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Tuesday, December 29, 2009

सारनाथ में ढाई हजार वर्ष पुरानी दीवार

खबरों में इतिहास ( भाग-३)

अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करेगा, जो इतिहास या मिथकीय इतिहास से संबंधित होंगी। मूल रूप में देने के साथ इन खबरों का मूल लिंक भी है ताकि आपको मूल स्रोत की पहचान और प्रमाणिकता भी बनी रहे। इस अंक में पढ़िए--------।
१-सारनाथ में ढाई हजार वर्ष पुरानी दीवार

२-कांस्य युगीन आभूषण, हथियार सहित 12 हजार से ज्यादा वस्तुओं का संग्रह

३- 35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी

४-यूपी में मिलीं 300 साल पुरानी तलवारें

५-मंदिर जहां भगवान शिव पर चढ़ाए जाते हैं झाड़ू!

६-सोने की 300 साल पुरानी कुरान


सारनाथ में ढाई हजार वर्ष पुरानी दीवार मिली

  सारनाथ बुद्ध की तपोस्थली है। विश्व पर्यटन के नक्शे में होने के कारण प्रतिदिन हजारों की संख्या में विभिन्न देशों से यहां पर्यटक आते हैं। यहां पिछले आठ वर्षों से भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से गुप्तकाल के समय बने चौखंडी स्तूप परिसर की वैज्ञानिक तरीके से खुदाई तथा सफाई कार्य चल रहा है। मंगलवार की शाम कर्मचारियों ने सफाई के दौरान गुप्तकालीन ढाई हजार वर्ष पूर्व की दीवार देखी।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणविद अजय कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि स्तूप की गुप्तकालीन दीवार मिलने से पुराने इतिहास की सच्चाई सामने आ रही है। श्रीवास्तव के मुताबिक सारनाथ चौखंडी स्तूप पर ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध से बिछड़े उनके शिष्य सारनाथ में मिले थे। यह निर्माण उन्हीं अनुयायियों की देन है। इसके पूर्व भी दो दीवारें पहले ही खोजी जा चुकी हैं। प्राचीन स्वरूप बना रहे अब वैज्ञानिक विधि से उसे संरक्षित भी कराया जाएगा।

मिलने वाली दीवार उत्तर दिशा की ओर है। चौखंडी स्तूप की पूरी चौतरफा दीवार मिलने पर ही स्तूप की मजबूती की कार्य योजना भी बनाई जाएगी। इसी तरह सारनाथ की खुदाई में मिले अशोक स्तम्भ, जर्जर स्थिति में न हो इसलिए इसे संरक्षित करने में वैज्ञानिक टीम कार्य में लगी है।

कांस्य युगीन आभूषण हथियार सहित 12 हजार से ज्यादा वस्तुओं का संग्रह


 इटली की पुलिस ने पुरा महत्व की बहुमूल्य वस्तुओं का एक विशाल जखीरा बरामद किया है जिन्हें एक पेंशनर ने अपना निजी संग्रहालय बनाने के लिए स्वयं खुदाई कराके इकट्ठा किया था 1 वेनिस के पास पुलिस अधिकारियों ने जब इस व्यक्ति के घर छापा मारा तो कांस्य युगीन कंघे से लेकर आभूषण हथियार और बर्तनों सहित 12 हजार से ज्यादा वस्तुओं का संग्रह देखकर उनकी आंखें चौंधिया गयी

वेनिस पुलिस के कर्नल पीर लुइगी पिसानो ने बताया .. यह व्यक्ति अपने स्तर पर खुदाई करा रहा था 1 हमें इसके पास से अमूल्य धरोहर मिली है जो ईसा से 18 वीं पूर्व से लेकर 18 वीं सदी तक के 3600 वषो के इस कालखंड के इस क्षेत्र के पूरे इतिहास को समेटे है 1.. इटली के कानून के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति को पुरातात्विक महत्व की कोई वस्तु या स्थान का पता चलता है तो उसे इसकी जानकारी सरकार को देनी होती है 1लेकिन पुलिस को लगातार अवैध खुदाई के माघ्यम से पुरा महत्व की वस्तुओं को हासिल करने वालों के खिलाफ नजर रखी पडती है



