प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर दोहे रचकर प्राचीन कवि घाघ भड्डरी ने सटीक भविष्यवाणियां की थीं। आज के वैज्ञानिक युग में मौसम आदि के बारे घाघ भड्डरी की कहावतें गांवों में आज भी लोगों की जुबान पर हैं। कुछ लोगों के प्रयास से ये कहावतें पुस्तक के रूप में संकलित की गई थी। जिसके कारण बहुत बाद तक लोगों की जानकारी समृद्ध होती रही। खेती के संदर्भ में तो किसान इन कहावतों पर पूरा भरोसा रखते थे, और आज भी लोगों को भरोसा है। दुर्भाग्य से इन कहावतों का लिखित रूप लगभग विलुप्त हो गया है। मेरे पास भी बचपन में घाघ भड्डरी की कहावतें नाम एक पुस्तक थी। मेरे बड़े भैया कृष्णा नन्द सिंह कहीं से लाए थे। हम लोग उनके के बक्से से इस किताब को लेकर बड़ी चाव से पढ़ते थे। कुछ कहावतें तब ही कंठस्थ हो गईं थीं। आज अचानक वेबदुनिया हिंदी समाचार पोर्टल पर इन कहावतों को देखा तो पुरानी यादें ताजा होगईं। पोर्टल पर भी सीमित कहावतें पोस्ट की गईं हैं। लोगों से अक्सर सुनी जाने वाली बेहद प्रचलित कहावतों को वेबदुनिया ने पोस्ट किया है। इस लिंक पर जाकर आप भी उन कहावतों को पढ़ सकते हैं। मैंने भी वेबदुनिया से साभार इन कहावतों को लिया है। देखे कितनी सटीक हैं ये। पुरानी पीढ़ी के लोगों के लिए तो नई बातें नहीं हैं मगर नईं पीढ़ी के लिए कौतूहल वाला है। नई पीढ़ी तो आज के मौसम विज्ञानियों को जानती है मगर मेरा अनुरोध है कि वे इस मौसम विज्ञानी को देखें।मौसम से लेकर यात्रा विचार तक की बातें वर्षों के अनुभव के बाद लिखी गई हैं। नीचे वेबदुनिया से साभार ( http://hindi.webdunia.com/astrology-articles/astrology-114111900048_1.html ) कुछ दोहे दे रहा हूं। इसी तरह नवभारत टाइम्स पोर्टल में संजय के धरती के गोंद नामक संग्रहीत घाघ भड्डरी की कहावतें छपी हैं। उसे इस लिंक पर देखिए। नीचे अलग से उसे भी दे रहा हूं.। अवलोकन करें।
कपड़ा पहिरै तीन बार। बुध बृहस्पत सुक्रवार।
हारे अबरे इतवार। भड्डर का है यही बिचार।।
अर्थात वस्त्र धारण करने के लिए बुध, बृहस्पति और शुक्रवार का दिन विशेष शुभ होता है। अधिक आवश्यकता पड़ने पर रविवार को भी वस्त्र धारण किया जा सकता है, ऐसा भड्डरी का विचार है।
चलत समय नेउरा मिलि जाय। बाम भाग चारा चखु खाय।।
काग दाहिने खेत सुहाय। सफल मनोरथ समझहु भाय।।
अर्थात यदि कहीं जाते समय रास्ते में नेवला मिल जाए और दाहिने ओर खेत में कौवा हो तो जिस कार्य से व्यक्ति निकला है, वह अवश्य सिद्ध होगा।
नारि सुहागिन जल घट लावै। दधि मछली जो सनमुख आवै।।
सनमुख धेनु पिआवै बाछा। यही सगुन हैं सबसे आछा।।
अर्थात यदि सौभाग्यवती स्त्री पानी से भरा घड़ा ला रही हो, कोई सामने से दही और मछली ला रहा हो या गाय बछड़े तो दूध पिला रही हो तो यह सबसे अच्छा शकुन होता है।
पुरुब गुधूली पश्चिम प्रात। उत्तर दुपहर दक्खिन रात।।
का करै भद्रा का दिगसूल। कहैं भड्डर सब चकनाचूर।।
अर्थात भड्डरी कहते हैं कि यदि पूर्व दिशा में यात्रा करनी हो तो गोधूलि (संध्या) के समय, यदि पश्चिम में यात्रा करनी हो तो प्रात:काल, यदि उत्तर दिशा में यात्रा करनी हो तो दोपहर में और यदि दक्षिण की ओर जाना है तो रात में निकलना चाहिए। यदि उस दिन भद्रा या दिशाशूल भी है तो ऐसा करने वाले व्यक्ति को कुछ भी नहीं होगा।
