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Monday, May 7, 2012

महाकवि सूरदास की ऐतिहासिक की साधना स्थली परासौली

   मथुरा से बीस किलोमीटर दूर महाकवि सूरदास की साधना स्थली परासौली को स्थानीय कृष्ण भक्तों ने खंडहरों में तब्दील होने से बचा लिया है, लेकिन हिंदी के विद्वानों और शासन की ओर से की जाने वाली उपेक्षा यहां साफ दिखाई देती है। प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर ने सूरदास के जीवन पर आधारित उपन्यास ‘खंजन नयन’ के अनेक पृष्ठों की रचना परासौली की इसी सूर कुटी में की थी, जहां महाकवि सूर ने 73 साल निवास कर एक लाख पदों वाले कालजयी ग्रंथ ‘सूरसागर’ की रचना की थी। ‘खंजन नयन’ उपन्यास ने साहित्य प्रेमियों में जन्मांध सूरदास की जिंदगी को जानने की प्रबल जिज्ञासा तो पैदा की लेकिन परासौली का दर्द दूर नहीं हुआ।
जानकारी के मुताबिक सन 1478 में जन्मे सूरदास को श्री बल्लभाचार्य आगरा के पास रुनकता से मथुरा लाए थे और परासौली में श्री कृष्ण के जीवन पर पद गायन की प्रेरणा दी थी। सौ साल तक जीने वाले महाकवि का देहांत 1583 में परासौली की इसी कुटिया में हुआ था। सूरदास की इस साधना स्थली पर उस वक्त का वह पीलू का वृक्ष आज भी मौजूद है। महाकवि की अभूतपूर्व कृष्ण भक्ति और उनकी काव्य प्रतिभा के साक्षी पीलू पर ब्रजभाषा के कई कवियों ने कविताएं भी लिखी हैं। पिछले दो दशकों में आगरा और मथुरा के हिंदी विद्वान समय-समय पर सूर की परासौली को सजाने-सवांरने की मांग करते रहे हैं। आगरा विवि के पूर्व कुलपति मंजूर अहमद ने अपने विवि में 1999 में सूर पीठ की स्थापना की लेकिन साधना स्थली परासौली के संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। विवि की सूरपीठ उबड-खाबड़ पड़ी है ।
गोवर्धन के कवियों और संगीतकारों ने सूर की मधुर स्मृतियों को सहेजकर जीवित रखने का संकल्प ले रखा है। ‘सूरदास ब्रज रास स्थली विकास समिति’ के सचिव हरिबाबू कौशिक ने बताया कि सूर और तुलसी की तुलना अंग्रेजी के महान कवि शेक्सपीयर और मिल्टन जैसे कवियों से की जाती है लेकिन साहित्य प्रेमी और सरकार इन महाकवियों की स्मृतियों को सहेजने के प्रति लापरवाह हैं। परासौली की सूर कुटी में आने वाला आगंतुक महाकवि की कृष्ण भक्ति और उनके जीवन से जुड़े किस्से सुन गदगद और भावुक हो उठता है। कहते हैं कि संवत 1626 में सूर और तुलसी जैसे दो महाकवियों का मिलन परासौली की इसी ऐतिहासिक धरती पर हुआ था। परासौली की उस पगडंडी को रमणिक बनाया जा सकता है, जिस पर चल कर सूरदास गोवर्धन पर्वत पर स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर में पद गायन के लिए जाते थे।
Prayer hall shantinikata
पाठ्य पुस्तकों में अष्टछाप के कवियों को साहित्य के छात्र पढ़ते हैं। इनकी स्मृतियां परासौली में कहां-कहां बिखरी पड़ी हैं, इसकी चिंता किसी को नहीं। सूरदास के पदों को देश-विदेश में गाने वाले आकाशवाणी मथुरा के कलाकार हरी बाबू ने बताया कि उनकी संस्था परासौली की जमीन पर किए जा रहे कब्जे के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही है। सरकार चाहे तो परासौली को आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर सकती है, क्योंकि यहां चंद्रसरोवर नाम का आठ भुजा वाला सरोवर भी है। (साभार-जनसत्ता)
शांति निकेतन- धरोहर की सूची में शामिल कराने की कवायद
 गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की ओर से स्थापित शांति निकेतन को यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराने की कवायद एक बार फिर शुरू की गई है। जुलाई में पेरिस में होने वाली यूनेस्को की बैठक में इसके लिए नामांकन पेश करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ ठाकुर से जुड़ा विश्व प्रसिद्ध संस्थान पिछले साल भी विश्व धरोहर घोषित किए जाने की दौड़ में था। लेकिन अंतिम सूची में स्थान नहीं बना पाया था। विश्व भारती विश्वविद्यालय एक बार फिर इसे विश्व धरोहर की सूची के संभावितों में शामिल करवाने के प्रयास में लगा हुआ है। यूनेस्को नियमों के मुताबिक किसी भी विश्व धरोहर स्थल को एकीकृत कमान के अधीन होना चाहिए। शांति निकेतन के बारे में कहा गया है कि वह इस मापदंड को पूरा नहीं करता है।
संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि भारत और बांग्लादेश इस साल संयुक्त रूप से रवींद्रनाथ ठाकुर की 150वीं जयंती मना रहे हैं। ऐसे समय में अगर ठाकुर से जुड़े इस स्थल को विश्व धरोहर धोषित किया जाता है तो समारोह का महत्त्व और बढ़ जाएगा। पिछले साल की विफलता के बाद संस्कृति मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से समन्वय स्थापित कर इस प्रसिद्ध विश्वविद्यालय की प्रणाली को और दुरुस्त बनाने का प्रयास कर रहा है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक अधिकारी ने कहा कि यह उसके अधीन आने वाला स्थल नहीं हैं। हालांकि एएसआई ऐसे स्थलों के लिए शीर्ष एजंसी है। अधिकारी ने कहा कि पुन: मनोनीत करने का प्रस्ताव मिलने पर एएसआई की सलाहकार समिति इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार कर मामले को आगे बढ़ाएगा। विश्वविद्यालय की वर्तमान प्रणाली के संबंध में अभी भी कई मुद्दे सुलझाए जाने हैं। अधिकारियों ने उम्मीद जताई कि संशोधन रिपोर्ट समय पर तैयार हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इस संबंध में काम को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। इस विषय पर फिर से आवेदन करने का काम पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि अगर सब कुछ ठीक रहा तो जुलाई 2012 में पेरिस में यूनेस्को की बैठक में शांति निकेतन को विश्व धरोहर घोषित किया जा सके।
उल्लेखनीय है कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की थी। यह कोलकाता से 158 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 20 जनवरी 2010 को यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में शामिल करने के लिए शांति निकेतन का मनोनयन किया था। लेकिन यह विश्व धरोहर नहीं बन पाया। शिक्षा के विशिष्ट माडल, अंतरराष्ट्रीय स्वरूप और स्थापत्य का नमूना होने के साथ कला और साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए इसे विश्व धरोहर घोषित करने की अपील की गई थी।

नामांकन में कहा गया था कि शांति निकेतन का मानवता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। संस्थान ने 20वीं शताब्दी में धार्मिक और क्षेत्रीय बाधाओं को दूर करते हुए लोगों को जोड़ने का काम किया है। इसको ध्यान में रखते हुए इसे विश्व धरोहर घोषित किया जाना चाहिए। ( भाषा)

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