35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी मिली


जर्मनी में खोजकर्ताओं ने लगभग 35 हज़ार साल पुराना बाँसुरी खोज निकाला है और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह दुनिया का पहला संगीत यंत्र हो सकता है.ये बाँसुरी गिद्ध की हड्डी को तराश कर बनाई गई है. दक्षिणी जर्मनी में होल फेल्स की गुफ़ाओं से इसे निकाला गया है. यह उस समय का है जब आधुनिक मानव जाति यूरोप में बसना शुरु हुई थी.बांसुरी के इस्तेमाल से पता लगता है कि उस समय समाज संगठित हो रहा था और उनमें सृजन करने की क्षमता थी. विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि इससे ये पता लगाने में भी मदद मिल सकती है कि उस समय जाति का अस्तित्व कैसे बचा रहा.तूबिंजेन विश्वविद्यालय के पुरातत्व विज्ञानी निकोलस कोनार्ड ने बताया कि बांसुरी बीस सेंटीमीटर लंबी है और इसमें पाँच छेद बनाए गए हैं. इस बांसुरी के अलावा हाथी दाँत के बने दो बांसुरियों के अवशेष भी मिले हैं. अब तक इस इलाक़े से आठ बांसुरी मिली है.कोनार्ड कहते हैं, "साफ़ है कि उस समय भी समाज में संगीत का कितना महत्व था."

यूपी में मिलीं 300 साल पुरानी तलवारें


 उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के एक ईंट भट्ठे में खुदाई के दौरान प्राचीन काल की तलवारें और भाले मिले हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इनके लगभग 300 साल पुराने होने की संभावना जताई है।} बहराइच के दरगाह थाना-प्रभारी शिवपत सिंह ने रविवार को आईएएनएस को बताया कि सांसापारा गांव में शनिवार को एक ईंट भट्ठे में मजदूर फुट गहरी खुदाई के बाद प्राचीन शस्त्रों का जखीरा मिला। शस्त्रों को बाहर निकालकर पुलिस को इसकी सूचना दी गई।

तीन भाले भी मिले
सिंह ने बताया, "खुदाई में सात प्राचीन तलवारें और तीन भाले मिले हैं। तलवारों की लंबाई करीब दो मीटर और भालों की लंबाई लगभग चार मीटर है। दिखने में ये राजसी शस्त्र जैसे लगते हैं।" पुलिस ने जब पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों को फोन पर तलवारों और भालों की बनावट और रंग-रूप के बारे में बताया तो अधिकारियों ने इनके 300 साल पुराने होने की संभावना जताई।

मंदिर जहां भगवान शिव पर चढ़ाए जाते हैं झाड़ू!
   भगवान शिव पर बेलपत्र और धतूरे का चढ़ावा तो आपने सुना होगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक शिव मंदिर में भक्त उनकी आराधना झाड़ू चढ़ाकर करते हैं।
    मुरादाबाद जिले के बीहाजोई गांव के प्राचीन शिवपातालेश्वर मंदिर (शिव का मंदिर) में श्रद्धालु अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए झाड़ू चढाते हैं। इस मंदिर में दर्शन के लिए भारी संख्या में भक्त सिर्फ मुरादाबाद जिले से ही नहीं बल्कि आस-पास के जिलों और दूसरे प्रांतों से भी आते हैं।
    मंदिर के एक पुजारी पंडित ओंकार नाथ अवस्थी ने आईएएनएस को बताया कि मान्यता है कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाड़ू अर्पित करते हैं।

     पुजारी ने बताया कि वैसे तो शिवजी पर झ्झाड़ू चढ़ाने वाले भक्तों की भारी भीड़ नित्य लगती है, लेकिन सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है कि इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इस धारणा के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
65 वर्षीय ग्रामीण मकरध्वज दीक्षित ने बताया कि गांव में भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था। वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गये थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी।

    एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही दुर्घटनावश आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाड़ू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया। झाड़ू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारी दास दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है। भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली ले लें। महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें।

    कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाड़ू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हालांकि इस मंदिर में ज्यादातर श्रद्धालु त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने के लिए आते हैं, लेकिन संतान प्राप्ति व दूसरी तरह की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी श्रद्धालु भारी संख्या में मंदिर में झाड़ू चढ़ाने आते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा झाड़ू चढ़ाए जाने के कारण यहां झाड़ुओं की बहुत जबरदस्त मांग है। मंदिर परिसर के बाहर बड़ी संख्या में अस्थाई झाड़ू की दुकानें देखी जा सकती हैं।


सोने की 300 साल पुरानी कुरान
  उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के हामिद परिवार को अपनी सोने की पुश्तैनी कुरान पर गर्व है और हो भी क्यों न अब तो केंद्र सरकार ने भी उसकी पहचान महत्वपूर्ण पांडुलिपि के रूप में की है। यह कोई साधारण कुरान नहीं, यह 300 साल पुरानी सोने की कुरान है, जिसको जौनपुर शहर के रहट्टा मुहल्ले में रहने वाला हामिद परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी संजोते आ रहा है। परिवार के मुखिया साजिद हमीद (55) ने कहा कि हमें आज फक्र है कि हमारी अनोखी सुनहरी कुरान को सरकार की तरफ से भी अहिमयत मिली है। हमारे जिले में ये तो पहले से ही सालों से ही चर्चा का विषय बनी रही है।

    इस कुरान का आकर्षण उसकी सोने की जिल्द है। 1756 पन्नों वाली कुरान में जहां जिल्द सोने की बारीक कलाकृतियों से गढ़ी हुई है, वहीं इसके पन्ने सोने के पत्ती के रूप में हैं। हामिद परिवार के मुताबिक पांच पीढ़ियों से उन्होंने यह कुरान संजोकर रखी है। साजिद के दादा वाजिद अली को यह उनके दादा से मिली थी और तब से पीढ़ी दर पीढ़ी हम लोग इसे संजोते आ रहे हैं।

मन्नत पूरी होने पर बनवाई थी

साजिद के अनुसार उनके परिवार की कोई एक मन्नत पूरी होने पर उनके पूर्वजों ने अल्लाह के लिए अपनी मोहब्बत जाहिर करने के लिए विशेष कारीगरों द्वारा ये कुरान बनवाई थी। अपने पूर्वजों से मिली कुरान का रखरखाव के लिए साजिद खास ध्यान देते हैं। सिर्फ इसी कुरान के लिए एक पारदर्शी आलमारी बनवाई है, जिसमें इसको रखा है। पढ़ने के लिए वो इसको नहीं निकालते क्योंकि उनका मानना है कि रोज खोलकर पढ़ने से इस कुरान के पन्नों को नुकसान पहुंच सकता है।

        वह कहते हैं कि मैं इसको किसी भी हाल में खोना नहीं चाहता है। यह मेरे पूर्वजों की पहचान है। मैंने अभी से अपने बेटे को सख्त हिदायत दे दी है कि मेरे न रहने पर इस कुरान को मेरी याद सझकर उसी तरह संजोकर मिसाल कायम करेगा, जो हमारा परिवार वर्षो से करता आ रहा है।
    साजिद के मुताबिक कुछ समय पहले केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने जिला प्रशासन से संप साधा जिसके बाद कुछ अधिकारी मुझसे मिलने आए। उस समय मुझे बताया गया कि सरकार ने इसकी पहचान महत्वपूर्ण पांडुलुपि के रूप में की है और वह जब चाहेगी इस धरोहर को अपने संरक्षण में ले सकती है। अनोखी सुनहरी कुरान को रखने के लिए हामिद परिवार की वर्षो से केवल मुहल्ले ही नहीं पूरे जौनपुर में चर्चा होती है। उसे देखने के लिए लोगों को तांता लगा रहता है। पड़ोसी तौफीक अहमद कहते हैं कि हम लोगों को इस बात का फक्र है कि ऐसी नायाब चीज हमारे शहर में मौजूद है।

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