गवन समय जो स्वान। फरफराय दे कान।
एक सूद्र दो बैस असार। तीनि विप्र औ छत्री चार।।
सनमुख आवैं जो नौ नार। कहैं भड्डरी असुभ विचार।।
अर्थात भड्डरी कहते हैं कि यात्रा पर निकलते समय यदि घर के बाहर कुत्ता कान फटफटा रहा हो तो अशुभ होता है। यदि सामने से 1 शूद्र, 2 वैश्य, 3 ब्राह्मण, 4 क्षत्रिय और 9 स्त्रियां आ रही हों तो अशुभ होता है।
भरणि बिसाखा कृत्तिका, आद्रा मघा मूल।
इनमें काटै कूकुरा, भड्डर है प्रतिकूल।।
अर्थात भड्डरी का कहना है कि यदि भरणी, विशाखा, कृत्तिका, आर्द्रा और मूल नक्षत्र में कुत्ता काट ले तो बहुत बुरा होता है।
लोमा फिरि फिरि दरस दिखावे। बायें ते दहिने मृग आवै।।
भड्डर जोसी सगुन बतावै। सगरे काज सिद्ध होइ जावै।।
अर्थात यात्रा पर जाते समय यदि लोमड़ी बार-बार दिखाई पड़े, हिरण बाएं से दाहिने ओर निकल जाए तो व्यक्ति जिन कार्यों के लिए जा रहा होगा, वे सभी सिद्ध हो जाएंगे, ऐसा ज्योतिषी भड्डरी कहते हैं।
सूके सोमे बुधे बाम। यहि स्वर लंका जीते राम।।
जो स्वर चले सोई पग दीजै। काहे क पण्डित पत्रा लीजै।।
अर्थात शुक्रवार, सोमवार और बुधवार को बाएं स्वर में कार्य प्रारंभ करने से सफलता मिलती है। राम ने इसी स्वर में लंका जीती थी। यदि बायां स्वर चले तो बायां पैर आगे निकालना चाहिए। दाहिना चले तो दाहिना पैर आगे निकालना चाहिए। इससे कार्य सिद्ध होता है। ऐसा करने वाले व्यक्ति को पंचांग में विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
सोम सनीचर पुरुब न चालू। मंगल बुद्ध उत्तर दिसि कालू।
बिहफै दक्खिन करै पयाना। नहि समुझें ताको घर आना।।
बूध कहै मैं बड़ा सयाना। मोरे दिन जिन किह्यौ पयाना।।
कौड़ी से नहिं भेट कराऊं। छेम कुसल से घर पहुंचाऊं।।
अर्थात यदि यात्रा पर जाना हो तो सोमवार और शनिवार को पूर्व, मंगल और बुध को उत्तर दिशा में नहीं जाना चाहिए। यदि व्यक्ति बृहस्पति को दक्षिण दिशा की यात्रा करेगा तो उसका घर लौटना संदिग्ध होगा। बुधवार कहता है कि मैं बहुत चतुर हूं, व्यक्ति को मेरे दिन कहीं भी यात्रा नहीं करनी चाहिए; क्योंकि मैं उसको एक कौड़ी से भी भेंट नहीं होने दूंगा। क्षेम-कुशल से उसको घर पहुंचा दूंगा।
यह संकलन नवभारत टाइम्स का है--------------
( ( http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/dharti-ki-god/entry/%E0%A4%98-%E0%A4%98-%E0%A4%B5-%E0%A4%AD%E0%A4%A1-%E0%A4%A1%E0%A4%B0-%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A4%B9-%E0%A4%B5%E0%A4%A4))
नारि सुहागिन जल घट लावै। दधि मछली जो सनमुख आवै।।
सनमुख धेनु पिआवै बाछा। यही सगुन हैं सबसे आछा।।
अर्थात यदि सौभाग्यवती स्त्री पानी से भरा घड़ा ला रही हो, कोई सामने से दही और मछली ला रहा हो या गाय बछड़े तो दूध पिला रही हो तो यह सबसे अच्छा शकुन होता है।
गवन समय जो स्वान। फरफराय दे कान।
एक सूद्र दो बैस असार। तीनि विप्र औ छत्री चार।।
सनमुख आवैं जो नौ नार। कहैं भड्डरी असुभ विचार।।
अर्थात भड्डरी कहते हैं कि यात्रा पर निकलते समय यदि घर के बाहर कुत्ता कान फटफटा रहा हो तो अशुभ होता है। यदि सामने से 1 शूद्र, 2 वैश्य, 3 ब्राह्मण, 4 क्षत्रिय और 9 स्त्रियां आ रही हों तो अशुभ होता है।
