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Sunday, January 16, 2011

जलवायु अस्थिरता से हुआ सभ्यताओं का उत्थान-पतन

खबरों में इतिहास ( भाग-११ )
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-जलवायु अस्थिरता से हुआ सभ्यताओं का उत्थान-पतन
२- दस हजार साल पुरानी 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग

जलवायु अस्थिरता से हुआ सभ्यताओं का उत्थान-पतन

पेड़ों के तने पर बने रिंग या वलयों पर हुए एक विस्तृत शोध से पता चलता है कि पुरानी सभ्यताओं के उत्थान और पतन का संबंध जलवायु में हुए अचानक होने वाले परिवर्तनों से हो सकता है। इस दल ने शोध के लिए पिछले 25 सौ सालों की क़रीब नौ हज़ार लकड़ियों की कलाकृतियों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि गर्मियों के जो मौसम गर्म के अलावा बारिश वाले रहे उन दिनों समाज में समृद्धि आई और जिन दिनों जलवायु में अस्थिरता रही उन दिनों राजनीतिक हलचलें तेज़ रहीं। शोध के नतीजे 'जनरल साइंस' की वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए हैं। इस शोध के सहलेखक उल्फ़ बंटजेन ने इस बेबसाइट से कहा, "अगर हम पिछले 25 सौ सालों के इतिहास पर नज़र डालें तो ऐसे उदाहरण हैं जब जलवायु परिवर्तन ने मानव इतिहास को प्रभावित किया है।"बंटजेन स्विस फ़ेडरल रिसर्च इंस्टिट्यूट में मौसम परिवर्तन से जुड़े वैज्ञानिक हैं।

छाल का इतिहास

इस शोध के लिए दल ने एक ऐसी प्रणाली का उपयोग किया जिससे कि खुदाई के दौरान मिली चीज़ों के समय काल का पता चल सकता है। प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है, "पुरातत्वविदों ने मध्य यूरोप के ओक या बलूत के पेड़ों के तनों पर बने वलयों की एक अनुक्रमणिका तैयार की जो लगभग 12 हज़ार साल के इतिहास की जानकारी देती थी. फिर इसके आधार पर उन्होंने कलाकृतियों, पुराने घरों और फ़र्नीचरों के समय काल के बारे में अध्ययन किया।"

पुरातत्वविदों ने जो सूची तैयार की है उसके अनुसार वर्तमान में मौजूद और पुराने समय के ओक पेड़ों के वलयों के अध्ययन से यह पता चल सकता था कि गर्मियों के दौरान और सूखे के दौरान उनकी प्रवृत्ति कैसी होती है।
शोध टीम ने अध्ययन किया कि पिछली दो सदियों में मौसम ने पेड़ों के तनों के वलयों के विकास में कैसी भूमिका निभाई। उन्होंने पाया कि जब अच्छा मौसम होता है, जिसमें पानी और पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं, पेड़ों में बनने वाले वलयों की चौड़ाई बहुत अधिक होती है। लेकिन जब मौसम अनुकूल नहीं होता तो वलय की चौड़ाई तुलनात्मक रुप से कम होती है।इसके बाद वैज्ञानिकों ने कलाकृतियों में मौजूद छालों के अध्ययन के आधार पर पुराने मौसमों के बारे में एक अनुमान लगाया।

   जब उन्होंने 25 सौ सालों के मौसम की सूची तैयार कर ली तो फिर उन्होंने उन वर्षों में समाज में समृद्धि के बारे में अनुमान लगाना शुरु किया। टीम का कहना है कि जिस समय गर्मियों में तापमान ठीक था और बारिश हो रही थी रोमन साम्राज्य और मध्ययुगीन काल में समृद्धि थी. लेकिन 250 से 600 ईस्वी सदी का समय, जब मौसम में तेज़ी से परिवर्तन हो रहा था उसी समय रोमन साम्राज्य का पतन हुआ और विस्थापन की प्रक्रिया तेज़ हुई।शोध में कहा गया है तीसरी सदी में सूखे मौसम के संकेत मिलते हैं और यही समय पश्चिमी रोमन साम्राज्य के लिए संकट का समय माना जाता है। इसी समय गॉल के कई प्रांतों में हमले हुए, राजनीतिक हलचल रही और आर्थिक अस्थिरता रही। डॉक्टर बंटजेन का कहना है कि उन्हें इन आंकड़ों की जानकारी थी लेकिन उन्होंने इसका नए तरह से अध्ययन किया और इसका संबंध जलवायु से जोड़कर देखा। ( बीबीसी से साभार-http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2011/01/110115_trees_civilisation_vv.shtml )


