प्राचीन और मंदिरों के शहर के नाम से मशहूर मथुरा विभिन्न प्राचीन व्यापारिक मार्गों का केंद्र था। यहीं से पश्चिम एशिया के रोमन साम्राज्य, उत्तर में तक्षशिला पुष्कलावती और पुरूषपुर व मध्य एशिया चीन को जोड़ने वाला सिल्क रूट के रास्ते गुजरते थे। पांचवीं शताब्दी ईसापूर्व यानी गौतम बुद्ध के समय यह महानगर बन चुका था। कुषाणों के समय में तो इसने अपना स्वर्णयुग भी देखा। तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में महान सम्राट अशोक से लेकर चाथी शताब्दी में गुप्त राजाओं के शासनकाल तक यह प्रमुख आर्थिक केंद्र बना रहा। आज के आधुनिक भारत में भी इसे देश के प्रमुख धार्मिक नगर का सम्मान हासिल है। मंदिरों का शहर वृंदावन यहीं से सिर्फ १५ किलोमाटर दूर यमुना के किनारे अवस्थित है जहां हर साल कम से कम पांच लाख पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं।
इसी वृंदावन के प्रमुख मंदिरों में एक है राधामाधव मंदिर। इसे जयपुर मंदिर भी कहते हैं। इसे जयपुर के महाराजा सवाई माधव ने १९१७ में बनवाया। इसे बनवाने में ३० साल लग गए। हाथ से नक्काशी किए हुए इस मंदिर में प्रयुक्त पत्थर कला के बेजोड़ नमूने हैं। इसमें राधा-माधव, आनंद बिहारी और हंस गोपाल की पूजा की जाती है।
कई स्वयंसेवी संस्थाएं आजकल वृंदावन में ‘राधा माधव मंदिर’ पर आंखें गड़ाए बैठी हैं। राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के अधीन उत्तर भारत के इस नायाब और कलात्मक मंदिर को हथियाने की दौड़ में एक फाउंडेशन सबसे आगे है। संस्था के ट्रस्टी सदस्यों के रूप में देशी और विदेशी उद्योगपति भी हैं। राजस्थान सरकार के अधिकारी अरबों रुपए की बेशकीमती संपत्ति को इस फाउंडेशन की सुपुर्दगी में देने के लिए मानों तैयार बैठे हैं।
जानकारी के मुताबिक मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, राधाकुंड आदि स्थानों पर राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के नियंत्रण में डेढ़ दर्जन मंदिर और उनसे जुड़ी अरबों रुपए की बेशकीमती जमीन है। इन सबके रखरखाव आदि की व्यवस्था के लिए वृंदावन के राधामाधव मंदिर परिसर में देवस्थान विभाग का दफ्तर है।
सहआयुक्त के दफ्तर के छोटे-बड़े कर्मचारी-अफसरों को राजस्थान के महाराजाओं द्वारा बड़े जतन से बनवाए गए मंदिरों की संपत्ति को गलत हाथों में जाने से बचाने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। ब्रज में फैली पड़ी इस संपत्ति में वृंदावन का राधा माधव मंदिर स्थापत्य कला का अपूर्व नमूना है। इसे जयपुर के राजा सवाई माधव सिंह ने 1917 में बनवाया था। 56 एकड़ भूमि में बने इस मंदिर को पूरा होने में तीस साल लगे। भूर पत्थर के इस कलात्मक मंदिर में 66 कमरे, आठ हाल, 26 बरामदे व अनेक बगीचे हैं। वृंदावन के इस किलेनुमा मंदिर में सतरंगी इटेलियन संगमरमर की पच्चीकारी की हुई है। मंदिर के निर्माण के वक्त राजस्थान से पत्थर लाने के लिए राजा ने पंद्रह किलोमीटर लंबी मीटर गेज की रेल लाइन बिछवाई थी जो आज भी मौजूद है।
इतनी शानदार संपत्ति पर थोड़े ही समय पहले भरतपुर की एक न्यास ने दांत गड़ाए थे। राजस्थान सरकार और देवस्थान विभाग के आला अफसरों की मिलीभगत से राधा माधव मंदिर को न्यास को सौंपने की पूरी तैयारी कर ली गई थी लेकिन वृंदावन के नेताओं और जनता के हो-हल्ला मचाने पर सुपुर्दगी की कार्यवाही लटक गई। इसके बाद वृंदावन के ऊंचे रसूख वाले धर्माचार्यों ने इस मंदिर को अपनी सेवा में लेने की लिखा पढ़ी की। लेकिन उन्हें भी कामयाबी नहीं मिली। अब उक्त फाउंडेशन ने इसे हथियाने के लिए कमर कसी है। फाउंडेशन के स्थानीय कर्ताधर्ता एक पूर्व पत्रकार हैं। उन्होंने अपने संपर्कों से राजस्थान के मुख्य सचिव से तार जोड़ा। सूत्रों के मुताबिक देवस्थान विभाग के आला अधिकारी भी फाउंडेशन के हक में झुके नजर आते हैं। लेकिन वृंदावन स्थित देवस्थान विभाग का दफ्तर इस सुपुर्दगी को एकदम गलत ठहराता है। दफ्तर के सहआयुक्त ने अपने 21.4.2009 के पत्र से राजस्थान सरकार को अवगत कराया है कि मंदिर के आसपास 806099 वर्ग फीट खाली जमीन है जिसका वर्तमान मूल्य कई अरब रुपए है। मंदिर में विभाग द्वारा नियुक्त तीन पुजारी विधिवत निम्बार्क संप्रदाय के अनुसार पूजा पाठ कर रहे हैं और इसके रखरखाव में किसी प्रकार की बाधा नहीं आ रही है। उन्होंने लिखा है कि मंदिर की सुपुर्दगी के लिए भूमाफिया किस्म के व्यक्ति व संस्थाएं आवेदन करती रही हैं। उनकी नजर मंदिर की खाली पड़ी जमीन पर है। अगर किसी संस्था की सुपुर्दगी में मंदिर दिया जाता है तो इसे वापस लेना संभव नहीं होगा। इसके अलावा यह फाउंडेशन राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम 1959 के तहत पंजीकृत नहीं है। लिहाजा इस मंदिर को किसी भी संस्था की सुपुर्दगी में दिया जाना उचित नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक सहआयुक्त की इस रिपोर्ट को देवस्थान विभाग ने गंभीरता से नहीं लिया। मजेदार बात यह है कि राजनेताओं और अफसरों के वरदहस्त वाले उद्योगपतियों के फाउंडेशन ने उत्तर प्रदेश के अनेक स्थानों पर देवस्थान विभाग के मंदिरों को सुपुर्द करने की एक अन्य चिट्ठी राजस्थान सरकार को दी है।
राधा माधव मंदिर के पास गौशाला चलाने वाले श्रीपाद बाबा के शिष्य बाबा दामोदर ने बताया कि वे चर्चित फाउंडेशन के कार्यकलापों से परिचित हैं। यदि राजस्थान सरकार ने राधा माधव मंदिर को निजी हाथों में सौंपा तो वे अनशन पर बैठेंगे। बाबा दामोदर ने फाउंडेशन के क्रियाकलापों की जानकारी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर दी है। (साभार-जनसत्ता)