लोमा फिरि फिरि दरस दिखावे। बायें ते दहिने मृग आवै।।
भड्डर जोसी सगुन बतावै। सगरे काज सिद्ध होइ जावै।।
अर्थात यात्रा पर जाते समय यदि लोमड़ी बार-बार दिखाई पड़े, हिरण बाएं से दाहिने ओर निकल जाए तो व्यक्ति जिन कार्यों के लिए जा रहा होगा, वे सभी सिद्ध हो जाएंगे, ऐसा ज्योतिषी भड्डरी कहते हैं।
सूके सोमे बुधे बाम। यहि स्वर लंका जीते राम।।
जो स्वर चले सोई पग दीजै। काहे क पण्डित पत्रा लीजै।।
अर्थात शुक्रवार, सोमवार और बुधवार को बाएं स्वर में कार्य प्रारंभ करने से सफलता मिलती है। राम ने इसी स्वर में लंका जीती थी। यदि बायां स्वर चले तो बायां पैर आगे निकालना चाहिए। दाहिना चले तो दाहिना पैर आगे निकालना चाहिए। इससे कार्य सिद्ध होता है। ऐसा करने वाले व्यक्ति को पंचांग में विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
"ज्यादा खाये जल्द मरि जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय। रहे निरोगी जो कम खाये, बिगरे काम न जो गम खाये।" ऐसी अनेक कहावतों से हमें जिन्दगी के विभिन्न पहलुओं का सटीक मार्गदर्शन मिलता है। घर के बुजुर्ग ऐसी अनेक कहावतों से, समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। कान्वेन्ट विद्यालयों में पढ़कर आयी नयी पीढ़ी इन कहावतों से अनभिज्ञ है, क्योंकि ये हिन्दी में है, हिन्दी में भी देहाती भाषा में, जिसे वे आसानी से नहीं समझ पाते। ये कहावतें, मैं विशेष रूप से नयी पीढ़ी के लिए लाया हूंँ, ताकि वे इन्हें पढ़कर इनकी विश्वसनियता को जांचे और न केवल अपने ज्ञान में वृद्धि करें, साथ ही 'हिन्दी' की महान 'साहित्यिक विरासत' पर भी गर्व कर सकें। पाठकजनों!! आज मैं आपके सम्मुख रख रहा हूं ‘‘घाघ व भड्डरी की कहावतें‘‘। शुद्ध देहाती हिन्दी भाषा में लिखी गयी इन कहावतों को हम आसानी से कंठस्थ करके अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं। इस लेख में मैंने केवल "नीति व स्वास्थ्य" संबंधी कहावतों को ही शामिल किया है।
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ मे पंथ आषाढ़ में बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वारें दूध न कातिक मही।
मगह न जारा पूष घना, माघेै मिश्री फागुन चना।
घाघ! कहते हैं, चैत (मार्च-अप्रेल) में गुड़, वैशाख (अप्रैल-मई) में तेल, जेठ (मई-जून) में यात्रा, आषाढ़ (जून-जौलाई) में बेल, सावन (जौलाई-अगस्त) में हरे साग, भादों (अगस्त-सितम्बर) में दही, क्वार (सितम्बर-अक्तूबर) में दूध, कार्तिक (अक्तूबर-नवम्बर) में मट्ठा, अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) में जीरा, पूस (दिसम्बर-जनवरी) में धनियां, माघ (जनवरी-फरवरी) में मिश्री, फागुन (फरवरी-मार्च) में चने खाना हानिप्रद होता है।
जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव।
वाको यही बताइये घुॅँइया पूरी खाव।।
घाघ! कहते हैं, यदि किसी से शत्रुता हो तो उसे अरबी की सब्जी व पूडी खाने की सलाह दो। इसके लगातार सेवन से उसे कब्ज की बीमारी हो जायेगी और वह शीघ्र ही मरने योग्य हो जायेगा।
पहिले जागै पहिले सौवे, जो वह सोचे वही होवै।
घाघ! कहते हैं, रात्रि मे जल्दी सोने से और प्रातःकाल जल्दी उठने से बुध्दि तीव्र होती है। यानि विचार शक्ति बढ़ जाती हैै।
