।

  भारत में दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना सातवीं शताब्दी ईसापूर्व यानी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना से करीब १२०० साल पहले ही हो गई थी। यह नालंदा भारत का दूसरा प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसका पुनर्निर्माण किया जा रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना से काफी पहले यानी करीब १००० साल पहले गौतम बुद्ध के समय (५०० ईसापूर्व ) से ही नालंदा प्रमुख गतिविधियों का केंद्र रहा है।


तमाम बौद्ध साक्ष्यों में उल्लेख है कि गौतमबुद्ध नालंदा में कई बार आए थे। वहां एक आम के बगीचे में धम्म के संदर्भ में विचार विमर्श किया था। आखिरी बार गौतमबुद्ध नालंदा आए तो मगध के सारिपुत्त ने बौद्ध धर्म में अपनी आस्था जताई। यह भगवान बुद्ध का दाहिना हाथ और सबसे प्रिय शिष्यों में एक था। केवत्तसुत्त में वर्णित है कि गौतमबुद्ध के समय नालंदा काफी प्रभावशाली व संपन्न इलाका था। शिक्षा का बड़ा केंद्र बनने तक यह घनी आबादी वाला जगह बन गया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद दुनिया के सबसे लोकप्रिय जगहों में शुमार हो गया। बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय में यहां अकाल पड़ने का भी उल्लेख है। गौतमबुद्ध का शिष्य सारिपुत्त तो नालंदा में ही पैदा हुआ और यहीं इसका निधन भी हुआ ( सारिपुत्त के निधन की जगह नालका की पहचान की इतिहासकारो ने नालंदा से की है।

बौद्ध अनुयायी सम्राट अशोक ( २५० ईसापूर्व ) ने तो सारिपुत्त की याद में यहां बौद्ध स्तूप बनवाया था। नालंदा तब भी कितना महत्वपूर्ण केंद्र था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह जैन धर्मावलंबियों के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र था। जैन तीर्थंकर महावीर ने जिस पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था, वह नालंदा में ही था। नालंदा पाचवीं शताब्दी में आकर शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र में तब्दील हो गया।

  अब पुनः अपनी स्थापना से करीब १५०० साल बाद विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के फिर से दुनिया का वृहद शिक्षाकेंद्र बनाने की नींव पड़ गई है। आज राज्यसभा ने इससे संबंधित विधेयक को मंजूरी दे दी। गुप्तराजाओं के उत्तराधिकारी और पराक्रमी शासक कुमारगुप्त ने पांचवीं शताब्दी में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। गुप्तों के बाद इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसांग आया था उस समय १०००० विद्यार्थी और १५१० आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। ( प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक विवरण देखने के लिए यहां क्लिक करें।)
   दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध शिक्षाकेंद्र के तौर पर पहचान बन चुके इस विश्वविद्यालय को अंततः    मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने ११९९ ईसवी में जलाकर नष्ट कर दिया। अब बख्तियारपुर के नीतिश कुमार, जो अभी बिहार के मुख्यमंत्री हैं, के प्रयासों से फिर नालंदा विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया है। १६ देशों की मदद से इसके निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। भारत के नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की देखरेख में इसकी रूपरेखा तय की जा रही है। यह तो तय है कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तरह यह सिर्फ बौद्ध शिक्षा का केंद्र नहीं रहेगा लेकिन इस विश्वविद्यालय के पुनर्जीवित करने के विधेयक को मंजूरी दे चुके राज्यसभा सदस्यों को उम्मीद है कि प्रस्तावित नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर दुनिया में भारत का नाम उसी तरह रोशन करेगा जैसा कि प्राचीन काल में था। इसी उम्मीद के साथ नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक 2010 को राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया है।

    लंबे अंतराल के बाद शनिवार को राज्यसभा में एक सार्थक और सारगर्भित चर्चा देखने को मिली। सभी दलों के सदस्यों ने इस विश्वविद्यालय के तमाम पहलुओं पर अपनी राय जाहिर की। सांसदों के सुझावों में विश्वविद्यालय की इमारत के वास्तुशिल्प से लेकर इसमें पढ़ाए जाने वाले विषय भी शामिल थे। यह विधेयक गत 12 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था।

बिहार की राजधानी पटना से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित बड़ा गांव में आज भी नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष मौजूद हैं। राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में बड़ा गांव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।अपनी ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक पांचवीं सदी में दुनिया के तमाम देशों के करीब 10 हजार विद्यार्थी वहां शिक्षा ग्रहण करते थे। कहा जाता है कि तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय काफी समृद्ध था। उसकी इमारत नौ मंजिल की थी।

    विधेयक के मुताबिक नया नालंदा विश्वविद्यालय परिसर 441 एकड़ में बनेगा। विदेश राज्यमंत्री परनीति कौर के मुताबिक इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में इतिहास, व्यापार प्रबंधन, भाषा, पर्यावरण एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों जैसे महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया जाएगा। इसकी इमारत के वास्तुशिल्प का चयन अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के जरिए किया जाएगा।

