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Wednesday, July 11, 2012

बबार्द हो रहे हैं चंदेल व मुगलकालीन जलाशय

 बुंदेलखंड को तालाबों का खंड कहा जाता था, जहां दसवीं सदी से लेकर तेरहवीं सदी तक के सैकड़ों तालाब देखने को मिल सकते हैं। इसके साथ-साथ मुगलों के शासन में भी तालाब बनवाए गए। यही नहीं तालाबों के सहारे शुद्घ पेयजल के लिए कुएं भी बनाए जाते थे। इन कुओं में पानी तालाबों के सहारे रीचार्ज होकर कुओं को जीवित रखते थे। तालाबों को बरसात के पानी से भरने के लिये पहले से बंदोबस्त होता था। जिससे उसका पानी दूषित न हो। तालाबों के पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था होती थी। बड़े तालाबों में पानी की स्वच्छता के लिए मछली पालन कराया जाता था इसके अलावा कंकरीट भी तालाबों में डलवाई जाती थी। जिससे तालाब का पानी फिल्टर होकर पीने लायक बना रहे। यह सब मनुष्य की इच्छा शक्ति से होता था पर जैसे-जैसे आबादी का विस्तार हुआ, सबसे पहले स्वार्थी लोगों ने तालाबों की खाली पड़ी जमीन पर कब्जा कर इमारतें खड़ीं कर दीं। यही नहीं जो नालियां तालाबों को भरने का काम करती थी, उनको हमेशा के लिए बंद कर दिया।
 
 
चंदेकालीन और मुगल कालीन तालाबों का जो डिजाइन हैं वह आज भी इंजीनियरों के लिए चुनौती है। इसी प्रकार मेहराबदार दीवारों से कुओं का जो निर्माण कराया जाता था, वह भी लुप्त हो गए। जो कुएं बुंदेलखंड पैकेज से महोबा व ललितपुर में बनाए जा रहे हैं। उनके डिजाइन देख बुंदेलखंड में सौ से अधिक चंदेलकालीन तालाब हैं। ये सभी तालाब अपने सौंदर्य को खोते जा रहे हैं।
  वाल्मीकि तालाब को छोड़ कर सभी तालाब शहर की आबादी से घिर चुके हैं। जल निकासी के सभी स्रोत बंद कर दिए हैं। इन तालाबों को बरसात के पानी से भरने के लिए कोई इंतजाम नहीं है, यह है जल प्रबंधन का हाल। इसी तरह महोबा के मदन सागर तालाब, कल्याण सागर, तालाब, कीरत सागर तालाब, बीझा नगर तालाब, सागर तालाब यह सभी चंदेलकालीन हैं। ये सभी तालाब बड़े क्षेत्रफल में फैले हैं। इनमें पानी भरने के लिए 1990 से 2000 के दशक में व्यवस्था थी पर धीरे-धीरे आबादी बढ़ने से इनमें अधिकांश तालाबों की जल निकासी न होने से गंदा पानी सड़ांध मारने लगा है।
बारिश का पानी भरने का बंदोबस्त अब नहीं रहा। हमीरपुर जिले में चरखारी रियासत को खूबसूरत तालाबों के साथ कुएं जुड़े मिलते थे, जो खंडहर में तब्दील हो गए हैं। तालाब सूख गए हैं। इन्हें भी सरकारी बजट की दरकार है। यहां तालाबों और कुओं को ऐसे बनाया गया है कि बारिश हो तो एक बूंद पानी भी बाहर न जाए।
ऐसे तालाबों-कुओं का निर्माण अब संभव नहीं। आज भी प्रत्येक गांव में एक या दो प्राचीन कुएं देखने को मिल जाते है। ( साभार- जनसत्ता )

संबंधित विवरण व संदर्भ के लिए यहां भी देखें। राजस्थान, मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के इन इलाकों में प्राचीन शासकों (नौवीं से सोलहवीं शताब्दी तक ) ने जलापूर्ति के वैज्ञानिक इंतजाम किए थे। आज उनके नष्ट होते ही पूरा सूबा पीने के पानी तक को तरस गया है।लिंक पर क्लिक कर देखें पूरा विवरण।

Bundelkhand - Drought and environmental destruction
http://kkasturi.blogspot.in/2009/11/bundelkhand-drought-and-environmental.html
Dr Bharatendu Prakash ,Vikram Sarabhai fellow at the MP Council of Science & Technology has been studying the water resources of Bundelkhand from many years.Dr Prakash explains that..................The solutions evolved over a 1000 years have been to construct innumerable rain water harvesting structures taking into account the lay of the land, designed to capture the runoff in surface ponds and recharge underground sources. Water harvesting structures – ponds in every village and town and at other strategic locations - had been crafted in the region as early as 800-900 AD by the Chandela kings and reinforced by subsequent rulers – the Bundela’s and the Peshwa’s.

  A pond at Charkhari, UP. Part of a system of 11 interconnected ponds, the rain water storage structures built nearly a 1000 years ago by the Chandela rulers are decaying due to lack of maintenance. This neglect of old water storage structures we witness again and again in different parts of Bundelkhand. Every village or small town we visit has one or more large ponds usually dating hundreds of years. The water bodies are now filthy with sewage allowed to flow in, garbage dumped on the banks, silt accumulation and weeds.

 ( साभार- http://kkasturi.blogspot.in/2009/11/bundelkhand-drought-and-environmental.html )

Bundelkhand, Madhya Pradesh, established a network of several hundred tanks

http://cpreec.org/pubbook-traditional.htm
The Chandela Kings (851 – 1545 A.D.) of Bundelkhand, Madhya Pradesh, established a network of several hundred tanks that ensured a satisfactory level of groundwater. They were constructed by stopping the flow of a nullah or a rivulet running between 2 hills with a massive earthen embankment. The quartz reefs running under the hills confined the water between them.

The Bundela Kings who came later used lime and mortar masonry and were bordered by steps, pavilions and royal gardens. The tanks were built close to palaces and temples and were not originally meant for irrigation at all, but for the use of all. Breaching of embankments and cultivation on the tank bed has destroyed many. But the wells in the command area of these tanks continue to yield well and also serve to recharge the groundwater. ( http://cpreec.org/pubbook-traditional.htm )

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