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Wednesday, August 20, 2014

ताजमहल से जुड़े इतिहास के कई रहस्यों से पर्दा उठाया

आगरा के किले से लेकर ताजमहल तक के रास्ते में 50 के करीब मुगल बाग थे

 उन्नीसवीं सदी के कुछ फोटो निगेटिवों की जांच पड़ताल ने ताजमहल से जुड़े इतिहास के कई रहस्यों से पर्दा उठाया। इन तस्वीरों के माध्यम से यह पता चला कि आगरा के किले से लेकर ताजमहल तक के रास्ते में 50 के करीब मुगल बाग थे।
यह निगेटिव उन 220 दुर्लभ चित्रों के संग्रह का हिस्सा हैं जिसमें ताजमहल और विजयनगर साम्राज्य से जुड़ी पहली तस्वीरें शामिल हैं। वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र पर इनसे जुड़ी एक प्रदर्शनी चल रही है जो 30 सितंबर तक जारी रहेगी। इस केंद्र की सदस्य सचिव दीपाली खन्ना ने कहा कि इस प्रदर्शनी में ताज से जुड़े पहले निगेटिव हैं। मेरा मानना है कि भारत में इन्हें पहली बार ही प्रदर्शित किया जा रहा है। इतिहासकार आभा कौल ने इन निगेटिवों की जांच करके पता लगाया कि ताजमहल से लेकर आगरा के किले के बीच 50 मुगल उद्यान थे।
प्रदर्शनी में ताज की पहली तस्वीर लेने वाले जॉन मूरे के चित्र भी शामिल किए गए हैं। इसके अलावा भारत के पड़ोसी देश जैसे कि नेपाल, बर्मा और सीलोन के भी ऐतिहासिक चित्र इस प्रदर्शनी में शामिल किए गए हैं जिन्हें उस समय के ब्रिटिश अधिकारियों, यूरोपीय और स्थानीय लोगों ने उतारा था। इसके अलावा प्रथम युद्ध चित्रक राजा दीन दयाल के चित्र भी यहां प्रदर्शित किए गए हैं। नई दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा)।

छत्तीसगढ़ में होगी फॉसिल पार्क की स्थापना

   छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के कोरिया जिले में फॉसिल पार्क की स्थापना करने का फऐसला किया है। सरकारी सूत्रों ने बुधवार को यहां बताया कि छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में मेरीन फॉसिल पार्क की स्थापना की जाएगी। राज्य सरकार के वन विभाग इसे बनाएगा।
अधिकारियों ने बताया कि कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ के पास हसदेव नदी के किनारे एक बड़े इलाके में मेरीन फॉसिल (समुद्रीय जीवाश्म) की मौजूदगी प्रकाश में आई है। वन विभाग के अधिकारियों को भ्रमण के दौरान इसकी जानकारी मिली। उन्होंने बताया कि लखनऊ  स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आॅफ पेलियोबाटनी के वैज्ञानिकों ने भी जिले के आमाखेरवा गांव सहित आसपास के स्थल का दौरा किया। उन्होंने भी बड़े पैमाने पर फॉसिल की उपस्थिति की पुष्टि कर दी है। जीवाश्मों के अध्ययन और विश्लेषण के लिए बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट भारत सरकार का एक प्रमुख प्रामाणिक संस्थान है।
संस्थान के वैज्ञानिकों ने इन जीवाश्मों को लगभग 25 करोड़ साल पुराना परमियन भूवैज्ञानिक काल के आसपास का ठहराया है। उन्होंने भी इस क्षेत्र को जिओहेरिटेज के रूप में विकसित करने की सिफारिश राज्य सरकार से की है।
अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार ने फॉसिल पार्क विकसित करने के लिए 17 लाख 50 हजार रुपए का प्रावधान किया है। इलाके की सुरक्षा के लिए चैनलिंक सहित चौकीदार हट और अन्य पर्यटक सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। रायपुर, 20 अगस्त (भाषा)।

Wednesday, August 6, 2014

खुदाई में निकला दो हजार साल पुराना शिवलिंग !

   छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान द्वादश ज्योतिर्लिगों वाले पौरुष पत्थर से बना शिवलिंग मिला है. माना जा रहा है कि यह दो हजार वर्ष पुराना है. सिरपुर में मिले इस शिवलिंग को काशी विश्वनाथ जैसा शिवलिंग बताया जा रहा हैं. छत्तीसगढ़ के पुरातत्व सलाहकार अरुण कुमार शर्मा का दावा है कि यह दो हजार साल पुराना है और राज्य में मिला अब तक का सबसे प्राचीन व विशाल शिवलिंग है.
   पुरातत्वविदों का कहना है कि वाराणसी के काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकालेश्वर शिवलिंग जैसा है सिरपुर में मिला यह शिवलिंग. यह बेहद चिकना है. खुदाई के दौरान पहली शताब्दी में सरभपुरिया राजाओं के द्वारा बनाए गए मंदिर के प्रमाण भी मिले. इस शिवलिंग में विष्णु सूत्र (जनेऊ) और असंख्य शिव धारियां हैं.

  सूबे के सिरपुर में साइट नंबर 15 की खुदाई के दौरान मिले मंदिर के अवशेषों के बीच 4 फीट लंबा 2.5 फीट की गोलाई वाला यह शिवलिंग निकला है. बारहवीं शताब्दी में आए भूकंप और बाद में चित्रोत्पला महानदी की बाढ़ में पूरा मंदिर परिसर ढह गया था. मंदिर के खंभे नदी के किनारे चले गए. सिरपुर में कई सालों से चल रही खुदाई में सैकड़ों शिवलिंग मिले हैं. इनमें से गंधेश्वर की तरह यह शिवलिंग भी साबूत निकला है.

भूकंप और बाढ़ से गंधेश्वर मंदिर भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था. पर यहां मौजूद सफेद पत्थर से बना शिवलिंग सुरक्षित बच गया. सिरपुर में मिले गंधेश्वर शिवलिंग की विशेषता उससे निकलने वाली तुलसी के पौधे जैसी सुगंध है. इसलिए इसे गंधेश्वर शिवलिंग कहा जा रहा है.

पुरातत्व सलाहकार अरुण कुमार शर्मा ने बताया कि ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता बैडलर ने 1862 में लिखे संस्मरण में एक विशाल शिवमंदिर का जिक्र किया है. लक्ष्मण मंदिर परिसर के दक्षिण में स्थित एक टीले के नीचे राज्य के संभवत: सबसे बड़े और प्राचीन शिव मंदिर की खुदाई होना बाकी है. जो भविष्य में यहां से प्राप्त हो सकती हैं.

   पुरातत्व के जानकारों के अनुसार भूकंप और बाढ़ ने सिरपुर शहर को 12वीं सदी में जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया था. कालांतर में नदी की रेत और मिट्टी की परतें शहर को दबाती चलीं गईं. टीलों को कई मीटर खोदकर शहर की संरचना को निकाला गया. खुदाई में मिले सिक्कों, प्रतिमाओं, ताम्रपत्र, बर्तन, शिलालेखों के आधार पर उस काल की गणना होती गई.

   साइट पर खुदाई की गहराई जैसे-जैसे बढ़ती है, प्राचीन काल के और सबूत मिलते जाते हैं. जमीन में जिस गहराई पर शिवलिंग मिला, उसके आधार पर इसे दो हजार साल पुराना माना गया है. बहरहाल यहां मिल रहे शिवलिंग पुरातत्व के जानकारों के लिए अब शोध का विषय बनता जा रहा है। (साभार-http://aajtak.intoday.in/story/2000-years-old-shivling-is-found-at-mahasamand-1-774834.html )

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