   वरिष्ठ सदस्य डा. कर्ण सिंह ने चर्चा के दौरान कहा कि इतिहास बताता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में चीन, जापान, मंगोलिया, अफगानिस्तान, तिब्बत एवं अन्य देशों से शोधार्थी आते थे। उन्होंने उम्मीद जताई कि नया नालंदा विश्वविद्यालय ऑक्सफर्ड एवं अन्य विदेशी विश्वविद्यालयों से ज्यादा बेहतर होगा। सीताराम येचुरी ने इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि यह दिलचस्प है कि नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने नष्ट करवाया था। आज उसको पुन: जीवित कराने में बख्तियारपुर के ही एक व्यक्ति (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार) की महत्वपूर्ण भूमिका है।

बीजेपी के बाल आप्टे का सुझाव था कि इस विश्वविद्यालय को विदेश मंत्रालय के बजाय शिक्षा मंत्रलाय के अधीन होना चाहिए था। बीएसपी के युवा सदस्य प्रमोद कुरील का सुझाव था कि नए विश्वविद्यालय का वास्तुशिल्प पुराने विश्वविद्यालय जैसा ही होना चाहिए। ताकि यह अहसास हो कि ज्ञान का प्राचीन केंद्र पुनर्जीवित हो रहा है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास


नालंदा विश्वविद्यालय

Tuesday, August 17, 2010

एक हजार साल का हुआ तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर

खबरों में इतिहास ( भाग-८)
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-एक हजार साल का हुआ तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर
२-हिम युग के समय जीवित बच सकते थे मानव
३-दस करोड़ साल पहले धरती पर थे बिल्ली जैसे घड़ियाल
४-डेढ़ अरब साल पुराना है जीवन का इतिहास
५-3500 साल पुराना कंगन मिला


तमिलनाडु के ऐतिहासिक तंजौर कस्बे में स्थित चोल राजवंश के समय के एक विशाल मंदिर को एक हजार साल पूरे हो गये हैं और यहां महोत्सव की तैयारी चल रही है। राज्य सरकार विशालकाय बृहदीश्वर मंदिर के एक हजार साल पूरे होने पर अनेक सांस्कृतिक आयोजन करने जा रही है। यह मंदिर अब यूनेस्को के ‘ग्रेट लिविंग चोला मंदिरों’ में शामिल है। 26 सितंबर से शुरू हो रहे दो दिन के उत्सव के दौरान तंजौर सांस्कृतिक केंद्र की तरह बन जाएगा, जहां पूरे शहर भर में कलाकार प्रस्तुति देंगे। इसके अलावा 100 ओडुवर :मंदिर में गायन प्रस्तुति देने वाले: पवित्र पुस्तक तिरुमुरई का पाठ पढ़ेंगे, जिसमें भगवान शिव के लिए तमिल में गीत और मंत्र लिखे हैं। इस मौके पर जानीमानी नृत्यांगना पद्मा सुब्रमण्यम के निर्देशन में एक हजार कलाकार नृत्य प्रस्तुति देंगे। ( भाषा )।

  देश के सबसे विशालकाय मंदिरों में से एक बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है । इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक राजाराज चोल एक ने करवाया था । उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है । चोल शासकों ने मंदिर को राजराजेश्वरम नाम दिया था, लेकिन बाद में तंजौर पर चढ़ाई करने वाले मराठा और नायक शासकों ने इसे बृहदीश्वर मंदिर नाम दिया।


 यह मंदिर काफी बड़े परिसर में फैला है तथा तंजौर के किसी भी हिस्से से इसे देखा जा सकता है। इसके अलावा भगवान शिव की सवारी के रूप में मान्य ‘नंदी’ की भी यहां बहुत बड़ी मूर्ति है।मंदिर के गर्भगृह में दुर्लभ पेंटिंग्स हैं, जिनके बारे में कुछ दशक पहले तक जानकारी न के बराबर थी। दरअसल पेंटिंग्स की हालत बहुत खराब होने के कारण इन तक पहुंच पाना मुश्किल था। राज्य सरकार मंदिर के ढांचे में सुधार के लिए 25.19 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसकी मरम्मत की जिम्मेदारी ली है।

     यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था । इसके तेरह (13) मंजिले भवन (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलो की संख्या विषम होती है ।) की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है । मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है । यह कला की प्रत्येक शाखा - वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका भार 2200 मन ( 80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नंदी जी विराजमान हैं। नंदी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।
डेढ़ अरब साल पुराना है जीवन का इतिहास

