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Friday, July 10, 2009

दुर्गति में है मथुरा का संग्रहालय

मथुरा आर्कियोलाजिकल म्यूजियम

करीब तीन हजार साल पुरानी सभ्यता और संस्कृति का आइना बना मथुरा का राजकीय संग्रहालय आज बुरी तरह अस्त-व्यस्त है। दुनियाभर में प्रसिद्ध यह संग्रहालय दर्शकों की बाट जोहता दिखाई पड़ता है। इस संग्रहालय को देखने आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या लगातार घट रही है। संग्रहालय की यह दुर्गति पिछले एक दशक में हुई है।
मजेदार बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार का संस्कृति विभाग मथुरा म्यूजियम के विस्तार पर करोड़ों रुपए खर्च करने में जुटा है। म्यूजियम के विस्तार की नीति संबंधित अफसरों के माफिक आई है पर म्यूजियम के रखरखाव के लिए घातक सिद्ध हुई है। जानकारी के मुताबिक मथुरा म्यूजियम की इमारत की मरम्मत का काम 1999 में शुरू हुआ। इसके लिए तीन चौथाई म्यूजियम दर्शकों के लिए बंद करना पड़ा। करीब 300 बेशकीमती व लाजवाब मूर्तियों को गोदाम में बंद कर दिया गया। म्यूजियम अधिकारियों के निकम्मेपन का एक नमूना यह है कि एक दशक पूर्व बंद किया तीन चौथाई म्यूजियम आज भी बंद है।
मथुरा म्यूजियम पर सबसे लंबी हुकूमत जितेंद्र प्रसाद की रही। टुक़ड़ों-टुकड़ों में जितेंद्र दस वर्ष से ज्यादा मथुरा म्यूजियम के निदेशक रहे। यहां से उनका तबादला लखनऊ हुआ और फिर रिटायर हुए। मथुरा म्यूजियम की दुर्गति के लिए जितेंद्र कुमार को दोषी मान उनके कार्यकलापों की जांच की बात करते हैं। जितेंद्र कुमार के सत्ता के गलियारों में अच्छे रिश्तों के कारण मथुरा म्यूजियम के विस्तार के लिए 8 करोड़ रुपए की रकम स्वीकृत हुई थी।
मथुरा-वृंदावन गोविंद मंदिर

म्यूजियम के बगल में एक दूसरी इमारत के निर्माण का कार्य और पुरानी इमारत की मरम्मत का कार्य जितेंद्र के वक्त में शुरू हुआ। यह कार्य उप्र जल निगम की निर्माण शाखा इकाई कर रही है। म्यूजियम कर्मचारियों का कहना है कि धीमी गति से चलने वाले इस घटिया कार्य की अनेक शिकायतें प्रदेश सरकार से की गईं लेकिन कड़ी कार्यवाही के बजाय जल निगम के अधिकारियों को इनाम मिलता रहा है। अब म्यूजियम में सुरक्षा के लिए लगाए गए सीसी कैमरे, फर्नीचर, एसी आदि सामान खरीदने का जिम्मा भी जल निगम के पास है। यह सब बढ़िया कमीशन ज्यादा काम के सिद्धांत पर चल रहा है।
मालूम हो मथुरा म्यूजियम बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म की हजारों वर्ष पुरानी दुर्लभ मूर्तियों के संग्रह के लिए विश्वविख्यात है। अनेक दुर्लभ मूर्तियां नष्ट हो रही हैं। इनकी हिफाजत के लिए तैनात रसायन वैज्ञानिक लखनऊ म्यूजियम की सेवा कर रहा है। रानी विक्टोरिया की सौ वर्ष पुरानी अष्ट धातु की मूर्ति खुले आकाश के नीचे पड़ी है। इस मूर्ति के हाथों में एक दंड और एक ग्लोब था। इसे चोर ले उड़े। मथुरा पुलिस फिल्मी अंदाज में चोरों की तलाश कर रही है।
मथुरा-वृंदावन रंगजी मंदिर

