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Monday, March 15, 2010

ऐतिहासिक इमारतों व विरासत स्थलों के संरक्षण का नया कानून

    ऐतिहासिक इमारतों और विरासत स्थलों से अतिक्रमण खत्म कर उनका प्रभावी संरक्षण करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय इमारत प्राधिकरण के गठन का प्रावधान करने वाला एक महत्त्वपूर्ण विधेयक सोमवार १५ मार्च को लोकसभा ने पारित कर दिया।

कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि भविष्य में ऐतिहासिक महत्त्व की इमारतों, पुरातत्व महत्त्व के स्थानों और विरासत स्थलों की सुरक्षा और उनके संरक्षण में यह विधेयक उचित दिशा में उठाया गया सकारात्मक कदम है। उन्होंने कहा कि हर ऐतिहासिक संरक्षित इमारत या स्थल के सौ मीटर के दायरे को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया गया है और यहां कोई भी निर्माण कार्य प्रतिबंधित रहेगा। केवल स्वच्छता सहित मूलभूत सुविधाओं का उन्नयन किया जा सकेगा। किसी भी इमारत के 200 मीटर के दायरे को विनियमित क्षेत्र माना जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अलग-अलग इमारतों के मामले में बढ़ा भी सकती है।

मोइली ने कहा कि राष्ट्रीय इमारत प्राधिकरण का गठन किया जाएगा, जिसमें पुरातत्व विज्ञान, विरासत क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल होंगे। इसमें किसी न्यायाधीश को नहीं रखा गया है, केवल विशेषज्ञ रखे गए हैं। यह प्राधिकरण इमारतों और विरासत स्थलों का वर्गीकरण और ‘ ग्रेडिंग’ करेगा। इसके साथ ही सदन ने प्राचीन स्मारक व पुरातत्वीय स्थल एवं अवशेष (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक 2010 को ध्वनिमत से पारित कर दिया,, जो इस बारे में सरकार की ओर से जारी अध्यादेश की जगह लेगा।

मोइली ने कहा कि देश का चरित्र उसकी संस्कृति से प्रतिबिंबित होता है। अपरिहार्य परिस्थितियों में ही अध्यादेश लाना पड़ता है। हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में कई मुकदमे चल रहे थे और सुप्रीम कोर्ट में विशेष अवकाश याचिका तत्काल दायर नहीं की जा सकती थी क्योंकि शीर्ष अदालत चार जनवरी 2010 को खुलनी थी इसलिए अंतत: अध्यादेश लाना पड़ा।

उन्होंने कहा कि सभी सक्षम प्राधिकरण, चाहे वे केंद्र के हों या राज्य के, इसी राष्ट्रीय इमारत प्राधिकरण के तहत कार्य करेंगे। सार्वजनिक महत्त्व की अनिवार्य परियोजनाओं को विनियमित इलाकों में परिचालित करने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन इसके लिए प्राधिकरण से अनुमति लेनी होगी। यह प्राधिकरण पूर्णतया स्वायत्तशासी होगा और विधेयक में दंडात्मक प्रावधान भी किए गए हैं। इसके अलावा एक विशेषज्ञ सलाहकार समिति भी बनाई जाएगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को काफी कम धन आबंटित होने की सदस्यों की चिंताओं पर मोइली ने कहा कि केंद्रीय बजट का केवल 0.12 फीसद ही इमारतों के संरक्षण के लिए मिल पाता है इसलिए उचित बजटीय प्रावधान की जरूरत है। मैं योजना आयोग से आग्रह करूं गा कि वह राज्य सरकारों के अधीन आने वाली इमारतों के लिए भी उचित अनुदान सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि साथ ही विरासत स्थलों और ऐतिहासिक इमारतों पर पर्यावरण प्रदूषण के खतरों का भी आकलन होना चाहिए। भारतीय विरासत स्थलों की स्थिति के बारे में व्यापक रपट बननी चाहिए ताकि राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाई जा सके।

विधेयक में जमीनी हकीकतों को ध्यान में रखते हुए हरेक स्मारक के बारे में प्रतिबंधित और विनियमित क्षेत्रों के बारे में अलग से घोषणा किए जाने और साथ ही इन क्षेत्रों में सार्वजनिक कार्य और सार्वजनिक परियोजनाओं की अनुमति देने के बारे में शर्तांे के आधार पर घोषणा करने के लिए सिफारिशें करने के लिए एक या अधिक विशेषज्ञ सलाहकार समिति के गठन का प्रावधान किया किया गया है।

राष्ट्रीय महत्त्व के प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातात्विक महत्त्व के स्थलों और अवशेषों के संरक्षण के लिए 1958 में प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष कानून बना था। समय बीतने के साथ ही कानूनी प्रावधानों का कार्यान्वयन, खासतौर पर स्मारकों और स्थलों के आसपास के क्षेत्रों में आबादी के बढ़ते दवाब के कारण कठिन हो गया है जो स्मारकों की सुरक्षा और संरक्षा के लिए हानिकारक है। (भाषा)।

2 comments:

शरद कोकास said...

यह बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने डॉक्टर साहब । धन्यवाद ।

Udan Tashtari said...

राष्ट्रीय इमारत प्राधिकरण....अच्छा सार्थक कदम!

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