पश्चिम अफ्रीका से वैज्ञानिकों ने एक ऐसा जीवाश्म खोजा है जिसने इस बात की संभावना जगाई है कि धरती पर बहुकोशिकीय जीवन का इतिहास कम से कम डेढ़ अरब साल से भी अधिक पुराना है। नए पाए गए जीव की संरचनात्मक जटिलता एक नई बहस छेड़ सकती है। गैबन की पहाड़ियों से पाया गया यह जीव साधारण आँखों से देखा जा सकता है और इसने विकास की कहानी को थोड़ा पीछे धकेल दिया है। अध्ययन को अंजाम देने वाले पोइटियर्स विश्वविद्यालय के अब्दुल रज्जाक अल अल्बानी ने बताया कि काफी समय से माना जाता रहा है कि जटिल बहुकोशिकीय जीवन की उत्पत्ति 60 करोड़ साल से ज्यादा पुरानी नहीं है, लेकिन यह 2.1 अरब साल पुरानी है। इस खोज को प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित किया गया है।

अब तक वैज्ञानिकों की यह समझ रही है कि 60 करोड़ साल से पहले दुनिया पर एककोशिकीय जीवाणु का वर्चस्व था, लेकिन बस्तियों में रहने वाले इस नए जीव की खोज से मालूम होता है कि जटिलता की ओर विकास जल्द ही शुरू हो गया था। (भाषा)

दस करोड़ साल पहले धरती पर थे बिल्ली जैसे घड़ियाल

दस करोड़ साल पहले धरती पर डायनोसोरों के साथ बिल्ली जैसे दिखने वाले घड़ियाल रहा करते थे। इस नई खोज ने जीवन के विकास के कुछ अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बिल्ली के आकार के पकासुचुस कपिलीमई के पैर अपेक्षाकृत लंबे होते थे और उनकी नाक कुत्तों जैसी होती थी। इन प्राणियों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनके दाँत स्तनधारी जीवों की भाँति होते थे, जिससे उन्हें चबाने की शक्ति मिलती थी। तंजानिया के तट से मिले साढ़े करोड़ साल पुराने घड़ियाल के जीवाष्म को उतने ही पुराने साढ़े करोड़ साल पुराने पत्थरों से वैज्ञानिकों ने प्राप्त किया। ओहाइयो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि अफ्रीका के मैदान में यह पानी से दूर रहते थे और कीट-पतंगे खाते थे। प्रो. पैट्रिक ओकोन्नोर ने इस खोज की अगुवाई की। उन्होंने बताया क पहली नजर में यह घड़ियाल स्तनधारी जैसा लगता है। उसका सर आपकी हथेली में समा जाएगा। अगर आप उसके दाँत देखेंगे तो आपको लगेगा नहीं कि वह घड़ियाल था। वह विचित्र तरह का सरीसृप था। (भाषा)

हिम युग के समय जीवित बच सकते थे मानव

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिम युग के समय अगर मानव ने अफ्रीका के दक्षिणी तट ‘गार्डन ऑफ ईडन’ में शरण ली होती तो वे शायद जीवित बच सकते थे। वैज्ञानिकों को दक्षिण अफ्रीका के शहर केपटाउन से लगभग 240 मील पूर्व में अलग-अलग गुफाओं से मानव-निर्मित कलाकृतियाँ मिली हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह जगह धरती पर एकमात्र स्थान था जहाँ हिमयुग के दौरान भी जीवन के लिए अनुकूल स्थिति मौजूद थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि लगभग 195,000 वर्ष पहले दुनिया का तापमान जब अचानक बदला और हिम युग आया तब इस क्षेत्र में रहने वाले लोग खुद को बचाने में सफल हुए होंगे। ‘डेली मेल’ की खबर के मुताबिक, कुछ वैज्ञानिकों का तो यहाँ तक मानना है कि हिमयुग के दौरान मानव आबादी घटकर बहुत कम बची होगी और ये वे लोग रहे होंगे, जो इस क्षेत्र में थे। (भाषा)

3500 साल पुराना कंगन मिला

उत्तरी इजरायल में एक पुरातात्विक खुदाई के दौरान कांस्य बार हुआ है कि उत्तरी इजरायल में 3,500 साल पुराने गांव का पता चला है। अभी तक उस क्षेत्र में तेल मेगिड्डो या तेल हजोर जैसे बड़े शहरों के बारे में ही पता चल पाया था। खुदाई कार्य का नेतृत्व करने वाली प्रमुख पुरातत्वविद कारेन कोवेलो परान ने बताया, "खुदाई में मिला कांस्य युगीन कंगन असाधरण तरीके से सुरक्षित है और इस पर नक्काशी है। उसके ऊपरी हिस्से पर एक सींग जैसी संरचना भी है।" उन्होने बताया "उस युग में सींग पवन देवता का प्रतीक था और वह शक्ति, उत्पादकता और कानून के प्रतीक थे।" कॉवेलो परान ने बताया है, "देश के उत्तरी क्षेत्र में खुदाई के दौरान हमें प्राचीन ग्रामीण इलाकों के जीवन की एक पहली झलक मिली है।" उन्होंने बताया, "ऐसा कंगन जो पहनता रहा होगा, वह निश्चित रूप से संपन्न रहा होगा और ग्रामीण परिवेश से संबंध रखता रहा होगा।

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...