म्यूजियम के पास एक अमूल्य पुस्तकालय है। इसकी 40 हजार पुस्तकों पर अब खतरा मंडरा रहा है। शहर के बुद्धिजीवियों के मध्य म्यूजयिम का पुस्तकालय काफी लोकप्रिय रहा है। इतिहास के छात्र इस पुस्तकालय का भरपूर उपयोग करते रहे हैं लेकिन आज इधर का रुख करने वाला कोई नहीं। पुस्तकालय की छत चूने से अधिकांश पंखे खराब पड़े हैं। पुस्तकालय भवन में म्यूजियम के संस्थापक एफएस ग्राउज के सम्मान में आयोजन होते थे। इस वर्ष ग्राउज सप्ताह नहीं मना।
म्यूजियम में कुल 32 कर्मचारी हैं। अनेक पद रिक्त पड़े हैं। सभी कर्मचारी म्यूजियम की दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। वे किसकी शिकायत किससे करें। मुंह खोलने पर खुद के ऊपर गाज गिरने का डर है। (साभार-जनसत्ता )।

मथुरा संग्रहालय, व्रज, भगवान श्रीकृष्ण संबंधित सामग्री के लिंक उनके आमुख के साथ दिए गए हैं। कृपया इस लिंक से पढ़ें पूरा विवरण। इस पोस्ट के फोटो भी इन्हीं लिंक से साभार लिए गए हैं।


कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्
----------ऋग्वेद संहिता में कृष्ण के नाम का उल्लेख जरूर मिलता है; किंतु यह नाम तो उसमें एक असुर राजा का है। बौद्ध और जैन धर्मग्रंथ तो कृष्ण को बिलकुल अलग रीति से पहचानते हैं। जिस कृष्ण का हमें यहाँ दर्शन करना है, वह कृष्ण तो मुख्य रूप से महाभारत के हैं। हरिवंशपुराण के हैं, श्रीमद्भागवत के हैं और विष्णुपुराण एवं ब्रह्मवैवर्तपुराण के मुख्य रूप से, तथा पद्मपुराण अथवा वायुपुराण जैसे किसी पुराण के अंश रूप हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि यह दर्शन भी संपूर्ण है। लेखक की दृष्टि आंशिक हो सकती है कहीं रुचि-भेद से प्रेरित दृष्टि भी हो सकती है और कहीं इस दृष्टि की साहसिक मर्यादा भी हो सकती है।‘श्रीकृष्ण-डार्लिंग ऑफ ह्युमेनिटी’ नामक एक ग्रंथ में उसके लेखक ए.एस.पी.अय्यर ने एक सरस कथा लिखी है। एक अति बुद्धिशाली व्यक्ति को कृष्ण के अस्तित्व के बारे में शंका थी। उन्होंने एक संत के सामने अपनी शंका प्रस्तुत की-‘मुझे प्रतीत होता है कि कृष्ण कोरी कल्पना का पात्र है। वास्तव में ऐसा कोई पुरुष हुआ ही नहीं।’ उन्होंने कहा।‘यह बात है ? क्या आपका वास्तव में अस्तित्व है ?’ संत ने जवाबी प्रश्न किया।‘अवश्य।’ उस विद्वान ने विश्वासपूर्वक कहा।‘आपको कितने मनुष्य पहचानते हैं ?’‘कम-से-कम पाँच हजार तो अवश्य। मैं प्रोफेसर हूँ, विद्वान हूँ, लेखक हूँ, आदि।’‘अच्छा-अच्छा ! अब यह कहिए कि कृष्ण को कितने मनुष्य पहचानते हैं ?’‘करोड़ों, कदाचित् अरबों भी हो सकते हैं।’ विद्वान ने सिर खुजलाया।‘और यह कितने वर्षों से ?’‘कम-से-कम इस काम को तीन हजार वर्ष तो हुए ही हैं।’‘अब मुझे यह कहिए कि चालीस वर्ष की आपकी आयु में जो पाँच हजार मनुष्य आपको पहचानते हैं, उनमें से कितने आपको पूजते हैं ?’‘पूजा ? पूजा किसकी ? मुझे तो कोई पूजता नहीं ?’‘और कृष्ण को तीन हजार वर्षों बाद भी करोड़ों मनुष्य अभी भी पूजते हैं। अब आप ही निर्णय करें कि वास्तव में आपका अस्तित्व है अथवा कृष्ण का।’-----

