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Friday, March 18, 2011

देश की सबसे ऊंची बौद्ध प्रतिमा

खबरों में इतिहास(भाग-12)
अक्सर इतिहास से संबंधित छोटी-मोटी खबरें आप तक पहुंच नहीं पाती हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए इतिहास ब्लाग आपको उन खबरों को संकलित करके पेश करता है, जो इतिहास, पुरातत्व या मिथकीय इतिहास वगैरह से संबंधित होंगी। अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामग्री है तो मुझे drmandhata@gmail पर हिंदी या अंग्रेजी में अपने परिचय व फोटो के साथ मेल करिए। इस अंक में पढ़िए--------।
१-देश की सबसे ऊंची बौद्ध प्रतिमा का अनावरण
२-खुदाई में मिले अवशेषों से स्पाइस रूट की पुष्टि
3-सबसे बड़े शाकाहारी डायनासोर
खुदाई में मिले अवशेषों से स्पाइस रूट की पुष्टि
 केरल के प्राचीन बंदरगाह शहर विझिनजम में एक खुदाई स्थल पर मिले अवशेषों से सदियों पहले बाहरी दुनिया से व्यापार के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले स्पाइट रूट की पुष्टि हुई है। इसके लिहाज से इसे यूनेस्को से धरोहर का दर्जा दिलाने के प्रदेश के प्रयास को बल मिलेगा।

हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार में दो हजार सालों से केरल प्रमुख भूमिका निभाता रहा है। इसके कारोबारी साझेदारों में रोमन साम्राज्य, अरब खाड़ी और सुदूर पूर्व शामिल हैं। केरल के मसालों के लिए प्राचीन दुनिया के लगाव के कारण ये व्यापारी प्रदेश में आते थे। विझिनजम का जिक्र मध्यकालीन दस्तावेजों में मिलता है। यह एक समय दक्षिण केरल में आठवीं से दसवीं सदी में एवाय राजवंश की राजधानी रहा था। केरल विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के अजीत कुमार ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के राबर्ट हार्डिंग के साथ विझिनजम में खुदाई का काम शुरू किया ताकि शहर के सांस्कृतिक महत्त्व को समझा जा सके।(भाषा)।

देश की सबसे ऊंची बौद्ध प्रतिमा का अनावरण

सारनाथ स्थित थाई मंदिर में गांधार शैली में बनी देश की सबसे ऊंची (80 फुट) प्रतिमा का बुधवार को थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री जनरल सूरावेद चुल्लानाट ने अनावरण किया। इसके साथ ही भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली सारनाथ के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि से गुंजित वातावरण में थाईलैंड के प्रमुख भिक्षु सुथी सहित एक दर्जन अनुयायियों ने दीप जलाकर पंचशील पाड्ग किया।

थाई बौद्ध विहार परिसर में बौद्ध परंपरा के मुताबिक विधिपूर्वक पूजा अर्चना की गई। उसके बाद विशाल बुद्ध प्रतिमा के सामने रखी प्रतीक छोटी प्रतिमा का पर्दा खींचकर अनावरण कार्यक्रम संपन्न हुआ। जनरल चुल्लानाट ने इस मौके पर कहा कि भगवान बुद्ध की प्रतिमा भारत और थाईलैंड के बीच मैत्री का प्रतीक है। भारत गुरुभूमि है। यहीं से भिक्षु थाइलैंड गएऔर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। कई एकड़ क्षेत्र में फैले मंदिर परिसर के संस्थापक व बौद्धधर्म के प्रमुख प्रचारक भदंत शासन रश्मि का यह ड्रीम प्रोजेक्ट लगभग 14 साल में पूरा हुआ। बामियान (अफगानिस्तान) में गौतम बुद्ध की प्राचीन व विशाल प्रतिमाओं को तालिबानियों के खंडित करने से आहत होकर भदंत शासन ने इस प्रतिमा के निर्माण की परिकल्पना की थी। लगभग दो करोड़ रुाए में बनकर तैयार हुई प्रतिमा में 20 फीट ऊंची आधार स्तंभ व 60 फुट प्रतिमा की ऊंचाई है। इसके निर्माण में चार लाख 89 हजार किलोग्राम वजन के कुल 815 पत्थर लगे हैं।

बैजनाथ धाम (बिहार) निवासी शिल्पकार मोहन राउत के तैयार माडल को चुनार निवासी मूर्तिकार जीउत कुशवाहा नेकुशल कारीगरों की सहायता से विशाल बुद्ध प्रतिमा का रूप दिया। प्रसिद्ध वास्तुकार अनुराग कुशवाहा के निर्देशन में प्रतिमा की आधारशिला व तकनीकी ढ़ांचों का निर्माण हुआ, जबकि मुंबई के वरिष्ठ इंजीनियर पीपी कल्पवृक्ष के मार्गदर्शन में प्रतिमा स्थापित की गई। इस बीच पूर्व घोषणा के विपरीत प्रतिमा अनावरण के बाद मंदिर परिसर में ही भदंत शासन रश्मि का दाह संस्कार क्षेत्रीय नागरिकों के विरोध के चलते नहीं किया जा सका। 22 दिसंबर 2010 को देहांत के बाद उनके पाथर्व शरीर को उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार प्रतिमा के अनावरण तक मंदिर में रखा गया था। थाई बौद्ध विहार समिति के सचिव डा. धर्मरश्मि गौतम ने बताया कि दंत भदंत शासन रश्मि का अंतिम संस्कार कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया है। उनका शव तब तक मंदिर परिसर में ही रखा जाएगा। (भाषा)।
सबसे बड़े शाकाहारी डायनासोर

वैज्ञानिकों को खुदाई में धरती पर मौजूद सबसे बड़े शाकाहारी डायनासोर का जीवाश्म मिला है। समझा जाता है कि यह धरमी पर करीब नौ करोड़ वर्ष पहले विचरण करता था। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक दल को इस डायनासोर का जीवाश्म अंगोला में में मिला। उनका मानना है कि इसका आकार धरती पर मौजूद आज तक के सबसे बड़े माँसाहारी डायनासोर ‘टी-रेक्स’ से भी बड़ा था। यह लंबी गर्दन वाला जीव पौधे और अन्य वनस्पति खाता था । डेली मेल के रिपोर्ट अनुसार इसे अंगोलाटाइटन एडामास्टोर नाम दिया गया है। जहाँ इसके जीवाश्म मिले हैं वह नौ करोड़ वर्ष पहले पानी के अंदर रहा होगा। समझा जाता है कि मछली और शार्क के दाँत के साथ मिले उसके अवशेष बहकर समुद्र में चले और शार्कों ने उसके टुकडे-टुकड़े कर दिए। (भाषा

1 comment:

Sushil Bakliwal said...

ज्ञानवर्द्धक आलेख. आभार...

कडवा सच जीवन का....

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