दस हजार साल पुरानी 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग

विभाजन के बाद सियालकोट से बूंदी में आकर बस गए ओमप्रकाश शर्मा कुक्की ने 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग खोजने का दावा किया है। उन्होंने बताया कि खोज किए गए शैल चित्र करीब दस हजार साल पुराने हैं तथा मिसोलेथिक युग से संबंध रखते हैं।

परचून की दुकान करने वाले और पुरा अन्वेषण खोज को शौकिया तौर पर अपनाने वाले ओम प्रकाश उर्फ कुक्की ने बूंदी जिले के गरहडा क्षेत्र के बांकी गांव से भीलवाड़ा जिले के मॉडल तक फैली करीब 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिंग खोजने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि 35 किलोमीटर लंबी राक पेंटिग्स पर करीब बतीस रंगीन रॉक पेंटिग बनी हुई है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में बने शैल चित्र नक्काशी कर उकेरे गये हैं, जबकि बूंदी के गरहडा क्षेत्र में पाए गए शैल चित्र रंगों से बनाए गए हैं। कुक्की बताते हैं कि यहां बने शैल चित्रों में हल्का लाल, गहरा लाल, सफेद, काला, पीला व गहरे हरे रंग का विलक्षण प्रयोग किया गया है। इन चित्रों में मानव आकृतियां, पशु जीवन, बाघ, औजार आदि की आकृतियां है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) भोपाल के परियोजना समन्वयक डा. नारायण व्यास ने कहा कि कुक्की की यह खोज बेमिसाल है। लेकिन यह विश्व की सबसे लंबी रॉक पेंटिग नहीं है।

कुक्की ने कहा कि बूंदी जिले में की गई पुरा महत्व की खोजों को इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्टस, नई दिल्ली व इंडियन रॉक आर्ट रिसर्च सेंटर नाशिक द्वारा संरक्षित किया गया है। उन्होंंने दावा किया कि बूंदी जिले में उनके द्वारा खोजी गए 78 पुरा अन्वेषक स्थल हैं। कुक्की ने कहा-मैं अपने परिवार का पालन पोषण परचून की दूकान से कर रहा हूं। साथ ही समय निकालकर पुरा महत्व की खोज में जुटा रहता हूं। इसके बावजूद सरकार ने आज तक मुझे कोई आर्थिक मदद देना मुनासिब नहीं समझा। सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने और न जाने कितनी मदों में लोगों की मदद कर रही है। मगर सरकार की नजर मेरी ओर नहीं जा रही है। जबकि मैंने बूंदी जिले की पुरासामग्री को खोज निकाला है जो दबी हुई थी।

कुक्की का कहना है कि राजस्थान सरकार विशेष रूप से पर्यटन विभाग बूंदी से भीलवाड़ा जिले तक फैली 35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिग को प्रचारित करे तो पहले से ही पर्यटन मानचित्र पर उभरे बूंदी की तस्वीर बदल सकती है। उन्होंने कहा कि उन्होंने पर्यटन मंत्री बीना काक को राक पेंटिग समेत बूंदी जिले की पुरा सामग्री को संजोने और पर्यटकों को दिखाने के लिए प्रस्ताव भेजे हैं लेकिन अभी तक जवाब नहीं मिला है। इधर, जयपुर में राजस्थान पर्यटन विकास निगम सूत्रों ने कुक्की के बूंदी पर्यटन विकास को लेकर भेजे गए किसी प्रस्ताव पर अनभिज्ञता जताई है। (बूंदी, 12 जनवरी (भाषा)।

Sunday, January 2, 2011

'आदि मानव शाकाहारी भी थे'

खबरों में इतिहास ( भाग-१० )
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-चार लाख साल पुराना मानव दांत मिला
२-'आदि मानव शाकाहारी भी थे'
३-200 साल पुरानी एक सुरंग
४-24 सौ साल पुराना 'सूप' मिला

