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Saturday, February 28, 2009

पश्चिमबंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में मिला एक और बौद्ध स्तूप

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में कांदी महकमा के डेकाबिचकांदी गांव में ईंटों से बने टीले का खुदाई के दौरान पता चला है। इसे पुरातत्वविद बौद्ध स्तूप बता रहे हैं। छह दिन चली खुदाई के बाद एक शिक्षक मोहम्मद कासिम अली के चार बीघे के एक प्लाट के ठीक बीच में मिले २५०० स्क्वायर मीटर के इस टीले के अवशेष को पुरातत्वविद आठवीं सदी से पहले का बौद्ध स्तूप बता रहे हैं। खुदाई करा रहे पुरातत्वविदों को उम्मीद जगी है कि इसके नीचे से जो साक्ष्य हासिल होंगे उससे पाल वंश के शासन के पूर्व के इतिहास पर कुछ रोशनी डाली जा सकेगी। पालों ने आठवीं से १२ वीं सदी तक बिहार और बंगाल पर शासन किया है। डेका में पश्चिम बंगाल के पुरातत्व विभाग से सुपरिटेंडेंट अमल राय की टीम खुदाई कार्य में जुटी है। जिस जगह टीला मिला है उसे स्थानीय लोग देउलीपार कहते हैं। कुछ लोग इसे हरी राजा का गढ़ बताते हैं। राजा हरी ऐसे स्थानीय शासक थे जो मुगलों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे।​

यही है वह टीला जिसे स्तूप बताया जा रहा है।

अभी छह स्क्वायर मीटर की ईंटे की दीवाल मिली है जिस पर ज्यामितीय आकार में मनके के माले का तरह फूल के आकार की सजावट है। यहां मिले मृदभांड पर एक झुकी हुई आकृति के पैर और अगली बांह के टुकड़े मिले हैं। ईंटे के टीले की दीवार की सात लाइनों तक खुदाई की गई है। यानी करीब एक मीटर गहराई तक खुदाई के बाद अमल राय का कहना है कि इसमें प्राप्त साक्ष्य के आधार पर लगता है कि यह टीला ( जिसे स्तूप कहा जा रहा है) पाल वंश से पूर्व का है। और स्थल पास के पुरातात्विक स्थल जगजीवनपुर से काफी प्राचीन है।​​
​ पुरातत्व व संग्रहालय के निदेशक गौतमसेनगुप्त अभी किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए और औसे साक्ष्यों की जरूरत है जिससे इसकी तारीख निर्धारित की जा सके। ​
​ जिस इलाके से यह तथाकथित बौद्ध स्तूप मिला है वह कर्णसुवर्ण क्षेत्र के पंचस्तूपी गांव से मात्र दो किलोमीटर दूर है। पंचस्तूपी यानी पांच स्तूपों वाला गांव। पुरातत्वविदों का अनुमान है कि यह भी उन्हीं स्तूपों में से एक होगा।​
जानेमाने इतिहासकार दिलीप कुमार गांगुली​ ने अपनी पुस्तक- एनशियेंट इंडिया हिस्ट्री एंड आर्कियोलाजी के पेज दस पर तमाम अनुशीलन के पश्चात लिखा है कि मौर्यों ने पूर्वी भारत में चार स्तूप बनवाए थे। ये स्तूप सम्राट अशोक ने बनवाए थे। इनमें एक पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के तमलुक (प्राचीन नाम ताम्रलिप्ति ), दूसरा मुर्शिदाबाद के राजबारीडंगा ( प्राचीन नाम कर्णसुवर्ण ), तीसरा उत्तर बंगाल के बोगरा जिले के महास्थान ( प्राचीन नाम पुंड्रवर्धन ) और चौथा ढाका ( बांग्लादेश ) के पास समाताता में बनवाया था। चीनी यात्री इत्सिंग ने इन बौद्ध स्तूपों को देखा था और अपने वर्णनों में इसका जिक्र किया है। पंचस्तूपी गांव के अस्तित्व को माना जाे तो संभवतः यह वह पांचवा स्तूप होगा। जिन सभी के नाम पर पंचस्तूपी नाम पड़ा होगा। बंगाल में बौद्ध स्तूपों या स्मारकों के मिलने की बड़ी वजह यह है कि बंगाल में १२वीं सदी तक पाल व चंद्र शासकों के संरक्षण में बौद्ध धर्म फलता-फूलता रहा है। जबकि भारत के बाकी हिस्से से बौद्ध धर्म का पतन हो गया था। बिम्बिसार, सम्राट अशोक और कनिष्क से लेकर १२ वीं शताब्दी तक बंगाल के पाल व चंद्र शासकों ने करीब ८०० वर्षों तक बौद्ध धर्म को बंगाल में संरक्षण दिया।​
संभव है कि बौद्ध धर्म सम्राट अशोक के पहले ही बंगाल में प्रवेश पा लिया होगा क्यों कि भगवान बुद्ध मगध, कोशल, वैशाली में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के निमित्त आए थे। यह इलाका पुंड्रवर्धन (उत्तर बंगाल ) के पास ही था। संभव है कि गौतम बुद्ध बांग्लादेश ( और पश्चिम बंगाल) के कुछ हिस्सों में भी गए होंगे। जैसा कि ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में कहा है कि सम्राट अशोक ने बंगाल और ओड़ीशा में भी स्तूप बनवाए। ये स्तूप अशोक ने उन स्थलों पर बनवाए जहां-जहां भगवान बुद्ध गए थे।
ह्वेन सांग ने सातवीं सदी में उन सभी स्थलों का दौरा किया जो बौद्ध धर्म से संबंधित थे। इसी संदर्भ वह बताता है कि पुंड्रवर्धन (उत्तर बंगाळ ) में उसने ऐसे २० मठों को देखा था जहां हीनयान और महायान दोनों संप्रदाय के ३००० से अधिक भिक्षु रहते थे। पुंड्रवर्धन की राजधानी में ७०० भिक्षुओं को देखा था।

1 comment:

222222222222 said...

कामयाबी है यह। जानकारी के लिए बधाई।

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