मथुरा संग्रहालय
मथुरा का यह विशाल संग्रह देश के और विदेश के अनेक संग्रहालयों में वितरित हो चुका है। यहाँ की सामग्री लखनऊ के राज्य संग्रहालय में, कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में, मुम्बई और वाराणासी के संग्रहालयों में तथा विदेशों में मुख्यत: अमेरिका के 'बोस्टन' संग्रहालय में, 'पेरिस' व 'झुरिच' के संग्रहालयों व लन्दन के ब्रिटिश संग्रहालय में प्रदर्शित है। परन्तु इसका सबसे बड़ा भाग मथुरा संग्रहालय में प्रदर्शित है। इसके अतिरिक्त कतिपय व्यक्तिगत संग्रहों में भी मथुरा की कलाकृतियाँ हैं।--------

अतीत का अद्यतन अस्तित्व-मथुरा
---------मथुरा नगरी जो कि भगवान कृष्ण, महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों से अनन्य संबंध रखती है, इसका एक लंबा, बहुआयामी और बहुरंगा इतिहास है। मथुरा हिन्दू, जैन और बौद्ध अनुयायिओं का तीर्थ स्थल है। यहां कला की विविध विधाएं और धर्मोपदेश फव्वारें से निसृत बुदबुदों के समान, भारतीय संस्कृति में विलीन होते देखे जाते हैं। मथुरा जो कि अब एक छोटा शहर है ओर भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के रुप में प्रसिद्ध है, किसी समय में एक अविस्मरणीय व्यवसायिक केन्द्र और दक्षिण और उत्तर पथ का संपात स्थल है। मथुरा वासियों के लिए व्यापार ही मुख्य व्यवसाय था। कारवां आते-जाते हुए कुछ समय यहां रुकते थे।---

मथुरा का पौराणिक परिचय

व्रज का इतिहास

मंदिर की भव्यता देख दंग रह गया था गजनवी

Thursday, July 9, 2009

बिखरी हुई है हजारों साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत

मध्य प्रदेश के शहर छतरपुर से 37 किलोमीटर दूर बिजावर कस्बे में भगवान राम और जानकी के मंदिर सहित तमाम प्राचीन विरासत बिखरी हुई है। जानकी निवास के ट्रस्टी हरिशंकर अग्रवाल ने बताया कि बिजावर और उसके आसपास जटाशंकर धाम, अर्जुनकुण्ड और पहाड़ों पर शैल चित्र सहित हजारों साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत बिखरी हुई है।
इस समय बीस से पच्चीस हजार की आबादी वाले बिजावर कस्बे में लगभग 250 मंदिर हैं जिनमें से 48 मंदिर शासकीय सूची में दर्ज है। राम निवास, जानकी निवास के अलावा बडी देवी, बिहारी, राधा माधव, चित्रगुप्त, जानकी रमण, जुगल किशेर और लक्ष्मी नारायण मंदिर जैसे प्रमुख मंदिर हैं। अग्रवाल ने बताया कि राम जानकी के मंदिर में भगवान की व्यवस्था एक गृहस्थ की तरह होती है। सोने के लिए अलग कक्ष बैठक के लिए आसन (कुर्सी) जानकी के शृंगार के लिए शृंगारदान और भगवान राम के लिए चौपड़ है।
अग्रवाल ने बताया कि लगभग 100 साल पहले संवत 1965 में जानकी निवास का निर्माण तत्कालीन राजा सावंत सिंह ने कराया था जबकि राम निवास मंदिर 300 से 400 साल पुराना है। विवाह पंचमी पर भगवान राम और सीता का समारोहपूर्वक विवाह आयोजित करने की परंपरा यहां वर्षों से चली आ रही है। चित्रगुप्त मंदिर के पुजारी और पुजारी संघ के संचालक लखनलाल दुबे ने कहा कि राजा सावंत सिंह ने बिजावर रियासत में सैकड़ों की संख्या में मंदिरों का निर्माण कराया। दुबे ने कहा कि सरकार को मंदिरों के रख रखाव और संरक्षण की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। यदि यहां किलों और मंदिरों को समग्र रूप से संरक्षित व दर्शनीय बनाया जाए ताकि बिजावर एक अच्छा पर्यटन स्थल बन सकता है। स्थानीय तालाब को विकसित कर वाटर स्पोर्टस शुरू किया जा सकता है। (भाषा)।

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