चार लाख साल पुराना मानव दांत मिला


http://thatshindi.oneindia.in/news/2010/12/29/20101229240847.html

तेल अवीव विश्वविद्यालय ने अपनी वेबसाइट पर मंगलवार को लिखा कि इजराइली शहर रोश हाइन में एक गुफा में चार लाख साल पुराना मानव दांत मिला है। यह प्राचीन आधुनिक मानव का सबसे पुराना प्रमाण है।समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक वेबसाइट पर इसके साथ ही लिखा गया कि अब तक मानव के जिस समय काल से अस्तित्व में होने की बात मानी जा रही थी, यह मानव उससे दोगुना अधिक समय पहले जीवित था। यह दांत 2000 में गुफा में मिला था। इससे पहले आधुनिक मानव का सबसे प्राचीन अवशेष अफ्रीका में मिला था, जो दो लाख साल पुराना था। इसके कारण शोधार्थी यह मान रहे थे कि मानव कि उत्पत्ति अफ्रीका से हुई थी।सीटी स्कैन और एक्स रे से पता चलता है कि ये दांत बिल्कुल आधुनिक मानवों जैसे हैं और इजरायल के ही दो अलग जगहों पर पाए गए दांत से मेल खाते हैं। इजरायल के दो अलग जगहों पर पाए गए दांत एक लाख साल पुराने हैं।

गुफा में काम कर रहे शोधार्थियों के मुताबिक इस खोज से वह धारणा बदल जाएगी कि मानव की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी।गुफा की खोज करने वाले तेल अवीव विश्वविद्यालय के अवि गाफेर और रैन बरकाई ने कहा कि चीन और स्पेन में मिले मानव अवशेष और कंकाल से हालांकि मानव की अफ्रीका में उत्पत्ति की अवधारणा कमजोर पड़ी थी, लेकिन यह खोज उससे भी महत्वपूर्ण है।



'आदि मानव शाकाहारी भी थे'

http://thatshindi.oneindia.in/news/2010/12/28/neanderthalvegskj.html

निएंडरथल मानव सब्ज़ियां भी खाया करते थेआदि मानवों पर किए गए एक नए शोध के अनुसार आदिमानव (निएंडरथल) सब्ज़ियां पकाते थे और खाया करते थे.अमरीका में शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें निएंडरथल मानवों के दांतों में पके हुए पौधों के अंश मिले हैं.यह पहला शोध है जिसमें इस बात की पुष्टि होती है कि आदिमानव अपने भोजन के लिए सिर्फ़ मांस पर ही निर्भर नहीं रहते थे बल्कि उनके भोजन की आदतें कहीं बेहतर थीं.

यह शोध प्रोसिडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज़ में छपा है.आम तौर पर लोगों में आदि मानवों के बारे में ये धारणा रही है कि वो मांसभक्षी थे और इस बारे में कुछ परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी मिल चुके हैं. अब उनकी हड्डियों की रासायनिक जांच के बाद मालूम चलता है कि वो सब्ज़ियां कम खाते थे या बिल्कुल ही नहीं खाते थे.इसी आधार पर कुछ लोगों का ये मानना था कि मांस भक्षण के कारण ही हिमकाल के दौरान बड़े जानवरों की तरह ये मानव भी बच नहीं पाए. हालांकि अब दुनिया भर में निएंडरथल मानवों के अवशेषों की जांच रासायनिक जांच से मिले परिणामों को झुठलाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इन मानवों के दांतों की जांच के दौरान उसमें सब्ज़ियों के कुछ अंश मिले हैं जिसमें कुछ तो पके हुए हैं.निएंडरथल मानवों के अवशेष जहां कहीं भी मिले हैं वहां पौधे भी मिलते रहे हैं लेकिन इस बात का प्रमाण नहीं था कि ये मानव वाकई सब्ज़ियां खाते थे. जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलिसन ब्रुक्स ने बीबीसी न्यूज़ से कहा, ‘‘ हमें निएंडरथल साइट्स पर पौधे तो मिले हैं लेकिन ये नहीं पता था कि वो वाकई सब्ज़ियां खाते थे या नहीं. हां लेकिन अब तो लग रहा है कि उनके दांतों में सब्ज़ियों के अंश मिले हैं तो कह सकते हैं कि वो शाकाहारी भी थे.’’



