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Sunday, January 4, 2015

आर्यों ने ही बसाया था हड़प्पा सभ्यता को - रामशरण शर्मा

 हड़प्पा सभ्यता आर्यों की पूर्ववर्ती सभ्यता - संजीव कुमार सिंह

   भारत में आर्य बाहर से आए या फिर स्वदेशी थे, इस बात पर बरसों से जारी चर्चा के बीच भारत के कई इतिहासकार मानते हैं कि भारत में आर्यों का आगमन 1500 ईसा पूर्व मध्य एशिया से हुआ।
प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘प्राचीन भारत का इतिहास’ में लिखा है कि आर्य हिंद-यूरोपीय परिवार की भाषाएं बोलते थे, जो अपने परिवर्तित रूपों में आज भी समूचे यूरोप और ईरान में व भारतीय उपमहादेश के अधिकतर भागों में बोली जाती हैं। लगभग 1600 ईसा पूर्व के कस्साइट अभिलेखों और सीरिया में मिले अभिलेखों में आर्य नामों का उल्लेख है। उनसे पश्चिम एशिया में आर्य भाषा-भाषियों की उपस्थिति का पता चलता है।
राष्ट्रीय संग्रहालय के पुरातत्त्ववेत्ता और प्रकाशन विभाग के प्रभारी संजीव कुमार सिंह ने बताया कि आर्य मूल रूप से भारतीय हैं। वे हड़प्पा सभ्यता को आर्यों की पूर्ववर्ती सभ्यता मानते हैंं। सिंह ने बताया कि आर्य संस्कृति का इतिहास लेखन औपनिवेशिक सोच के आधार पर हुआ है। अंग्रेजी इतिहासकारों ने एक खास वर्ग को बाहरी बताकर समाज को बांटने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि प्रारंभिक इतिहासकारों ने हड़प्पा के बहुत कम स्थलों की खोज के आधार पर निष्कर्ष निकाला था कि हड़प्पा सभ्यता और आर्य सभ्यता अलग-अलग हैं। अब जबकि 2700 से अधिक हड़प्पाई स्थलों की खोज हो चुकी है, तो इसके आधार पर कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता आर्यों की ही सभ्यता थी।
सिंह ने अपनी पुस्तक ‘ग्लोरी दैट वाज हड़प्पन सिविलाइजेशन’ में इन सभी स्थलों की विस्तृत सूची दी है। सिंह ने इसके पीछे तर्क दिया कि हड़प्पा सभ्यता के लोथल से अग्निकुंड के साक्ष्य मिले हैं। अर्थात हड़प्पा सभ्यता में अग्नि को विशेष महत्त्व प्राप्त था। वहीं आर्यों में भी अग्नि को विशेष महत्त्व प्राप्त था। सिंह ने बताया कि अगर भाषाई आधार को छोड़ दिया जाए तो इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि आर्य मध्य एशिया से आए। केवल भाषा के आधार पर तो हम यह भी कह सकते हैं कि यूरोपीय लोगों का मूल स्थान भारत ही था और वे यहीं से यूरोप गए क्योंकि हमारे यहां प्राचीनकाल में उन्नत नौकायन के साक्ष्य मिले हैं। उन्होंने बताया कि हड़प्पा के स्थलों से मिले घोड़े के साक्ष्य के आधार पर भी कहा जा सकता है कि आर्यों ने ही हड़प्पा को बसाया था। ( साभार-  (भाषा)। नई दिल्ली, 4 जनवरी )




कोलकाता की जनरल पोस्ट आॅफिस में क्षतिग्रस्त हो रही हैं ऐतिहासिक महत्त्व वाली सामग्रियां

   कोलकाता की जनरल पोस्ट आॅफिस के एक शताब्दी पुराने डाक संग्रहालय में निरीक्षक की अनुपस्थिति और रखरखाव के अभाव के कारण यहां रखी ऐतिहासिक महत्त्व वाली सामग्रियां क्षतिग्रस्त हो गई हैं। एक साल से भी अधिक समय से बंद पड़ा संग्रहालय खस्ता हालत में है। जीपीओ के अधिकारी जल्द मरम्मत करवाने के लिए भारतीय संग्रहालय से मदद मांग रहे हैं। डाक संग्रहालय जीपीओ के भूतल पर स्थित है।
1806 में निर्माणाधीन जीपीओ की दुर्लभ तस्वीर की एक झलक लेने के लिए जहां क्षतिग्रस्त दीवारों से गिरे मलबे के ढेर को पार कर अलमारी के पीछे तक जाना पड़ता है, वहीं उस दौर में इस इमारत के सामने बने खूबसूरत बगीचों की तस्वीर जमीन पर गिरी पड़ी है और धूल फांक रही है। बगीचों वाले उस क्षेत्र को अब पार्किंग क्षेत्र बना दिया गया है। ब्रिटिशकालीन दौर के देश के नक्शे अब संग्रहालय की सीलन भरी दीवारों के कारण एक-दूसरे से अलग होते नजर आते हैं। जनवरी 1890 की तारीख वाले पुराने डाक नक्शे ‘बेहर सर्कल’ के साथ-साथ सीलन वाली दीवारों ने बंगाल और असम सर्कल रूट के यातायात चार्ट को, देश के रेलवे तंत्र के एक अन्य नक्शे (अप्रैल 1904) को और ब्रिटिश राज के समय के देश की हवाई डाक सेवा के नक्शे को भी नुकसान पहुंचाया है।
इन सब सामानों में से सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों- नोबल विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के हस्ताक्षर और एक अन्य नोबल विजेता सीवी रमण के हस्ताक्षर वाली डाकघर की जीवन बीमा पॉलिसी को सेलोफेन शीट में लपेटकर रखा गया है। लेकिन उन्हें भी तत्काल देखभाल की जरूरत है। संग्रहालय में कई वस्तुएं पर्याप्त रखरखाव के अभाव में खतरे के कगार पर हैं। कई वस्तुएं जगह की कमी के कारण जमीन पर पड़ी हैं।
कोलकाता जीपीओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- हम जानते हैं कि इन नक्शों और कागजों को तत्काल संरक्षित नहीं किया गया तो वे हमेशा के लिए नष्ट हो जाएंगे। इतने अधिक ऐतिहासिक महत्त्व की चीजें रखने के लिए इस संग्रहालय में जरूरी बुनियादी सुविधाओं के अभाव की बात स्वीकार करते हुए अधिकारी ने कहा कि पुरानी तस्वीरों और मुहरों को संरक्षित करने के लिए जीपीओ भारतीय संग्रहालय की मदद मांग रहा है।
उन्होंने कहा- हमारे पास इस तरह के संग्रहालय के लिए पर्याप्त अवसंरचना नहीं है। न तो हमारे पास निरीक्षक है और न ही प्रदर्शन में रखी गई वस्तुओं के संरक्षण के लिए कोई तकनीकी सहायक ही है।
उन्होंने कहा कि हमने भारतीय संग्रहालय के अधिकारियों से मदद मांगी है। हम इन नक्शों व मुहरों के संरक्षण के लिए संरक्षण विशेषज्ञ को नियुक्त करेंगे। दीवारों पर सीलन-रोधी परत चढ़ाने के अलावा डाक विभाग के अधिकारी संग्रहालय में बिजली की तारों की मौजूदा व्यवस्था को बदलने और ‘फायर एग्जिट’ बनाने की भी योजना तैयार कर रहे हैं। ( साभार-  (भाषा)। कोलकाता, 4 जनवरी )

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