प्रातःकाल खटिया से उठि के पिये तुरन्ते पानी।
वाके घर मा वैद ना आवे बात घाघ के जानी।।
भड्डरी! लिखते हैं, प्रातः काल उठते ही, जल पीकर शौच जाने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है, उसे डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
सावन हरैं भादों चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता।
कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल
माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रातः नहाय।
चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती।
जैठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे
भड्डरी! लिखते हैं, सावन में हरै का सेवन, भाद्रपद में चीता का सेवन, क्वार में गुड़, कार्तिक मास में मूली, अगहन में तेल, पूस में दूध, माघ में खिचड़ी, फाल्गुन में प्रातःकाल स्नान, चैत में नीम, वैशाख में चावल खाने और जेठ के महीने में दोपहर में सोने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है, उसे ज्वर नहीं आता।
कांटा बुरा करील का, औ बदरी का घाम।
सौत बुरी है चून को, और साझे का काम।।
घाघ! कहते हैं, करील का कांटा, बदली की धूप, सौत चून की भी, और साझे का काम बुरा होता है।
बिन बेैलन खेेती करै, बिन भैयन के रार।
बिन महरारू घर करै, चैदह साख गवांँर।।
भड्डरी! लिखते हैं, जो मनुष्य बिना बैलों के खेती करता है, बिना भाइयों के झगड़ा या कोर्ट कचहरी करता है और बिना स्त्री के गृहस्थी का सुख पाना चाहता है, वह वज्र मूर्ख है।
ताका भैंसा गादरबैल, नारि कुलच्छनि बालक छैल।
इनसे बांचे चातुर लौग, राजहि त्याग करत हं जौग।।
घाघ! लिखते हैं, तिरछी दृष्टि से देखने वाला भैंसा, बैठने वाला बैल, कुलक्षणी स्त्री और विलासी पुत्र दुखदाई हैं। चतुर मनुष्य राज्य त्याग कर सन्यास लेना पसन्द करते हैं, परन्तु इनके साथ रहना पसन्द नहीं करते।
जाकी छाती न एकौ बार, उनसे सब रहियौ हुशियार।
घाघ! कहते हैं, जिस मनुष्य की छाती पर एक भी बाल नहीं हो, उससे सावधान रहना चाहिए। क्योंकि वह कठोर ह्दय, क्रोधी व कपटी हो सकता है। ‘‘मुख-सामुद्रिक‘‘ के ग्रन्थ भी घाघ की उपरोक्त बात की पुष्टि करते हैं।
खेती पाती बीनती, और घोड़े की तंग।
अपने हाथ संभारिये, लाख लोग हों संग।।
घाघ! कहते हैं, खेती, प्रार्थना पत्र, तथा घोड़े के तंग को अपने हाथ से ठीक करना चाहिए किसी दूसरे पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
जबहि तबहि डंडै करै, ताल नहाय, ओस में परै।
दैव न मारै आपै मरैं।
भड्डरी! लिखते हैं, जो पुरूष कभी-कभी व्यायाम करता हैं, ताल में स्नान करता हैं और ओस में सोता है, उसे भगवान नहीं मरता, वह तो स्वयं मरने की तैयारी कर रहा है।
विप्र टहलुआ अजा धन और कन्या की बाढि़।
इतने से न धन घटे तो करैं बड़ेन सों रारि।।
घाघ! कहते हैं, ब्र्राह्मण को सेवक रखना, बकरियों का धन, अधिक कन्यायें उत्पन्न होने पर भी, यदि धन न घट सकें तो बड़े लोगों से झगड़ा मोल ले, धन अवश्य घट जायेगा।
औझा कमिया, वैद किसान। आडू बैल और खेत मसान।
भड्डरी! लिखते हैं, नौकरी करने वाला औझा, खेती का काम करने वाला वैद्य, बिना बधिया किया हुआ बैल और मरघट के पास का खेत हानिकारक है।