200 साल पुरानी एक सुरंग

http://hindi.webdunia.com/samayik/deutschewelle/dwnews/1010/20/1101020084_1.htm

भारत की आर्थिक राजधानी में 200 साल पुरानी एक सुरंग मिली है। इतिहासकारों का कहना है कि निर्माण कार्य के दौरान अनायास इस सुरंग के मिलने से मिट्टी में दबे पड़े अतीत से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण नए तथ्यों का पता चलेगा। मुंबई में डाक विभाग की ओर से की जा रही खुदाई के दौरान मजदूरों को इस सुरंग का पता चला। यह सुरंग दक्षिण मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल इलाके में स्थित डाक घर के नीचे मिली है।डाक विभाग की निदेशक आभा सिंह ने बताया कि इस जगह पर अब तक झंडारोहण होता था और किसी को इसके ठीक नीचे मौजूद सुरंग के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। मजदूरों ने जब पामस की नाली को साफ करने के लिए मामूली सी खुदाई की तो कुछ सीढ़ियाँ दिखाई दीं। इनको साफ करने पर देखा गया कि सीढ़ियाँ सुरंग की ओर जा रही थी। इससे पहले बीते शुक्रवार को एक अखबार के रिपोर्टर ने भी सीढ़ियों की तरफ डाक विभाग का ध्यान आकर्षित किया था। उसकी सूचना पर ही मजदूरों को कूड़ा करकट से अटी पड़ी सीढ़ियों की तरफ खुदाई करने को कहा गया। मोटी दीवारों और पिलर के सहारे बनाई गई इस सुरंग में नीचे एक बड़ा सा हॉल पाया गया जिसके फर्श पर बिखरी पड़ी गंदगी के बीच कुछ अनजान पौधे मिले हैं जिनपर सुंदर फूल भी पाए गए। इसके अलावा भी तमाम पुरानी चीजें बिखरी पाई गई। मुंबई में पुरातत्व अधिकारी दिनेश अफजालपुरकर ने बताया कि इस सुरंग का दौरा कर इसके पुरातात्विक महत्व का पता लगाया जाएगा। इसके बाद ही इसके संरक्षण और उपयोग संबंधी भविष्य की रूपरेखा तय की जाएगी।



24 सौ साल पुराना 'सूप' मिला

http://thatshindi.oneindia.in/news/2010/12/14/chinasoupap.html

माना जा रहा है कि ये चीन का पहला 'बोन सूप' है.चीन की राष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देश के भूगर्भशास्त्रियों को एक ऐसा कटोरा हाथ लगा है जिसमें मौजूद सूप 24 सौ साल पुराना हो सकता है.ये सूप कांसे के एक बर्तन में सुरक्षित रखा था और इस बर्तन का ढक्कन ऊपर से बंद था.बंद बर्तन के अंदर सूप का तरल पदार्थ और उसमें हड्डियाँ सुरक्षित पाई गई हैं.

ये बर्तन एक खुदाई के दौरान चीन के प्राचीन शहर सियान में मिला.चीन के मशहूर मिट्टी के लड़ाके यानि 'टेराकोटा वारियर्स' इसी शहर के हैं.अब इस तरल पदार्थ की जाँच ये पता करने के लिए हो रही है कि ये बना किससे था और इसमें किन चीज़ों का इस्तेमाल हुआ था.इस खुदाई के दौरान बिना किसी गंध वाला एक और तरल पदार्थ मिला जिसके बारे में माना जा रहा है कि वो एक किस्म की शराब, वाइन है।

स्थानीय एयरपोर्ट तक जाने के लिए एक उपमार्ग बनाने के उद्देश्य से की जा रही खुदाई के दौरान ये बर्तन एक कब्र की खुदाई के समय मिले.चीन की मीडिया में कहा गया है कि ये चीन के इतिहास में पहले 'बोन सूप' की खोज है.चीन की मीडिया के मुताबिक ये खोज 475-221 ईसा पूर्व के मध्य देश में रह रहे लोगों के बारे में, उनकी सभ्यता और खान-पान वगैरह के बारे में पता लगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि जिस कब्र से सूप और उसका मर्त्तबान मिला है, वो या तो किसी ज़मींदार या फिर निम्न स्तर के किसी सैनिक अधिकारी का रहा होगा.सियान 11 सौ साल से ज़्यादा लंबे समय तक चीन की राजधानी रहा थाचीन के पहले बादशाह, किन शिहुआंग की कब्रगाह के स्थल पर 1974 में इसी शहर में चीन की मशहूर 'टेराकोटा आर्मी' मिली थी। 221 ईसा पूर्व में किन शिहुआंग ने चीन के एकीकरण का नेतृत्त्व किया था उन्होंने 210 ईसा पूर्व तक चीन पर शासन किया था।

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